खाना पकाने के कोयले या लकड़ी जलाने के चूल्हे के बाद जब गैस का चूल्हा आया तो भोजन तैयार करने वाले लोगों ने बड़ी राहत की सांस ली खासकर उन गृहणियों ने जिन पर भोजन पकाने की पूर्ण जिम्मेदारी थी। कोयले और  लकड़ी से उठनेवाला धुआं और गर्मी दोनों ही स्वास्थ्य और जीवन सुविधा के हिसाब से तकलीफदेह हैं। इन दोनों की तुलना में गैस आधारित चूल्हे सुविधाजनक हैं और तुलनात्मक रूप से स्वास्थ्य के लिए बेहतर भी हैं। परंतु जैसा अक्सर होता है कि पूर्ण सुरक्षित जैसी कोई बात होती नहीं है इसलिए हर उपयोग एवम उपभोग में आने वाली वस्तु पर लगातार अध्ययन चलते रहना चाहिए।

ऐसा ही एक अध्ययन हाल ही में पर्यावरण विज्ञान व तकनीकी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है जिसको जानना काफी जीवनोपयोगी हो सकता है क्योंकि इस अध्ययन के दौरान कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। रसोई गैस का चूल्हा जलाने पर यदि एक दो सावधानियां नहीं रखी जाएं तो कुछ लोगों में रक्त कैंसर या उस जैसी चन्द बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। चूल्हे या गैस ओवन को यदि सर्वाधिक तेज आंच पर जलाया जाए तो बेंजीन नाम की एक नुकसानदायक गैस पैदा हो सकती है जैसे कि तेज के कुए या तेल शोधक कारखानों में गैस जलने से बेंजीन पैदा होती है। इसलिए तेल के कुओं या शोधक कारखानों में बहुत ऊंचे पाइप से गैस को बहुत ऊंचाई पर जलने दिया जाता है।

गैस का चूल्हा बिजली के चूल्हे से दस से लेकर पचास प्रतिशत तक अधिक बेंजीन बनाता है। इंडक्शन हॉटप्लेट से कोई भी बेंजीन नहीं बनती है। घर में दुर्घटनावश लीक हुई गैस की तुलना में चूल्हे को जलाने पर बनी बेंजीन कोई सैंकड़ों गुना ज्यादा होती है। बेंजीन कुकिंग गैस के उच्च ताप से हवा में बनती है परंतु गैस पर बना भोजन कोई बेंजीन नहीं छोड़ता है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि यदि कोई रसोई चारों तरफ से बंद है और छोटी है तो उसमें बेंजीन के अलावा मीथेन और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड भी किसी पुराने जमाने की कार के धुएं जितनी मात्रा में लीक होती हैं। इस गैस के दुष्प्रभाव से बचने का एक मात्र तरीका रसोई का खुला होना है जिसमें हवा आर पार लगातार निकल सके। एग्जास्ट पंखा ज्यादा प्रभावकारी नहीं होता है।