जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

हाई कोर्ट के आदेशों और नगरीय भूमि निष्‍पादन नियम 1974 की उड़ाई धज्जियां

जयपुर। राजस्‍थान उच्‍च न्‍यायालय के 3 जुलाई, 2013 के विधि अनुसार ही कार्य करने के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए जयपुर विकास प्राधिकरण के आयुक्‍त जोगाराम एवं सचिव नलिनी कठौतिया ने राज्‍य सरकार के 8 मंत्रियों की एम्‍पावर्ड कमेटी के साथ मिलीभगत  कर 571 निर्दोष पत्रकार आवंटियों के साथ अनैतिकता की सारी हदें पार कर दी। साथ ही कानून का मखौल बनाने में भी रत्‍ती भर कसर नहीं छोड़ी। ये सारे कुकृत्‍य पत्रकारों के साथ किए गए हैं तो प्रदेश की जनता का तो भगवान ही मालिक है। 

असल में मामला ये है कि कांग्रेस सरकार ने आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेसी विचारधारा रखने वाले और कांग्रेसी कार्यकर्ता की तरह कार्य करने वाले चुनिंदा पत्रकारों को लाभ देने के लिए ऐसा गेम प्‍लान किया है, जिसमें 10 साल से पीडि़त 571 पत्रकार और उनके  परिवार अपनी सुरक्षा में अपने न्‍यायिक  अधिकारों का भी उपयोग न कर सके। 

नियमानुसार आवंटियों को आज तक कोई जवाब व सुनवाई नहीं

साल 2010 में सरकार के 20 अक्‍टूबर, 2010 के नगरीय भूमि निष्‍पादन नियम 1974 में अधिस्‍वीकरण की अनिवार्यता से शिथिलता के आदेश से पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला का सृजन किया गया था, जिसमें तत्‍कालीन यूडीएच सचिव जीएस संधू की अध्‍यक्षता और जेडीसी कुलदीप रांका व अन्‍य की सदस्‍यता वाली उच्‍च स्‍तरीय पत्रकार आवास समिति ने 571 पात्र आवेदकों को चयन में सफल घोषित किया था। तत्‍कालीन यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल, संधू और कुलदीप रांका व अन्‍य ने ही जेडीए में सभी 571 को लॉटरी निकालकर भूखंड भी आवंटित कर दिया था। इसके बाद सभी आवंटियों से 10-10  हजार रुपए की अग्रिम राशि योजना के खाते में जमा भी कर ली गई थी, लेकिन योजना के ब्रोशर में नगरीय भूमि निष्‍पादन नियम 1974 में अधिस्‍वीकरण से शिथिलता के बावजूद जेडीए ने अंत में पट्टा लेने के लिए अधिस्‍वीकरण प्रस्‍तुत करने को अंकित कर दिया था। 16 सितम्‍बर, 2013 को राजस्‍थान उच्‍च न्‍यायालय में मामले की दूसरी सुनवाई के दौरान जेडीए ने अपनी  लिपीकीय त्रुटि करार दिया था। जिस पर न्‍यायालय ने फटकार भी लगाई थी कि 3 जुलाई, 2013  के निर्णय में जेडीए को 15 दिन में विधि सम्‍मत कार्य  करने को कहा गया था, लेकिन जेडीए ने न तो ब्रोशर को खारिज किया और न ही कोई विधि सम्‍मत कार्यवाही की है। और कुछ किए बिना पुन: न्‍यायालय से नए  निर्देश मांगकर न्‍यायालय का ही समय खराब करने का प्रयास  किया है। 

इतने स्‍पष्‍ट निर्णयों के बावजूद 10 साल से 571 आवंटी जेडीए और सरकार को यह पूछते फिर रहे हैं कि उन्‍हें किस कारण से प्‍लॉट नहीं दिए जा रहे, लेकिन अचानक चुनाव आचार संहिता को देखते हुए सरकार ने 571 भूखंडों को बिना निरस्‍त किए, आवंटियों को बिना उनके रुपए लौटाए और बिना कोई सूचना दिए इन  प्‍लॉटों की दुबारा बिक्री के आवेदन शुरू कर दिए है। शर्मनाक बात है कि आनन फानन में एक व दो अक्‍टूबर को छुट्टी के दिन और तीन अक्‍टूबर तक आवेदन मांगे गए हैं और तुरंत 5 अक्‍टूबर को लॉटरी निकालकर पुराने 571 पत्रकारों का किस्‍सा समाप्‍त करने की योजना बनाई गई है।

