जयपुर/बांसवाड़ा/डूंगरपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) से अलग होकर भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) की तीसरी सूची में चार उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। BAP ने सागवाड़ा - मोहनलाल रोत,डूंगरपुर - कांतिलाल रोत,गढ़ी (बांसवाड़ा) - मणिलाल गरासिया और झाड़ोल (उदयपुर) - दिनेश पांडोर के नाम घोषित किए गए हैं।

इससे पहले पार्टी ने 26 अक्टूबर को पहली सूची 10 उम्मीदवारों की घोषित की गई थी। जिसमें पिंडवाड़ा - मेघाराम गरासिया,खेरवाड़ा - विनोद कुमार मीणा,उदयपुर ग्रामीण - अमित कुमार खराड़ी,सलूंबर - जीतेश कुमार मीणा,धरियावद - थावरचंद मीणा,आसपुर - उमेश मीणा चौरासी - राजकुमार रोत,घाटोल - अशोक कुमार निनामा,बड़ी सादड़ी - फौजी लाल मीणा,प्रतापगढ़ - मांगीलाल मीणा उम्मीदवार घोषित किए गए थे। भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) की इसके बाद दूसरी लिस्ट में जारी 5 उम्मीदवारों कीघोषित की गई थी। जिसमें गोगुंदा - उदय लाल भील, बांसवाड़ा - हेमंत कुमार राणा, बागीदौरा - जयकृष्णा पटेल, कुशलगढ़ - राजेंद्र आमलियार,मांडलगढ़ - भावना गुर्जर उम्मीदवार घोषित किए गए थे।

इन चार उम्मीदवारों की घोषणा के बाद भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) ने अब तक 19 उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया है। खास बात यह है कि 2018 में सागवाड़ा से रामप्रसाद डिंडोर BTP से पहली बार चुनाव लडे़ और जीते थे। पर इस बार उनका टिकट काट दिया गया। सागवाड़ा विधानसभा सीट से इस बार बाप के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलाल रोत खुद मैदान में लड़ेंगे। मोहनलाल रोत पहली बार चुनाव लड़ेंगे। इस सूची में दुनागरपुर से BAP के डूंगरपुर से प्रत्याक्षी कांतिलाल इससे पहले BTP से लोकसभा चुनाव लड़ चुके है, पर वे हार गए थे और तीसरे नंबर पर रहे थे। 

इधर राजकाज को अपने सूत्रों से पता चला है कि BTP मुख्यमंत्री गहलोत के साथ आदिवासी सीटों पर गठबंधन की भी बातचीत कर रही थी। यदि ऐसा हो पाता तो BTP शायद ही इतनी सीटों पर चुनाव लड़ पाती क्योंकि गहलोत उन्हें अधिक से अधिक 4-5 सीटें देने के पक्षधर थे।  ये सीटें बांसवाड़ा और डूंगपुर में सीमित हैं और इनमें बागीदौरा जैसी 'कांग्रेस के मूंछ का बाल' सीट तो कांग्रेस कभी नहीं छोड़ सकती जहांसे उसके कद्दावर नेता महेन्द्रजीत सिंह मालवीय चुनाव लड़ रहे हैं। BAP द्वारा अभी तक घोषित 19 सीटों पर तो कांग्रेस अब तक ख़म ठोकती ही रही है। कुल मिलाकर आदिवासी सीटों पर BTP और BAP के उम्मीदवार कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचाएंगे और यदि 2018 में शुरु हुई स्थानीय मूल आदिवासी इस बार जोर पकड़ गई तो यह इकलौता इलाका ही प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा की नींव रख देगा।