यह मछली देखने में लंबी और छरहरी होती है परंतु इसका अग्र भाग बहुत ही प्रभावशाली एवम् डर पैदा करनेवाला होता है क्योंकि दिखने में यह भाग एक आरे जैसा होता है। प्रथम बार इस मछली को देखने पर एक रोमांच सा होता है। चूंकि यह मछली सागर के पैंदे की तरफ रहती है तो आरे जैसे अग्र भाग नरम गीली मिट्टी में गड़ा देती है। ऐसे में वहां की छोटी मछलियां, घोंघे और कीड़े बाहर निकल आते हैं जो आरा मछली का भोजन बन जाते हैं। इसके अलावा जब यह तैरती है तो इस अग्र भाग को लहराते हुए चलती है जिसके फलस्वरूप सागर की अन्य प्रकार की मछलियां आरे से घायल हो जाती हैं और इसका ग्रास बन जाती हैं। यह मछली सॉफिश (आरा मछली ) कहलाती है।

एक अति विशिष्ठ रूप होने के बावजूद यह मछली यदाकदा ही नजर आती है क्योंकि चाहे सागर हो या नदी यह जीव अपने आप को आधे रूप में पानी के पैंदे की नरम मिट्टी में गड़ा कर रखता है। इनका ऊपरी हिस्सा मिट्टी जैसे रंग का होने से यह शिकारियों को नजर नहीं आती है। यह तकरीबन पूरे वर्ष अकेली रहती है तथा इसका सामाजिक जीवन ना के बराबर होता है। यह रात को मिट्टी में या अपनी रिहाइश के आसपास शिकार कर भोजन प्राप्त करती है। हमला करने पर आरे रूपी अग्र भाग से हमलावर को जख्मी कर देती हैं या फिर मार ही डालती हैं।

मादा आरा मछली बच्चों को जन्म देती है जो कुछ दिन अपनी माता के चिपक कर चलते हैं परंतु ज्योंहि उनके अग्र भाग की झिल्ली हट जाती है और उनका आरा तैयार हो जाता है वे स्वतंत्र शिकार करने लगते हैं और अपनी माता से अलग जाकर रहने लगते हैं। अब मछली पकड़ने की आधुनिक तकनीकों तथा इनके रहने के स्थानों पर मनुष्य के अतिक्रमण के फलस्वरूप इन मछलियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।

चूंकि आरा मछली दो साल में एक बार ही बच्चों को जन्म देती है और ये बच्चे युवावस्था में धीमे प्रवेश करते हैं तो इस मछली समूह के लिए अपनी जनसंख्या की क्षतिपूर्ति आसान बात नहीं होती है। छोटी आरा मछली की जनसंख्या में सन 1900 से लेकर अब तक 99 प्रतिशत कमी आ गई है और विश्व संरक्षण संघ के अनुसार इसकी 9 प्रजातियों में से 8 प्रजातियां गंभीर रूप से विलुप्ति के कगार पर हैं। सामान्यतया 30 वर्ष तक जीवित रहनेवाली यह मछली पृथ्वी पर से कभी भी सदा के लिए लुप्त हो सकती है। मनुष्य ही इसका हंता है तो मनुष्य जाति के लोगों की जागरूकता ही इस सुंदर जीव को बचा सकती है।