यूरोप और अमेरिका हो , मुंबई या नोएडा, जब भी जहां पर बसंत का आगमन होता है दूर देशों से पक्षी उस तरफ उड़े आते हैं। पृथ्वी के किसी भी भाग में भीषण होती गर्मी या सर्दी के आगमन से पहले ही वहां के पक्षी दूर देश की यात्रा पर निकल पड़ते हैं जहां वे चंद महीने गुजारते हैं, अंडे भी देते हैं और नवजात चूजों को पालते पोसते और उड़ने का प्रशिक्षण देते हैं। पक्षियों के मस्तिष्क में प्रकृति प्रदत्त कंपास होता है जो उन्हे तारों की स्थिति तथा सूरज और चांद की गति के अनुसार दिशा बोध करवाता है। ये पक्षी सामान्यतया किसी बहुमंजिला इमारत की सातवीं मंजिल जितनी ऊंचाई तक उड़ते हैं। किसी बहुंजिला इमारत के सफाई कर्मचारियों के लिए सुबह के समय धरती पर मृत पक्षी पाया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है परंतु निरीह पक्षियों के लिए यह अस्तित्व का सवाल हो सकता है।

अमेरिका में हुए एक सर्वे के अनुसार सन 2014 में वहां बहुमंजिला इमारतों के पारदर्शी शीशों से टकरा कर अंदाजन 100 करोड़ पक्षी मारे गए। यह एक भयावह स्थिति एवम् संख्या है। शिकागो विश्व का सबसे बड़ा पक्षी हंता शहर बन कर सामने आया है। तकरीबन पूरे विश्व में पक्षी हीन होता आसमान यही इंगित करता है कि मानवीय भूल चूक पृथ्वी के हर सौंदर्य को नष्ट कर रही है। नव वर्ष के आगमन पर आतिशबाजी, दीपावली पर दीपमालाओं की जगह कानफोडू पटाखे, पशुओं के खून से लाल होती मोहल्लों की नालियां आदि मनुष्य की नादानियों और कुंठित भय वासनाओं का प्रतीक मात्र हैं जिन्हे भीडतंत्र ने धर्म और संस्कृति का नाम दे दिया है। ईश्वर के नाम पर, ईश्वर प्राप्ति के लिए ईश्वर निर्मित जीव जंतुओं का नाश विनाश किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हो सकता है परंतु बहुमत कहता है कि हम तो मारेंगे, काटेंगे हमारी मर्जी ! ईश्वर कोई तेरी मेरी मान्यता थोड़े ही है। अस्तित्व ही तो ईश्वर है। अस्तित्व को नष्ट कर कौनसा भगवान ढूंढ रहे हैं लोग?

जब बहुमंजिला इमारतें होंगी तो प्रकाश एवम् परिदृश्य दर्शन के लिए खिड़कियों और ड्राइंग रूम के लिए बड़े पारदर्शी शीशे होंगे। शीशों के पास लोग कुछ इंडोर पौधे भी रखेंगे और रोशनी की लिए पीले बल्ब भी लगाए जायेंगे जो पक्षी को तारे होने का अहसास देते हैं। पौधे को पक्षी पेड़ की सर्वोच्च टहनी समझता है। दूर की यात्रा से थका पक्षी इस माहौल में तेज फर्राटा लगा कर टहनी तक पहुंचना चाहता है और थड्ढ से पारदर्शी शीशे से टकरा जाता है। मस्तिष्क और गर्दन पर लगे इस आघात से करोड़ों पक्षी सालाना मर रहे हैं पर जनचेतना के अभाव में इस क्षैत्र में कोई बड़े प्रयास नहीं हो रहे हैं।

इमारत की प्रथम 7-8 मंजिलों में पारदर्शी शीशों पर रोक,   पक्षी जाल का उपयोग, पौधों को शीशों की बजाय दीवार के पास रखना और बल्ब को दीवार की बजाय छत में लगाना आदि चंद कदम करोड़ों पक्षियों का जीवन बचा सकते हैं। शहर हो या गांव, नदी या खलिहान आपने यदि गौर से नजरें फैलाई या ध्यान से सुना तो पाएंगे कि समय के साथ पक्षियों की चहचहाट कम होती जा रही है। इसका कारण मुंबई, मनहट्टन, शिकागो, दुबई, दिल्ली या लंदन की बहुमंजिला इमारतों के कूड़ेदानों में पड़े असंख्य मृत पक्षी हैं।