नाम वापसी के बाद अब झुंझुनूं जिले की 7 विधानसभा सीटों पर टक्कर की तस्वीर स्पष्ट रुप से सामने आ गई है। दोनों प्रमुख पार्टियां, कांग्रेस और भाजपा, सिर्फ तीन ही सीटों पर सीधे मुकाबले में हैं। बाकी तीन सीटों पर त्रिकोणीय, एक पर बहुकोणीय टक्कर होती दिख रही है।
मण्डावा, नवलगढ़ व सूरजगढ़ में भाजपा और कांग्रेस में वन टू वन लड़ाई होगी। वहीं झुंझुनूं, उदयपुरवाटी और पिलानी सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है। खेतड़ी में कांग्रेस-भाजपा के अलावा बसपा और एक पूर्व बसपा विधायक के निर्दलीय लड़ने से बहुकोणीय मुकाबला होगा।
उदयपुरवाटी विधानसभा सीट
यह जिले की सबसे चर्चित सीट है। यहां 2018 के चुनाव की तरह भाजपा से शुभकरण चौधरी व कांग्रेस से भगवाना राम सैनी ही फिर से मैदान में हैं। 2018 में कांग्रेस और भाजपा को चहकते हुए बसपा के राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने जीत दर्ज की थी। बाद में राजेन्द्र गुढ़ा बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होकर मंत्री बन गए थे। गहलोत मंत्रिमंडल से बर्खास्त मंत्री राजेंद्र गुढ़ा 'लाल डायरी' प्रकरण से फिर सुर्ख़ियों में आए। इस बार राजेंद्र गुढ़ा शिवसेना से मैदान में हैं।
जातिगत वोट बैंक पर ही चुनाव में हार जीत का फैसला होगा। माली और गुर्जर वोटों की गणित बहुत महत्वपूर्ण रहेगी। सवाल यह है कि क्या CM गहलोत उनके खिलाफ जमकर बोलने वाले अपने पुराने साथी राजेंद्र गुढ़ा के माली वोट कांग्रेस के माली प्रत्याशी को डलवाने उदयपुरवाटी प्रचार में आएँगे या नहीं। आने पर पायलट से सहानभूति रखने वाले गुर्जर मतदाता छिटकने का डर रहेगा। कुल मिलाकर गुढ़ा के लिए जीतना नाक का सवाल है।
नवलगढ़ विधानसभा सीट
भाजपा ने नए चेहरे विक्रम जाखल को उम्मीदवार बनाया। जाखल 2018 में निर्दलीय लड़े थे। उनके सामने हैं कांग्रेस से सिटींग MLA राजकुमार शर्मा। शर्मा इस क्षेत्र से जीत की हैट ट्रिक लगा चुके हैं। ख़ास बात यह है कि नवलगढ़ में आज तक भाजप कभी नहीं जीती। इस बार कांग्रेस प्रत्याशी शर्मा के कुछ निजी मामलों का साया जाखल को मुकाबले में ला सकता है। लेकिन मोटे तौर पर राजकुमार शर्मा के प्रति मतदाताओं में मुखर नाराजगी नहीं देखी जा रही।
सूरजगढ़ विधानसभा सीटसूरजगढ़ में लड़ाई एक्स एमपी और एक्स MLA के बीच है। भाजपा ने पूर्व सांसद संतोष अहलावत और कांग्रेस ने पूर्व विधायक श्रवण कुमार को एक बार फिर मौका दिया है। हाँ भाजपा के मौजूदा विधायक की टिकट काटने से उसे पार्टी के ही कुछ कार्यकर्ता नुकसान पहुंचा सकते हैं। कोई तीसरा बड़ा योद्धा मैदान में ना होने से जहां वोटर के पास कोई और चॉइस ना होने के कारण सूरजगढ़ में इन दोनों के बीच सीढ़ी फिहगत होने के प्रबल आसार है।
मण्डावा विधानसभा सीट
यह उन सीटों में से है जहां भाजपा ने अपने सांसद को उतारा है। भाजपा से सांसद नरेन्द्र खीचड़ और कांग्रेस से रीटा चौधरी (सिटिंग एमएलए) मैदान में हैं। पिछले चुनाव में इन्हीं नरेंद्र खीचड़ ने रीटा चौधरी को हराया था। खीचड़ के 2019 में सांसद बनने के बाद हुए उप चुनाव में रीटा जीती थीं। दोनों में सीधा मुकाबला है। पिछली बार जैसा चुनाव होने की उम्मीद है। जीत का ज्यादा अंतर नहीं रहने की संभावना है। मुकाबला यहां पर बराबर का रहने की उम्मीद है। दोनों ही पार्टियां यहां पर पूरी जोर आजमाइश कर रही हैं।
झुंझुनूं विधानसभा सीट
