चुनाव नतीजों से पहले इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि हर पांच साल पर सत्ता बदलने का रिवाज कायम रहेगा या बदलेगा? पिछले साल हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने बड़ा जोर लगाया था कि रिवाज बदल दे लेकिन रिवाज नहीं बदला। लोगों ने भाजपा की सरकार बदल कर रिवाज कायम रखा। इस बार राजस्थान में उसी तरह कांग्रेस ने जोर लगाया है कि रिवाज न बदले। लेकिन क्या सचमुच ऐसा होगा? इसका अंदाजा किसी को नहीं है। लेकिन चुनाव के बाद मतदान प्रतिशत को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। जिस तरह से हर पांच साल पर राज बदलने का रिवाज है वैसे ही नतीजों में मतदान प्रतिशत का एक रोल है।

राजस्थान में जब मतदान का प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा जीतती है और जब मतदान का प्रतिशत कम होता है या स्थिर रहता है तो कांग्रेस जीतती है। यह कमाल का गणित है। आमतौर पर मतदान प्रतिशत बढ़ने को सत्ता बदलने का संकेत माना जाता है। लेकिन राजस्थान में यह सिर्फ तभी होता है, जब कांग्रेस सत्ता में होती है। यानी कांग्रेस को हटाने के लिए ही ज्यादा मतदान करना होता है। जब भाजपा सत्ता में रहती है तो उसको हराने के लिए भारी मतदान की जरूरत नहीं होती है, बल्कि कम मतदान से भाजपा हारती है।

पिछले 20 साल की बात करें तो भाजपा 2003 में चुनाव जीती थी और तब विधानसभा चुनाव में 1998 के मुकाबले 3.79 फीसदी मतदान ज्यादा हुआ था। लेकिन 2008 में 2003 के मुकाबले करीब एक फीसदी मतदान कम हुआ और कांग्रेस जीत गई। इसी तरह 2013 में 2008 के मुकाबले 8.79 फीसदी मतदान ज्यादा हुआ और भाजपा चुनाव जीती। लेकिन 2018 में 2013 के मुकाबले फिर एक फीसदी मतदान कम हुआ और कांग्रेस जीत गई। पिछली बार 74 फीसदी से कुछ ज्यादा मतदान हुआ था और इस बार भी अंतरिम आंकड़ों के मुताबिक 74 फीसदी थोड़ा ही ज्यादा मतदान हुआ है। यानी हर पांच साल पर भाजपा को जिताने के लिए जो चार फीसदी या आठ फीसदी तक मतदान बढ़ता था वह इस बार नहीं बढ़ा है। तभी राजस्थान में सस्पेंस बढ़ गया है।

(लेखक राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता है। लेख में उनके विचार निजी हैं। राजकाज का विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है।)