पार्किनसन रोग किसी भी अच्छे भले व्यक्ति के जीवन को तहस नहस कर देता है। व्यक्ति की चाल बेहद खराब हो जाती है, उसके हाथों में कम्पन होने से चाय पानी पीना और भोजन ग्रहण करना तक एक जटिल कार्य हो जाता है। कब्ज की वजह से जीवन रस हीन लगने लगता है। पार्किनसन का हर रोगी किसी न किसी मात्रा में अवसादग्रस्त भी होता है। इस रोग का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है। घर की हंसी खुशी गायब हो सकती है। इस व्यथा को वे लोग ही समझ सकते हैं जिनके घर में इस रोग से पीड़ित कोई व्यक्ति होता है। इस बीमारी की जानकारी रखना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बदलती जीवनशैली के साथ यह रोग अब काफी अधिक संख्या में लोगों को प्रभावित करने लगा है तथा भविष्य में बड़ी संख्या में लोग पार्किनसन से प्रभावित हो सकते हैं।

पार्किनसन रोगियों के मस्तिष्क में डोपामिन नामक हार्मोन की कमी या अव्यवस्था के कारण यह विकार विकसित होता है क्योंकि डोपामिन के कारण ही हमारे मस्तिष्क की कोशिकाएं एक दूसरे के साथ एक विशिष्ट फ्रीक्वेंसी पर संपर्क साधे रखती हैं। यदि फ्रीक्वेंसी गायब हो जाए तो कोशिकाएं मनमाने तरीके से कार्य करने लगती हैं जिसके फलस्वरूप पार्किनसन के लक्षण सामने आने लगते हैं। इसी डोपामिन के स्तर को स्थायित्व देने के लिए एक दवा एल डोपा दी जाती है जो रोगी को जीवन पर्यन्त उपयोग में लेनी पड़ती है। इस दवा से रोग का उन्मूलन नहीं होता और कई पीड़ित व्यक्तियों में अच्छे खासे दुष्प्रभाव भी देखे जाते हैं।

शोधकर्ताओं के सदा से प्रयास रहे हैं जिनका उद्देश्य स्थाई उपचार या फिर एल डोपा की कम से कम खुराक द्वारा इस पीड़ाकारक रोग से मुक्ति मिल सके। चूंकि मस्तिष्क एक अति जटिल संरचना है तो यहां पर विकसित हुए अधिकतर रोगों का पूर्ण उपचार होना असम्भव ही होता है। होम्योपैथी और आयुर्वेद के चिकित्सकों के दावे कि वे रोग को जड़ से समाप्त कर देंगे एक तरह की भावनात्मक तथा व्यवसायिक ठगी ही मानी जायेगी। मस्तिष्क संबंधी रोग सिर्फ नियंत्रित किए जा सकते हैं या फिर इनके विकास की गति को धीमा किया जा सकता है। इनसे पूर्ण मुक्ति इक्का दुक्का इंसान को ही मिलती है।

अभी तक पार्किनसन को नियंत्रित करने के लिए खोपड़ी में दो बारीक सुराख कर दो महीन तार मस्तिष्क के विशिष्ठ हिस्सों तक पहुंचा कर वहां के उत्तकों ( टिश्यूज ) को नष्ट किया था। अब एक नई विधि में अति उच्च फ्रीक्वेंसी अल्ट्रासाउंड द्वारा मस्तिष्क के इन टिशूज को नष्ट किया जा रहा है जिसमें कोई सर्जरी नहीं होती, रोगी चंद घंटों में अपने घर जा सकता है और प्रक्रिया के दौरान उसे कोई पीड़ा भी नहीं होती। अति उच्च फ्रीक्वेंसी अल्ट्रासाउंड वैसे ही काम करती हैं जैसे शीशी के टुकड़े से सूरज की रोशनी को किसी कागज पर बिंदुकृत करके आग पैदा की जाती है। पार्किनसन के रोगियों के लिए इलाज का यह तरीका आशा की एक नई किरण है।