‼️मसूदा में फटे दूध से रसगुल्ले बनाने की क़वायद‼️

अजमेर में रलावता के आने से चुनाव रोचक!उनका सीधा मुक़ाबला ज्ञान सारस्वत से!

नसीराबाद से पलाड़ा का चुनाव लड़ना किसके लिए ख़तरे की घण्टी?

शिव राज पलाड़ा क्यों हटे मसूदा से?

  ✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी

मसूदा विधानसभा क्षेत्र में कल समझ में ही नहीं आया कि हुआ क्या❓️आंधी की तरह नाम आया और तूफ़ान की तरह लौट गया। देर रात तक भाजपा के मौसम का तापमान बदल गया। पार्टी का अंदरूनी मामला है यह सोच कर चुप रहना बेहतर है।

मसूदा से अब अधिकृत रूप से वीरेन्द्र सिंह कानावत चुनाव मैदान में आ गए हैं। उनका सीधा मुक़ाबला शिवराज सिंह और वाज़िद अली चीता से होता मगर आज अचानक शिव राज सिंह ने भाजपा के उम्मीदवार के समर्थन में मैदान से हटने का फ़ैसला ले लिया। इसके पीछे क्या कारण रहे फ़िलहाल सामने नहीं आए हैं। इसका कारण है कि पिछले चुनावों में वीरेंद्र सिंह की भूमिका पलाड़ा के साथ नहीं थी। अचानक शिव राज सिंह का चुनाव से बाहर हो जाना उनके समर्थकों को ही समझ मे नहीं आ रहा।लोग मान रहे हैं कि भंवर सिंह पलाड़ा ने भाजपा को यहाँ  अभयदान दे दिया है।

इधर सचिन पायलट यदि राकेश पारीक के मुंह से स्वामी भक्ति का कर्ण प्रिय संगीत नहीं सुनते और सचिन सांखला को टिकिट दे देते तो शायद आज कांग्रेस भी चुनावी मुक़ाबले में होती। इस बार पारीक की स्थिति पूरी तरह से डावांडोल बताई जा रहीं है। मतदाताओं के बीच उनके प्रति पहले जैसा न तो आकर्षण है न विश्वास।गरीब सुदामा अब ईश्वर की कृपा से धन धान्य से सम्पन्न हो गए हैं। मोटर साइकिल अब लक्ज़री कार में रेनोवेट हो चुकी है। सचिन उनको टिकिट दिला सकते थे सो उन्होंने दिला दी ।अब वोट तो दिलाने से रहे।गुर्जर मत भी उनको टिकिट नहीं मिलने से नाख़ुश हैं।

इधर बसपा से वाज़िद अली चीता कांग्रेस के परम्परागत मुस्लिम, चीता मेहरात और काठात वोटों को लेकर सबसे सशक्त उम्मीदवार नज़र आ रहे हैं। बसपा का टैग इस बार उनके साथ होने से उन्हें अनुसूचित जाति के वोट भी इस बार मिलने की पूरी सम्भावना हैं। मैदान में ब्रह्म देव कुमावत भी हैं जिनको कम नहीं आंका जा सकता। उनका क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। इसी क्षेत्र में नवीन शर्मा भी इस बार पार्टियों के संतुलन को बिगाड़ेंगे। मगर वे निर्णायक मतों का विभाजन नहीं कर सकते। भाजपा में इस बार रितु कंवर राठौड़, मीनू कंवर और उनके पति सुरेन्द्र सिंह भी चुनाव समीकरण पर अपना प्रभाव छोड़ेंगे।

भाजपा के उम्मीदवार वीरेन्द्र सिंह कानावत राजपूत और स्थानीय होने का लाभ उठा लेंगे क्यों कि शिव राज पलाड़ा उनके पक्ष में आ गए हैं मगर यहाँ बता दूं कि इस बार शिव राज सिंह के हटने से सबसे बड़ा लाभ वाज़िद अली को मिलेगा। पिछली बार उन्होंने चुनाव न लड़ कर ग़रीब ब्राह्मण का साथ देने को सचिन पायलट ने तैयार कर लिया था।इस बार उनको उम्मीद थी कि पार्टी उनको टिकिट दे देगी।उनके साथ सियासती धोखा हुआ। शायद उनको पता था कि सचिन पायलट के रहते उनको टिकिट नहीं मिलेगा इसलिये उन्होंने ऐन वक़्त फ़ैसला बदल लिया। जब भाजपा ने पलाड़ा परिवार को टिकिट नहीं दिया तो उनको तसल्ली थी कि एक मुश्त वोटो के सहारे वह चुनाव जीत जाएंगे मगर शिव राज सिंह पलाड़ा के मैदान में उतरने से इस बार भी उनकी नैया हिचकोले खा रही थी,जो अब वापस संभल गई है।।

