जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।  

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा है कि सीएम की रेस में कोई भी नहीं है। पार्टी आलाकमान ने साफ कर रखा है कि विधायक दल की बैठक के बाद पार्टी आलाकमान जिसका निर्णय करेगा वही मुख्यमंत्री बनेगा। मैं रेस में नहीं हूं। कोई भी रेस में नहीं है, रेस में तो बीजेपी के कितने नेता हैं, क्या वे मुख्यमंत्री बन जाएंगे?हमारे तो आलाकमान जो फैसला करेगा वही हमारा मुख्यमंत्री बनेगा। डोटासरा जयपुर में मीडिया से बातचीत कर रहे थे।

पत्रकारीय व्यवधान - प्रवीण दत्ता 

इससे पहले आप पीसीसी चीफ डोटासरा की खबर आगे पढ़ें, पहले नीचे दी गई मेरे द्वारा, हाल ही में, एक राष्ट्रीय चैनल के लिए लिखी रिपोर्ट पढ़े लें। हालांकि यह रिपोर्ट न्यूज़ चैनल शैली में है पर मुझे विश्वाश है पाठक इससे बात का मर्म समझ जाएंगे। इससे राजकाज के पाठकों को डोटासरा के कल दिए बयान का असल अर्थ आसानी से समझ में आएगा।   

शेखावाटी तय करेगी जाटों का एक छत्र नेता 

एंकर - राजस्थान की राजनीति में जाट समाज का अपना दबदबा रहा है। नाथूराम मिर्धा, कुंभाराम आर्य, रामनिवास मिर्धा और परसराम मदेरणा जैसे मारवाड़ के दिग्गजों ने अपनी पार्टी और अपने निर्वाचन क्षेत्र से अलग और बड़ी पहचान बनाकर पूरे प्रदेश को अपना लोहा मानने को मजबूर किया। काल चक्र ने बावजूद सबसे अधिक विधायक देने के जाटों को शीर्ष पद से दूर ही रखा। लेकिन यही समय की चक्की एक बार फिर धीरे लेकिन महीन पीस रही है।  2023 की ढ़लती शाम महाराजा सूरजमल के वंशजों को 2024 में नई बहुप्रतीक्षित सुबह का तोहफा दे सकती है और यह अमृत रेत के धोरों में हो रहे राजनीतिक मंथन से निकलने की उम्मीद है।  

VISUAL IN 

VO 1 - धोरों की धरती पर जाट दिग्गजों के अवसान के बाद एक बार फिर जाट राजनीति करवट ले रही है।  यूं तो जाटों का राजस्थान की 30 से 40 सीटों पर दावा रहता है।  2018 में भी विधानसभा में 31 किसान पुत्रों ने अपनी उपस्तिथि दर्ज करवाई थी। पर 2023 में जाट समाज ने 50 सीटों का लक्ष्य रखा है। 

BYTE - जाट महाकुंभ (में जाट को सीम बनाने की बात) 

VO 2 - इस बार सीकर जिले की लक्ष्मणगढ़ सीट जाटों के महासंग्राम की साक्षी होगी। कांग्रेस से तीन बार के विधायक और प्रदेश कांग्रेस के मुखिया गोविन्द सिंह डोटासरा का मुकाबला इसी साल घर लौटे सुभाष महरिया से होगा। ये दोनों 2003 में भी एक दूसरे से इसी सीट से ज़ोर आज़माइश कर चुके हैं। तब शिक्षक पुत्र कांग्रेस के डोटासरा ने भाजपा के उद्यमी सुभाष महरिया को दस हजार से ज्यादा वोटों से पटखनी दी थी। वक़्त ने इन दोनों जाट नेताओं को एक ही कश्ती में ही सवार तब किया था जब महरिया भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आ गए थे और बाकायदा डोटासरा के काम के कायल थे। 

BYTE - सुभाष महरिया (कांग्रेस की आम सभा में बोलते हुए)

VO 3 - इंसान बेशक ना बदले लेकिन वक़्त के साथ उसका किरदार तो बदलता ही है। जादूगर गहलोत की कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति समझना यूं भी हर किसी के बस का नहीं है सो महरिया 2023 का मध्य आते आते घर वापसी कर चुके थे। कारण स्पष्ट था। भाजपा का 'सतीश पूनिया' एक्सपेरिमेंट फेल हो गया था और उसे हर हाल में किसी बड़े जाट चेहरे की जरुरत थी। सुभाष महरिया भाजपा से तीन बार सांसद रह चुके थे सो पुरानी कहावत 'मुझको कोई ठोर नहीं, तुझको कोई और नहीं' चरितार्थ हुई। 2023 में डोटासरा के काम की तारीफ करने वाले महरिया अब उनके राजनीतिक जीवन में नए रंग भरने की बात कर रहे थे तो महज विधायक से 'डिजाइन बॉक्स' को डील करने वाले डोटासरा अब पीसीसी चीफ थे।  

BYTE - सुभाष महरिया (हालिया बयान - रंगीन बना दूंगा) 

BYTE - गोविंद डोटासरा ( हालिया बयान - 2003 में भी आए थे)       

