संक्रमित भोजन या पानी के सेवन से या फिर बिना हाथ धोए भोजन करने पर हमारी आंतों में हानिकारक बैक्टीरिया बड़ी मात्रा में पहुंच जाते हैं। ऐसा होने पर सबसे पहले तो हमारा आमाशय प्रभावित होता है जिसके फलस्वरूप तीव्र पेट दर्द एवम् उल्टियां होने लगती हैं। आगे चलकर जब आंतों तक संक्रमण फैल जाता है तो अतिसार रोग ( डायरिया ) एक गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। शरीर से पानी बहुत शीघ्रता से बाहर निकल जाता है जोकि रोगी के जीवन को तुरंत प्रभाव से खतरे में डाल देता है। पानी की कमी से शरीर में निर्जलीकरण हो जाता है जिसके फलस्वरूप रक्तचाप ( बीपी ) गिर जाता है। यह स्थिति यदि तेजी से होती है या फिर निर्जलीकरण बड़ी मात्रा में हो जाए तो रोगी की अकाल एवम् आकस्मिक मृत्यु भी हो सकती है। यही कारण है कि अतिसार को अनुभवी चिकित्सक सदैव एक गंभीर रोग मानते हैं।

शरीर में पानी की कमी के साथ लवण पदार्थों ( इलेक्ट्रोलाइट्स ) के रक्त स्तरों में तेज गिरावट एक अति गंभीर स्थिति होती है जो आकस्मिक मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक होती है। ये सब तथ्य स्पष्ट इंगित करते हैं कि अतिसार यानी दस्त रोग को कभी भी हल्के तौर पर नहीं लेना चाहिए। चूंकि यह एक पेट की बीमारी है तो इसमें आपका खानपान अति महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहां पर खानपान दवा जैसा ही कार्य करता है और ज्यादातर लोग उचित भोजन के उपयोग मात्र से ही ठीक हो सकते हैं या फिर दवाओं की आवश्यकता न्यूनतम मात्रा में ही रह जाती है।

सबसे महत्वपूर्ण होता है कि दस्त के हर प्रकरण के बाद एक दो कप पानी का सेवन किया जाए ताकि निर्जलीकरण से बचाव हो सके। यदि उल्टी ज्यादा हो रही हो तो अपने चिकित्सक से संपर्क कर उसे सर्वप्रथम रोका जाना चाहिए ताकि पानी लगातार पीया जा सके। सौंफ, जीरा आदि का पानी पीने में आसान होता हैं और कुछ मात्रा में सेंधा नमक हो तो सोडियम भी प्राप्त हो सकता है। इस तरह के पानी में कई अन्य इलेक्ट्रोलाइट्स भी हो सकते हैं। पर्याप्त पानी का सेवन गंभीर अतिसार रोग में जीवन रक्षक होता है।

भोजन हल्का और शीघ्र पचनेवाला होना चाहिए क्योंकि यह तुरंत रोगमुक्त होने में एक महत्वपूर्ण कदम होता है। केला, सामान्य सफेद चावल, टोस्ट, सेव, उबले आलू, ओटमील, चावल की खिचड़ी आदि पानी को अपने में बांध लेती हैं जिसके फलस्वरूप शरीर से पानी का निकास कम हो जाता है। ये सब भोजन दस्त रोग के प्रथम दिन बहुत उपयोगी होते हैं और आपको अस्पताल जाने से बचा सकते हैं। यहां यह ध्यान रखना है कि सामान्य दो वक्त के भोजन की जगह अतिसार रोगी को थोड़ी मात्रा में हर एक दो घंटे के अंतराल पर भोजन ग्रहण करना विशेष लाभकारी होता है। प्रोबायोटिक आंतों के लाभकारी बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं और हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने में सहायक होते हैं इसलिए दही या केफीर का सेवन करना एक बेहतर निर्णय है। ओआरएस का घोल, सूप, नारियल पानी और कभी कभी स्पोर्ट ड्रिंक्स शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बनाए रखने का अतिमहत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

अतिसार रोग में तेज मिर्च मसाले वाला भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह आंतों की गति को बढ़ाकर ज्यादा पानी एवम् लवणों को शरीर से बाहर करता है। इसी तरह तेल में तले खाद्यान्न, मिठाइयां, फलों का रस, कुल्फी, आइसक्रीम , दूध, ज्यादा मीठे फलों का सेवन नहीं करना चाहिए। अत्यधिक फाइबर ( रेशे ) वाले खाद्यान्न जैसे भूरे चावल, गेहूं या जो की खिचड़ी, बिस्किट्स, केक, बेकरी के खाद्य पदार्थ, सूखे मेवे, बीज और मोटे पिसे आटे की रोटी से भी परहेज रखना चाहिए। सामान्यतया ये सब प्रकार के भोजन आंतों के लिए अच्छे होते हैं परंतु दस्त की बीमारी में ये बैक्टीरिया की संख्या में बहुत वृद्धि कर सकते हैं क्योंकि ये सब आंतों की गति को कम करते हैं। बाहर का खाना, पैक किया भोजन, मटर, बीन्स जैसे फ्रेंच बीन्स, राजमा, चौलाई की फली, चिकपी, पत्ता गोभी, फूल गोबी, ब्रोकोली आदि गैस बनाती हैं,  आसानी से पचती नहीं हैं इसलिए इन सब को उपयोग में नहीं लेना चाहिए।

इसी तरह कॉफी, चाय और सोडा का उपयोग वर्जित है क्योकि ये सब बीमारी को बढ़ा सकते हैं। सोडा युक्त पेय, कृत्रिम मिठास वाले पदार्थ आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए। भय, जल्दबाजी, घबराहट आदि सभी भावनाएं आंतों की गति को तीव्र कर बीमारी को बढ़ाते हैं इसलिए शांत मन और आत्मविश्वास से बीमारी का सामना कीजिए।