झुंझुनूं सीट पर ट्राइऐंग्युलर फाइट होगी। भाजपा के बागी और पूर्व प्रत्याशी राजेन्द्र भांबू निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले चुनाव में भांबू ने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार भाजपा ने टिकट काट दिया है।
भाजपा ने इस बार पिछला चुनाव निर्दलीय लडे़ निषित उर्फ बबलू चौधरी को टिकट दी है। टिकट का खूब विरोध हुआ। झुंझुनूं भाजपा में अभी भी अंदरुनी नाराजगी है। यहां कांग्रेस से बृजेन्द्र सिंह ओला मुकाबले में हैं। हालांकि ओला का इस बार माइनॉरिटी में कुछ जगह विरोध हो रहा है। इस मुकाबले का तीसरा कोण हैं निर्दलीय नामांकन भरने वाले राजेंद्र भांबू की वजह से। गणित यह है कि अपनी जाति से बाहर के वोट बटोरने वाले के सिर जीत का सेहरा बंधेगा।
पिलानी विधानसभा सीट
SC के लिए रिजर्व इस सीट पर कांग्रेस और भाजप के अलावा 6 और उमीदवार ताल थोक रहे हैं। इसीलिए चुनाव इस बार थोड़ा जटिल दिख रहा है। भाजपा और कांग्रेस ने पिलानी में नए चेहरों पर दाव लगाया है। कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक जेपी चंदेलिया का टिकट काटकर पितराम सिंह काला को दिया है तो वहीं भाजपा ने अपने पूर्व कैंडिडेट कैलाश मेघवाल का टिकट काटकर राजेश कुमार दहिया को मैदान में उतारा है। दोनों ही चेहरे नए हैं और पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।
अब बाकी की गणित - भाजपा के पूर्व पदिग्गज कैलाश मेघवाल बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। वे सभी की गणित बिगाड़ सकते हैं। अगर प्रचार में थोड़े कम आक्रामक हुए तो सिर्फ भाजपा को डैमेज कर्नेगे लेकिन अगर अपनी पर आ गए तो कांग्रेस को भी नुकसान पहुंचाएंगे। यहां बसपा, आरएलपी और आप के उम्मीदवार भी मैदान में हैं। कुल मिलाकर समीकरण उस उम्मीदवार के सही बैठेंगे जिसके पास डेडिकेटेड वोटर होगा जो अक्सर बड़ी पार्टियों का होता है लेकिन यहाँ दानों बड़ी पार्टियों के कैंडिडेट नए होने के कारण नतीजे कैलाश मेघवाल के लिए अच्छे आ सकते हैं। वैसे मेघवाल ने जीतकर भाजपा आलाकमान की नाक काटने की बात कही भी है।
खेतड़ी विधानसभा सीट
यहां मुकाबला चाचा बनाम भतीजी का है। चाचा हैं बीजेपी से धर्मपाल गुर्जर और भतीजी हैं कांग्रेस से मनीषा गुर्जर। मनीषा मौजूदा प्रधान हैं और टिकट का पक्का वादा मिलने बाद ही हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुई थीं। कांग्रेस ने यहां अपने मौजूदा विधायक डॉक्टर जितेंद्र सिंह की टिकट काट दी है।
बसपा की टिकट पर चुनाव मैदान में मनोज घुमरिया है, वहीं निर्दलीय के रूप में बसपा के MLA रहे पूर्णमल सैनी भी मैदान में है। यहां मुकाबला काफी रोचक है। यहां सबसे अधिक वोट गुर्जर जाति के है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों गुर्जर को ही टिकट दिए है।
घुमरिया SC और ST के वोटों में सेंध लगाएंगे। यह कांग्रेस का वोट बैंक है। वहीं पूर्णमल सैनी माली वोटों से अपनी ताकत को बढ़ाएंगे। इसलिए मुकाबला बहुकोणीय हो गया है। धर्मपाल गुर्जर पांचवीं बार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। पिछले चुनाव में वो कांग्रेस के जितेंद्र सिंह से बेहद कम अंतर से हारे थे। पार्टी ने एक बार फिर धर्मपाल को मौका दिया है। यह जिले की वो सीट है जो किसी के भी खाते में जा सकती है। देखना होगा प्रचार में कौन कितने वोटर्स तक पहुंचता है।
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