अजमेर ब्यूरो रिपोर्ट। 

दिगंबर जैन समाज के शिराेमणि संत आचार्य विद्यासागर ने 55 साल पहले अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली थी। यह दिन था 30 जून 1968 का, जिसके साक्षी देशभर के 25 हजार श्रद्धालु बने थे।

दीक्षा स्थल अजमेर के महावीर सर्किल के पास बना है। दीक्षा की स्मृति में अशोक कुमार पाटनी परिवार किशनगढ़ की ओर से देश का सबसे बड़ा 71 फीट का कीर्ति स्तंभ निर्माण कराया गया है।

स्तंभ पर आचार्य विद्यासागर महाराज की पूरी जीवनी को बंशीपुर पहाड़ी के पत्थरों से बेहतरीन नक्काशी से उकेरा गया है, जिसमें जन्म, बचपन, शिक्षा, वैराग्य, दीक्षा और मुनि से लेकर आचार्य पद प्राप्त करने के बाद दिगंबर जैन समाज के सर्वोच्च संत बनने तक की यात्रा बताई गई है। आचार्य विद्यासागर अभी छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में विराज रहे हैं।

आचार्य विद्या सागर महाराज अभी तक 135 मुनि, 170 आर्यिका, 70 क्षुल्लक सहित अन्य दीक्षा दे चुके हैं। अनेक गौ शालाओं का संचालन इन्हीं के नाम से देशभर में हो रहा है।

शुक्रवार को अजमेर दिगंबर जैन समाज में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ दीक्षा दिवस मनाएगा। तिथि के अनुसार दीक्षा दिवस आषाढ़ सुदी पंचमी काे हाेता है। समाज के लाेग तारीख और तिथि के अनुसार दाेनाें ही दिन दीक्षा दिवस मनाते हैं।

आंखों देखी- दीक्षा को देख घोर गर्मी में मेघ भी पिघल गए थे

मेरी उम्र 10 साल रही होगी। मेरे दादाजी स्व. सेठ भागचंद सोनी समाज के साथ दीक्षा की व्यवस्थाओं को संभाले हुए थे। 1968 में 30 जून काे ग्रीष्मकाल में 22 साल की उम्र में मुनि दीक्षा ले रहे विद्यासागर महाराज को देखने के लिए करीब 25 हजार लोग जमा थे। काले घने केश लोचन किए गए तो हर किसी का दिल पसीज गया, साथ ही सवाल भी उठा कि यह कैसे इस कठिन डगर को पार करेंगे? जैसे ही इन्होंने वस्त्रों का त्याग किया, भरी गर्मी में मानो मेघ भी पिघल गए। अचानक बारिश हुई। जयकारों से दीक्षा स्थल गूंज उठा। यह पल जैन समाज की यादों में बसा है।

- प्रमोद सोनी, अध्यक्ष, दिगंबर जैन महासंघ