गौरतलब है कि राजस्‍थान नगरीय भूमि निष्‍पादन नियम 1974 में किसी भी योजना में आवेदन के लिए 15 दिन का न्‍यूनतम समय दिए जाने की अनिवार्यता है। 

जेडीसी जोगाराम व सचिव नलिनी ने एम्‍पावर्ड कमेटी के मंत्रियो और महाधिवक्‍ता जीएस सिंघवी से मिलकर मिलीभगत कर खेल यूं रचा कि 571 पत्रकारों के परिवारों के प्‍लॉट लूट लिए जाए और वे बचाव में इसके खिलाफ न्‍यायालय की शरण भी न ले सकें। और इसके बाद कांग्रेस सरकार को चुनावों में लाभ दिलाने को प्रतिबद्ध पत्रकारों को चार दिन बाद बिना कोई चयन प्रक्रिया अपनाए लॉटरी निकालकर उसी समय पट्टे भी बांटने पर कार्य किया जा रहा है। पत्रकारों को खरीदने और चुनाव फिक्सिंग का इतना बड़ा खेल कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार की महान उपलब्धि साबित होने वाली है। 

एजी से झूठ लिखवाया कि नियम 1974 में शिथिलता नहीं है

इस प्रक्रिया में सबसे पहले महाधिवक्‍ता से यह लिखवाया गया कि योजना में नगरीय भूमि निष्‍पादन नियम 1974 के तहत अधिस्‍वीकरण से शिथिलता नहीं है, जिस कारण 559 गैर अधिस्‍वीकृत पत्रकारों का जीएस संधू एवं कुलदीप रांका की कमेटी ने गलत चयन कर लिया है। अब इसमें यह शिथिलता दे दी जाए, लेकिन नई शिथिलता के चलते अन्‍य आवेदकों को भी एक अवसर और देना अनिवार्य होगा। अव्‍वल तो महाधिवक्‍ता से यह बात छिपाई गई कि इसमें सरकार के ही 20 अक्‍टूबर, 2010 के आदेश के अनुसार यह शिथिलता देकर ही योजना का सृजन किया गया था। जेडीए यह लिखते समय यह भू‍ल गया कि 16 सितम्‍बर, 2013 में खुद राजस्‍थान उच्‍च न्‍यायालय में बात कही गई थी कि योजना का सृजन नियम 1974 में शिथिलता से किया गया है और इसमें अधिस्‍वीकरण जरूरी नहीं था। और  इसके बाद महाधिवक्‍ता जी राय दे देते हैं कि शिथिलता नहीं है, अब शिथिलता दे दी जाए। पूरे गेम प्‍लान में एजी ने भी यह नहीं कहा था कि पुराने आवेदकों से दुबारा आवेदन लिए जाए, उन्‍होंने इतना कहा था कि पुराने आवेदकों को वरीयता नहीं दी जा सकेगी। जोगााराम महोदय ने सभी पुराने आवेदनों को निरस्‍त बताते हुए दुबारा आवेदन के लिए बाध्‍य कर दिया है। क्‍योंकि वे जानते हैं कि 13 साल  बाद अनेक आवंटी मर चुके हैं, जिनके परिजनों से आवंटित प्‍लॉट आसानी से छीन लेंगे और डेढ़ सौ के करीब अब समाचार पत्रों के ही खिलाफ मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई में हैं तो वे भी आवेदन की शर्तों से बाहर होंगे। इसके अलावा अनेक नौकरी चढ़ चुके हैं। इसी योजना में पहले से जमा 10 हजार रुपए लौटाए बिना इसी योजना में दुबारा 10 हजार रुपए देने को इसलिए कहा कि जोगाराम को पता है अनेक पत्रकार तो इस अल्‍प समय में राशि के अभाव में ही बाहर हो जाएंगे। आवंटी कोर्ट में जाकर भी जब तक विधिक उपचार की कार्यवाही करत रहेंगे, उससे पहले ही वे आसानी से अपने चुनिंदा पत्रकारों को इन प्‍लॉटों पर काबिज कर देंगे।