जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

घट स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र शुरू हो चुका है। शक्ति आराधना का पर्व नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। आज से घर-घर मां भगवती की आराधना होंगी। शारदीय नवरात्र 15 से 23 अक्टूबर तक होंगे। नौ दिन श्रद्धालु मां भगवती और प्रभु श्रीराम की साधना में लीन रहेंगे। शुभ मुहूर्त में घट स्थापना के साथ नवरात्र का शुभारंभ हो रहा है।


राजराजेश्वरी मंदिर


छोटी काशी कहे जाने वाले जयपुर के मां दुर्गा के मंदिरों में शारदीय नवरात्र की तैयारियां देर रात तक चलती रही। आमेर के शिला माता, मनसा माता, दुर्गापुरा के दुर्गा माता, पुरानी बस्ती के रूद्र घंटेश्वरी, घाटगेट श्मशान स्थित काली माता मंदिर, झालाना पहाड़ी स्थित कालक्या मंदिर, ब्रह्मपुरी स्थित काली माता मंदिर,आमागढ़ स्थित अंबा माता, दिल्ली रोड स्थित राजराजेश्वरी मंदिर में भी घट स्थापना के बाद नौ दिन विशेष आराधना की जाएगी।


मंदिर के मुख्य पुजारी बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि आमेर स्थित शिला माता मंदिर में घट स्थापना अभिजीत मुहुर्त में दोपहर 11:55 बजे होगी। घट स्थापना के बाद श्रद्धालु 12.55 बजे से माता रानी केदर्शन कर सकेंगे। नवरात्र के 9 दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाएगा। इस दौरान 10 महाविद्याओं के पाठ और प्रतिदिन हवन करने के साथ कन्या बटुक का पूजन होता है। माता को ऋतु फूलों के साथ स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाएगा। जिसके दर्शन भक्त अगले 10 दिनों तक कर सकेंगे। सोने के आभूषण से शृंगार केवल नवरात्र में किया जाता है। बाकी दिनों में माता को रजत आभूषण धारण कराए जाते है। माता के दर्शन के लिए पूर्व राजपरिवार के सदस्य भी मंदिर आएंगे।

महाराजा ने बनवाया था सोने का पोशाक

पुजारी बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि माता का पूर्व राजपरिवार से आए स्वर्ण जड़ित पोशाक से शृंगार होगा। माता को 10 दिनों तक लगभग 100 साल पुराने पारंपरिक जड़ी के पोशाक के साथ विशेष फूलों से सजाया जाएगा। इस पोशाक को महाराजा मान सिंह द्वितीय ने बनवाया था। इसमें पूरा काम सोने से किया गया है। महाराजा के समय से ही नवरात्र में माता को यह पोशाक धारण कराई जाती है। यह पोशाक नवरात्र के अलावा दिवाली और होली पर भी धारण होती है।

इस दौरान आमेर महल में मेला भरेगा। नवरात्र को लेकर मंदिर में विशेष तैयारियां की गई है। आमेर महल परिसर के अंदर दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचेंगे। इसे लेकर महिला-पुरूष के लिए अलग-अलग लाईनों की व्यवस्था की गई है। धूप से बचाव के लिए टेंट लगाकर छाया की गई है। भक्तों की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम किए गए है। मंदिर की सुरक्षा में लगे जवानों के अलावा आमेर थाने के पुलिस जाप्ते के साथ स्पेशल पुलिस की टीमें भी रहेंगी। वहीं सीसीटीवी ओर मेटल डीटेक्टर के जरिए भी सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।

लाल रंग की चूनरी धारण करेंगी कनक घाटी स्थित मनसा माता

ठिकाना मंदिर गोविंद देवजी के अधीनस्थ कनक घाटी स्थित मनसा माता मंदिर में घट स्थापना सुबह 9:15 से 11:15 बजे तक होगी। घट स्थापना के बाद कल्पारंभ विहत पूजा, व्रत आंरभ, चंडी पाठ,श्रृंगार, भोग, आरती और पुष्पाजंलि के कार्यक्रम होंगे। गोविंद देवजी मंदिर के प्रबंधक मानस गोस्वामी ने बताया कि दर्शन समय सुबह साढ़े पांच से साढ़े छह, साढ़े आठ से पौने बारह बजे तक तथा शाम को साढ़े पांच से रात्रि साढ़े आठ बजे तक होंगे। पंचवटी सर्किल राजापार्क स्थित वैष्णो देवी मंदिर में सुबह छह बजे घट स्थापना की जाएगी। मातारानी को लाल रंग की चूनरी धारण कराई जाएगी।

जयपुर का ढाई सौ साल पुराना राजराजेश्वरी माता का मंदिर जिसका इतिहास यहां के राजा सवाई प्रताप सिंह से जुड़ा हुआ है। मंदिर दिल्ली नेशनल हाईवे के बंध की घाटी के नीचे मान बाग में स्थित है यह मंदिर तंत्र-मंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है। जहां पर माता की मूर्ति के अलावा दसभुज हनुमानजी, अष्टभुजा भैरव और पंचमुखी महादेव भी विराजमान हैं। दशनामी संप्रदाय के मंदिर महंत बद्री पुरी बताते है कि यह मंदिर प्राचीन काल में तंत्र मंत्र साधना का प्रमुख केंद्र था। तांत्रिक पद्धतियों को सिद्ध करने के लिए जूना अखाड़े के सन्यासी यहां साधना किया करते थे। मंदिर परिसर में ही कई पूर्व सन्यासियों के जीवित समाधियां भी है जहां पर शिवलिंग स्थापित किए गए हैं। वही सालों पुराना धुणा भी है जहां पर लगातार जोत प्रज्ज्वलित रहती है।

राज दिलवाने वाली माता राज-राजेश्वरी

मंदिर के महंत ने बताया - जूना अखाड़े के सन्यासी अमृतपुरी महाराज इस मंदिर में साधना किया करते थे। उस वक्त राजा सवाई प्रताप सिंह मराठा सेना से पराजित होकर भटकते हुए जंगल में स्थित मंदिर में पहुंचे यहां पर उनकी भेंट सिद्ध संत अमृतपुरी महाराज से हुई। संत ने महाराजा को युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया और कहा कि राज-राजेश्वरी माता तुम्हें युद्ध में विजय दिलाएगी। जीत के बाद यहां माता के मंदिर का निर्माण करवाना। महाराजा ने दोबारा युद्ध भूमि में जाकर युद्ध किया और विजयश्री प्राप्त की। युद्ध से लौटकर राजा ने मंदिर का निर्माण करवाया। यहां पर दो पुराने बावड़ी है इसके साथ ही एक अतिप्राचीन कुआं भी है।

मंदिर महंत ने बताया मंदिर में सुबह घट स्थापना के साथ 11 पंडित 9 दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करेंगे। इसके साथ हीं तंत्र साधना के लिए हवन किए जाएंगे।

नाथ संप्रदाय का अन्नपूर्णेश्वरी माता मंदिर

तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर नाथ संप्रदाय के गुरू-शिष्य परंपरा पर आधारित है। तांत्रिक साधना के लिए काशी स्थित अन्नपूर्णेश्वरी माता मंदिर के बाद यह मंदिर दूसरे स्थान पर आता है। जहां 13 जीवित समाधियां है। मंदिर के पुजारी योगेश पुरी बताते है कि यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष प्राचीन है।

नवरात्र के 9 दिनों तक यहां 21 पंडित शक्ति की आराधना करेंगे। यहां देवी की आराधना के लिए वेदी तैयार किए गए है। जहां घट स्थापना कर दुर्गासप्तशति के पाठ किए जाएंगे।