बात सन 1840 की है। दक्षिण अफ्रीका में बोएर नस्ल के लोगों की एक टुकड़ी एक झरने के पास रुकी हुई थी। टुकड़ी के मर्द महिलाओं और बच्चों को नदी के इस उद्गम पर छोड़ कर  एक निश्चित तिथि पर वापिस आने का वादा कर आगे नई धरती खोजने को निकल पड़े। जिस भूभाग में ये लोग जा रहे थे वह आज का मोपुटो नामक क्षैत्र है। महिलाएं और बच्चे इंतजार करते रहे पर खोजी लोग वापस नहीं आए। सबको मृत मान कर आंसू बहाती स्त्रियां अपने बच्चों के साथ आगे बढ़ी। उन्होंने इस नदी को ट्रेउर नाम दिया जिसका मतलब होता है संताप। नदी के साथ साथ चल रहे इन रोते बिलखते लोगों के आनंद का ठिकाना नहीं रहा जब इन्होंने एक दूसरी जलधारा पर अपने मर्दों को अपनी तरफ आते देखा। इस जलधारा का नाम रखा गया ब्लाइड यानि आनंद।

संताप नदी का पानी एक जगह एक पतले मोड़ से गुजरने के बाद यकायक नब्बे डिग्री घूम कर अति तीव्र गति से आनंद नदी में गिरता है। संताप और आनंद का यह मिलन पानी के अनगिनत घूमचक्र पैदा करता है जिनके कारण नीचे जमीन पर कितने ही गड्ढे बन जाते हैं जिन्हे बुर्के लक्की पॉट होल्स ( बुर्के की किस्मत के गड्ढे ) कहा जाता है। इसकी भी एक रोचक कहानी है। चूंकि यहां की ऊंची पहाड़ियों में लोग सोने के तलाश में जाते थे तो टॉम बुर्के नामक किसान, जिसके खेत में ऐसे कुछ खड्डे थे, ने कहा कि जब ऊपर सोना है तो नीचे सोने के कुछ डले तो होने ही चाहिएं। उसने जब इन गड्ढों की खुदाई की तो उसे सोने के कई डले मिले भी। तभी से इनका नाम बुर्के लक्की पॉट होल्स कहा जाने लगा। हजारों साल से बहते पानी ने इस भूभाग पर कितने ही प्यालेनुमा खड्डे बना दिए हैं जिनको देख कर मन आश्चर्य से भर उठता है। नदी ने 24 किलोमीटर का पत्थरों से सजा एक मनमोहक रास्ता बना दिया है।

इसके अलावा सन 1864 में यहां की घाटियों में स्वाजी कबीले का पेडी और पुलानम नामक कबीलों से रक्तरंजित युद्ध हुआ। चूंकि स्वाजी लोग नीचे घाटी में थे और प्रतिपक्षी ऊंचे पहाड़ों पर थे तो स्वाजी बड़ी संख्या में मारे गए थे। आज भी इन गहरी घाटियां में मृत लड़ाकों के नर कंकाल पड़े हुए हैं। ये गहरी घाटियां ब्लायड नदी के जल प्रवाहन से सैकड़ों हजार सालों में बनी हैं और यहां पाषाण युग के आदि मानवों ही होने के निशान इन गहरी और खतरनाक घाटियों के भित्ति चित्रों में पाए गए हैं। आगे चल कर यहां बुशमैन जिन्हे सान लोग कहा जाता है वे आए और अभी भी अफ्रीका के रेगिस्तानी हिस्सों में कोई पच्चीस हजार सान रहते हैं जिनका एकमात्र धन ओस्टरिच के अंडे का खोल होता है जिसमें वे अति दुर्लभ पानी भर कर रखते हैं। सान लोगों के पास और कुछ नहीं होता। रोजाना जो कंद मूल या जानवर मिलता है उसको खा लेते हैं, पानी को घूंट भर ही पीते हैं। सरकार के सारे प्रयासों के बावजूद वे हमारी आज की सभ्यता से नहीं जुड़ना चाहते। नीचे धरती, ऊपर आसमान। ना वस्त्र, ना मकान और नाही कोई सामान। सान लोग यदाकदा ही नाचते गाते नजर आते हैं वरना वे आज के आदमी के सामने अदृश्य ही बने रहते हैं।

इन सबके बीच यहां बबून और बंदर किलकारियां मारते अपने झुण्डों में दौड़ते भागते रहते है। कुड्डू और क्लिप स्प्रिंगर हिरण प्रजातियां कुलांचे मारती नजर आती हैं और इन पर घात लगाते बघेरे। इनके अलावा पानी में हिप्पो अपनी मस्ती करते दिखते हैं। दो नदियों और कितने ही पहाड़ों ने एक रोचक और रमणीक संसार रच दिया पर आज के आदमी के विनाशकारी कदम अब यहां भी फैलने लगे हैं। समय बताएगा कि प्रकृति की यह संरचना मानव के प्रहारों से कब तक बच पाएगी।