देखना होगा कि यहाँ भाजपा के सशक्त दावेदार आशीष सांड का उपयोग कौन और कितना कर पाता है।आशीष वैश्य समाज का बड़ा नाम हैं और वह बड़े मतों पर अपना प्रभाव रखते हैं।

और आईये अब बात हो जाये अजमेर और नसीराबाद की। अजमेर उत्तर से महेन्द्र सिंह रलवाता ने टिकिटों का गला काट युध्द महान योद्धा धर्मेन्द्र राठौड़ से जीत लिया है। उनको टिकिट लाने के लिए विशेष ज़ोर नहीं आता यदि अंत समय में साध्वी अनादि का जलवा गहलोत नहीं दिखाते। टिकिट मिलने की किरण लगभग टिमटिमा ही गई थी मगर सचिन ने जिस तरह हाईकमान पर दवाब बनाया वह ऐतिहासिक ही था।

कहते हैं अंत भला तो सब भला। महेंद्र सिंह रलावता को टिकिट मिलने के बाद उनका सीधा मुक़ाबला वयोवृद्ध वासुदेव देवनानी से न होकर निर्दलीय हमलावर नेता ज्ञान सारस्वत से है। मज़ेदार बात यह है कि जब रलावता को टिकिट नहीं मिला था और टिकट का मिलना असमंजस में था तब ज्ञान सारस्वत और रलवाता के बीच एक गुप्त संधि हुई थी । संधि के तहत ज्ञान को रलावता की तरफ से हर तरह की इमदाद मिलने का समझौता हुआ था।

टिकिट मिलने में हुई देर से अब समझौते की बारह तो बज ही गयी है साथ ही दो मित्रों को आमने सामने लड़ना पड़ रहा है। इसका नुक़सान दोनों को होगा।

भाजपा के ही क्षत्रप कहे जाने वाले लाल सिंह रावत ने पलाड़ा जी की जन शौर्य  पार्टी से नामांकन भर दिया है।क्या वह मैदान में डटे रहेंगे❓️यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है कि देवनानी और पलाड़ा के बीच संबंध बेहद क़रीबी हैं।भाजपा में उनको शामिल करने के लिए देवनानी ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी। क्या पलाड़ा मसूदा की तरह अपने उम्मीदवार को बैठने की राय दे सकते हैं❓️यदि नहीं! तो देवनानी को रावत समाज से मिलने वाले परंपरागत वोट कम हो सकते हैं।

रलावता के मैदान में उतरने से यूँ भी उनका मनोबल टूट चुका होगा। सर्व सिन्धी पंचायत ने हाल ही प्रेसवार्ता में देवनानी को हराने की शपथ ले ली है।

सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने यद्यपि पर्चा दाख़िल कर दिया है और उनको भाजपा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा माना जा रहा है ।देवनानी ने उनका करियर बर्बाद करने में कभी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी इसलिए वे उनकी लुटिया पूरी तरह डुबोने के लिए मैदान में उतरे हैं। सवाल लेकिन यहां यह उठता है कि क्या वह मज़बूती से

 खड़े रह पाएंगे❓️मेरा आंकलन तो कह रहा है कि वे अपना नाम अंत समय मे वापस ले लेंगे।    नसीराबाद में भाजपा मानसिकता के राष्ट्र भक्त भंवर सिंह पलाड़ा ने हुंकार भर दी है। उनके चुनाव में आने के क्या मायने हैं❓️कौन उनके आने से कितना प्रभावी होगा❓️भाजपा के राम स्वरूप लाम्बा या कांग्रेस के शिव प्रकाश गुर्जर पर उनका हमला कितना ख़तरनाक होगा यह फ़िलहाल भले ही नज़र न आ रहा हो मगर पलाड़ा का चुनाव प्रबन्धन राज्य के श्रेष्ठ निशाने बाज़ों में शुमार किया जाता है। रूठो को मनाने!विरोधियों को समझाने! दुश्मनों को ठिकाने लगाने में उनकी रणनीती जग ज़ाहिर है। उनका नसीराबाद से चुनाव लड़ने के पीछे क्या गणित है। यह फिर सही। आज इतना ही।