VO 4 - लक्ष्मणगढ़ सीट पर मानों दोनों प्रमुख दलों ने इस 'जाट कांटेस्ट' को पहले से ही तय रखा था। 2023 के विधानसभा चुनाव में इस सियासी जंग के विजेता से बड़ा जाट नेता कम से कम भाजपा और कांग्रेस में तो नहीं होगा। भरतपुर के पूर्व राजघराने के कांग्रेस के मंत्री विश्वेन्द्र सिंह अपनी ठोस पहचान भरतपुर तक ही सीमित रखना चाहते हैं और आरएलपी के हनुमान बेनीवाल अभी जाट समाज के बड़ों से अलग दलित गठजोड़ करके खुद को सिर्फ चुनाव नतीज़ों के बाद बहुमत से दूर पार्टियों के लिए लिमिटेड रख जल्द से जल्द सत्ता में भागीदारी का सपना पाले हुए हैं।    

कानाफूसी है कि कांग्रेस ने चुनाव के बाद की जरुरत के लिए बेनीवाल को सेट कर लिया है। माने जाट राजनीति का जैकपॉट तो शेखावाटी में ही खुलेगा।  डोटासरा ने अभी तक महरिया के ध्यान भटकाने के सभी वार असफल किए हैं और वे अपने चुनाव को अपनी विकास यात्रा की उपलब्धियों पर ही केंद्रित रख रहे हैं पर भाजपा और महरिया पेपर लीक और थोक में आरएएस जैसे मुद्दों को तूल देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। 

जाट वोटों को आपस में ये दोनों किस अनुपात में बांटते हैं यह तय होने के बाद जो मुद्दे भाजपा जोर शोर से उठा रही है उनमें से बेरोजगारी और महिला सुरक्षा में वो डोटासरा को पीछे छोड़ती दिखती है। जातिगत जनगणना के मुद्दे को कांग्रेस इतना देरी से लेकर आई कि जाट और अन्य ओबीसी इस पर लामबंद हो ही नहीं पा रहे और इसे 2024 के लोकसभा चुनाव का मुद्दा मान रहे हैं। हां सीकर जिले का सरकारी कर्मचारी OPS और अग्निवीर जैसे मुद्दों पर एक तरफा कांग्रेस के साथ है। गहलोत की गारंटियों के अलावा शायद यही वो जादू की छड़ी है जो डोटासरा और गहलोत को रिपीट का सपना बार बार दिखा रही है और इसी सपने ने जाटों के एक बड़े सपने को भी उड़ान दे रखी है।

पत्रकारीय व्यवधान समाप्त - अब खबर आगे पढ़िए। व्यवधान के लिए पत्रकारीय क्षमा। 

डोटासरा ने कहा- पेपर लीक के मुद्दों को राजस्थान की जनता ने, युवा ने सिरे से खारिज किया। बीजेपी के पास मुद्दे नहीं थे, इसलिए इस मुद्दे को उठाया गया। मेरे लिए तो कुछ मेहमान दिल्ली से भी भेजे गए थे उससे और भी ज्यादा उत्साह कार्यकर्ताओं में आया। हर षड्यंत्र में बीजेपी फेल हुई है।

निर्दलीय और अन्य पार्टियों के विधायक बीजेपी नहीं कांग्रेस के पास आएंगे

निर्दलीयों से संपर्क के सवाल पर डोटासरा ने कहा- जब हमारा पूर्ण बहुमत आ रहा है तो निर्दलीय जीतकर आ रहे नेताओं से संपर्क का सवाल ही नहीं उठता। भाजपा और कांग्रेस में जमीन आसमान का अंतर है। भाजपा में आपसी विश्वास की खाई गहरी है। जो भी निर्दलीय या बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं उन्होंने हमारा पिछला कार्यकाल देखा है, वे भाजपा के साथ नहीं हमारे साथ होंगे। पिछली बार भी सारे निर्दलीयों ने और अन्य पार्टियों ने हमें समर्थन दिया था, आगे भी ऐसा ट्रेंड रहेगा। हमे पूर्ण बहुमत मिल रहा है लेकिन उसके अलावा जो कोई भी जीतेगा वह विकास और गुड गवर्नेंस को वोट करेंगे। वैसे भी भाजपा में तानाशाही और कांग्रेस में लोकतंत्र है, इसलिए जो बीजेपी के अलावा जीत कर आएंगे वह हमारा साथ देंगे।

योजनाओं के कारण महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की
डोटासरा ने कहा- राजस्थान में बीजेपी में आपसी फूट थी। बीजेपी में सात आठ मुख्यमंत्री के स्वयंभू कैंडिडेट बने हुए थे, उन्होंने राजस्थान का मुद्दा कोई नहीं उठाया। हमारी सरकार का सबसे बड़ा काम सोशल सिक्योरिटी का था, उसमें ओपीएस प्रमुख बात है जो कर्मचारी को सिक्योरिटी देती है। इसके अलावा चाहे पेंशन हो, 25 लाख के इलाज की बात हो, महिलाओं के फ्री मोबाइल हो सब शानदार स्कीम्स हैं, महिलाओं ने इसीलिए पुरुषों से ज्यादा मतदान किया है। युवाओं ने भी वोट दिया है, भाजपा पहले भी नौकरी देने के मामले में हमसे पीछे थी, अब भी पीछे है। जो रुझान आ रहे हैं उसे यही निकाल कर आ रहा है की राज नहीं रिवाज बदलेगा और पूर्ण बहुमत से सरकार आएगी।