विश्व के हर भाग में चांद को लेकर किवदंतियां प्रतिष्ठित हैं। लोक कहानियों में चांद मामा होता है, सुहाग का रक्षक होता है या फिर ईद और कई कबीलों में अन्य कई त्योंहारों का प्रतीक होता है। कहीं चांद कुंडलिनी जागरण करता है तो कोई मानता है कि चांद प्रेतात्माओं को जगाता है। कुछ समाजों में चांद की कारण ही असंख्य लोगों में पागलपन या फिर मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। असंख्य लोग मानते हैं कि पूरा चांद जब समुद्र को उद्वेलित कर सकता है तो फिर मानव मन में भी तरह तरह की भावनाओं को उफान भी दे सकता है। इन सब अनंत समय से चली आ रही धारणाओं  का शोधकर्ता अध्ययन करते रहे हैं।विभिन्न शोध पूरे चांद का कोई विशिष्ट प्रभाव मानव शरीर या मन पर नहीं देख पाए हैं।

काफी लोग मानते हैं कि चांद गर्भस्थ शिशु या शिशु के जन्म को प्रभावित करता है परंतु कोई भी अध्ययन इस बात को सिद्ध नहीं कर पाया हैं। पाया गया है कि लोग किसी अप्रत्याशित घटना को चांद से जोड़ देते हैं जो कालांतर में एक मान्यता का रूप ले लेती है। आम लोग वैज्ञानिक प्रमाणों एवम् अन्वेषण की जटिलता से परहेज रखते हैं और सदा शॉर्टकट की तलाश में रहते हैं इसलिए समय के साथ और सारे वैज्ञानिक विकास के बावजूद लोग किवदंतियों पर अटूट विश्वास रखते हैं और अब तो राजनीतिक कारणों से उन्हें अपने सांस्कृतिक तथा बौद्धिक विकास का प्रतीक सिद्ध करने में जुटे हुए है। तर्क की सीमा होती है पर कुतर्क की कोई सीमा नहीं होती है इसलिए निरर्थक सदैव सर्वव्यापी रहा है।

थोमस एडिसन द्वारा विकसित बिजली बल्ब के पहले पूरे चांद की रोशनी ही रात्रिकाल को जगमग करती थी। यह रोशनी सूर्य की रोशनी से हालांकि बहुत कम होती है पर फिर भी रोशनी तो है ही। हालांकि आज की जगमग रातों में हम शहरी इसका महत्व भूल चुके हैं पर दूर दराज में आज भी चांदनी रातों में लोग देर रात कामकाज या फिर गपशप करते रहते हैं। ऐसे में चांदनी रात में लोग अक्सर कम सो पाते है जिसके फलस्वरूप अगले दिन उनमें ऊर्जा की कमी रहती है। प्राचीन में अंधेरी रातों से भयभीत युवा लोग चांदनी रातों में छत या खिड़कियों से एक दूसरे से इशारेबाजी करते थे। युवा प्रेम से भयभीत बुजुर्गों ने चांद का संबंध पागलपन से जोड़ इन युवा हरकतों पर रोक लगाने का प्रयास किया था जिसमें वे सफल भी हुए थे। आज मोबाइल फोन के जमाने में युवाओं को चांदनी की न तो आवश्यकता है और ना ही उन्हें इसका कोई आभास है क्योंकि आज तो हर राज एक जगमगाती रात है।

कितने ही अध्ययन स्पष्ट बता चुके हैं कि पूरे चांद का मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है। एक बात अवश्य देखी गई है कि चांदनी रातों में सड़क दुर्घटनाएं अधिक होती हैं परंतु इनके पीछे चांद का कोई सीधा प्रभाव नहीं होता है। होता यह है कि चांदनी की वजह से लोग गाड़ियां तेज चलाते है और साथ में आसपास के सुहाने दृश्यों की क्षणिक झलक भी लेना चाहते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि तेज गति और ध्यान हटना ही इन दुर्घटनाओं का असली करना है। इन मानवीय असावधानियों का जिम्मेदार चांद को मनाना उचित नहीं है। चांद की चांदनी एक सामान्य और सुनिश्चित समय पर बार बार घटनेवाली खगोलीय प्रक्रिया है इसलिए इसे इसी संदर्भ में देखना अधिक उचित होगा।