जोधपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

जोधपुर की सरदारपुरा सीट को मुख्य मीडिया भले ही हॉट सीट कहे लेकिन यहाँ चुनावी प्रचार में सब ठंडा है। इस सीट को सीएम अशोक गहलोत लगातार पांच चुनाव जीत चुके हैं और छठवीं बार मैदान में हैं। भाजपा इस सीट पर पिछले 25 साल से भाग्य आजमा रही है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा है। इस बार भाजपा ने यहां शिक्षाविद्-अर्थशास्त्री प्रो. महेंद्र राठौड़ को उतारा है जिसे बहुत लोग गहलोत के लिए 'वॉक ओवर' मान रहे हैं। मतदान में अब 9 दिन ही बचे है, लेकिन यहां का माहौल हॉट सीट जैसा लग नहीं रहा। गली-मोहल्लों में इससे ज्यादा चर्चा तो चुनावी सट्टे और क्रिकेट वर्ल्ड कप की हो रही है।

इस सीट पर CM गहलोत का 'कॉन्फिडेंस' इस बात से समझा जा सकता है कि वे नामांकन के अंतिम दिन यहां पर्चा भरकर गए थे और दिवाली के दिन कार्यकर्ता सम्मेलन कर रणनीति बताई थी। साथ ही जमीनी हकीकत यह है कि गहलोत के निर्देश पर कांग्रेस के पार्षद ही घर-घर जा रहे हैं लेकिन बड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं की फौज गायब है। वैभव गहलोत के मैदान में आते ही यह बदल जाएगा। भाजपा का हाल तो फिलहाल भगवान् भरोसे ही है। मैदान में बड़े नेता व रणनीतिकार दिखाई नहीं दे रहे। प्रत्याशी महेंद्र राठौड़ ही रोजाना गली-मोहल्ले नापते हुए जन संपर्क कर रहे हैं पर उन्हें हर घर पर गहलोत बनाम मोदी की गारंटी में किसका ज्यादा वजन है, इसका अहसास हो रहा है। लोगों का कहना है कि गजेंद्र शेखावत को PM मोदी की सभाओं में उनका साफा सही करने से ही फुर्सत नहीं है।


 
सीट को लेकर कांग्रेस-भाजपा की रणनीति

बिना चुनाव लड़े वर्ष 1998 में पहली बार सीएम बने गहलोत को पटखनी देने के लिए भाजपा ने अब तक कई जातियों का कार्ड खेला लेकिन गहलोत हमेशा अजेय बनकर निकले। सीएम बनने के बाद गहलोत के लिए सबसे पहले तत्कालीन विधायक मानसिंह देवड़ा ने यह सीट खाली की थी। इसके बाद हुए उपचुनाव में गहलोत के सामने भाजपा ने मेघराज लोहिया को उतारा लेकिन जीत नहीं पाए।

इसके बाद 2003 में भाजपा ने महेंद्र झाबक को उतारा लेकिन वह भी हार गए। 2008 में स्वजातीय कार्ड खेलते हुए पूर्व मंत्री राजेंद्र गहलोत को टिकट दिया लेकिन हार ही मिली। 2013 में राजपूत चेहरे शंभूसिंह खेतासर को गहलोत को सामने खड़ा किया लेकिन मोदी लहर के बावजूद वह 18478 वोटों से हारे। इससे पहले गहलोत जोधपुर से पांच बार सांसद रह चुके हैं।

जीत का ग्राफ

गहलोत ने 1999 में पहला चुनाव लड़ा तब भाजपा प्रत्याशी को 49 हजार के अंतर से हराया। 2003 से 2013 के बीच जीत का अंतर घटता गया। गत चुनाव में बढ़त लेते हुए 45 हजार वोट से जीत हासिल की।

वोटर के मन में क्या

किसान कन्या स्कूल के पास रहने वाले प्रदीप कच्छवाह कहते हैं, अभी तो क्रिकेट का माहौल है। पार्षद जरूर घर आ रहे हैं। नयापुरा के रोहित सोलंकी कहते हैं, चुनावी माहौल अंतिम दिनों में ही पता चलेगा। बीजेएस गली सात निवासी मनीषा कंवर कहती हैं, समस्याएं तो हैं, सीएम तक पहुंच नहीं पाते हैं।