बालों से भरी मोटी पूंछ, गहरे रंग से सरोबार और हर समय चौकन्नापन लोमड़ी प्रजाति की विशेषताएं हैं। कहानियों में आपने चतुर चालाक लोमड़ी की बातें बचपन में पढ़ी होंगी। लोमड़ी अपने शिकार को तरह तरह के करतब दिखाती है जिसके कारण कई जीव आकर्षित हो कर इसके निकट आ जाते हैं जिन्हे यह झप्पटा मार कर पकड़ लेती है और दर्शक जीव इसका भोजन बन जाता है। लोमड़ी कभी ऐसे सांस रोक कर जमीन पर पसर जाती है मानो यह मृत है। ऐसे में चील कव्वे जैसे पक्षी इसके पास उतरते हैं तो ये भी इसकी चाल का शिकार बन जाते हैं। किसान की मुर्गी, खरगोश और भेड़ बकरी के बच्चे चुराने में लोमड़ी सदा से बदनाम रही है। अपनी इन्ही चतुराइयों के कारण लोमड़ी उन चंद शिकारी जीवों में से एक है जो मनुष्य के साथ साथ संख्या में बढ़े हैं।

दिन के पहले प्रहर जब सारे जीव जगते हैं तब लोमड़ी की नींद का समय होता है। यह दोपहर की समाप्ति या फिर रात में किसी समय अपने शिकार के लिए निकलती है और अपनी फुर्ती, चालाकी और योजना से कोई न कोई शिकार ले कर ही लौटती है। मादा लोमड़ी कई नर लोमड़ी से दोस्ती करती है और फिर उनमें से किसी एक को अपना जीवनसाथी बनाती है जिसके साथ यह जीवनपर्यंत रहती है। लोमड़ी के बच्चे असहाय एवम् अंधे जन्म लेते हैं जिन्हे मातापिता तथा एक अन्य सहायक मादा लोमड़ी मिलकर पालते हैं। ये बच्चे तीन महीने में पूर्ण विकसित हो जाते हैं और इनकी आंखे भी खुल जाती हैं। अब ये अपना भोजन स्वयं तलासने को जाने लगते हैं।

लोमड़ी खरगोश, मोटे कीड़े, केंचुए, पक्षी और अंडों के अलावा फल भी खाती है। मुर्गियों के दबड़े में लोमड़ी द्वारा बड़ी तबाही की जाती रहती है। लोमड़ी अकेली ही शिकार के लिए निकलती है। चूहे को देख कर लोमड़ी हवा में ऊंची उछलती है ताकि चूहा उसे देख नहीं पाए और यह आसमान के मौत के तरह उस पर झपटती है। किसानों द्वारा मारे जाने के बावजूद लोमड़ी अपनी संख्या को बढ़ाती प्रतीत हो रही है जो इसकी चतुराई से ही संभव है।