हमारी बीमारियों को दो भागों में बांटा जा सकता है - तीव्र ( एक्यूट ) और  दीर्घकालिक ( क्रोनिक )। तीव्र रोगों पर हमारा बस कम चलता है पर दीर्घकालिक रोगों की रोकथाम में हम काफी हद तक सक्षम हैं बस हमारे में स्वस्थ जीवन जीने की जागरूकता एवम् इच्छाशक्ति हो। मानव चूंकि अपनी वासनाओं के पीछे पागलपन की हद तक दौड़ता रहता है इसलिए उसे जाग्रत करने के लिए उन बातों को भी बार बार लिखना समझाना पड़ता है जिसे तकरीबन हर कोई जानता है।

दीर्घकालिक बीमारियों में हृदय एवम् रक्त संचार तंत्र के रोग, लकवा, डायबिटीज, कैंसर आदि मृत्यु या फिर व्याधि के बड़े कारण होते हैं। जोड़ों को बीमारियां, मोटापा, मोतियाबिंद और अंधापन जीवन की क्षमताओं और संभावनाओं को बड़ी हद तक कम या पूर्णतया समाप्त तक कर देते हैं। इन रोगों को तीन बड़े कारण फैलाते हैं - हानिकारक भोजन, जीवनशैली और वातावरण। यदि हम इन तीन मानकों में सुधार कर लें तो अपने लिए बेहतर जीवन का आधार तैयार कर सकते हैं।

तंबाकू के सेवन पर रोक, शरीर का उपयुक्त वजन, दैनिक व्यायाम या शारीरिक श्रम, उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन और टीवी देखने के समय पर नियंत्रण आदि अति साधारण कदम आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखते हैं। भारतीय समाचार टीवी चैनल्स जिस तरह का विष वमन कर रहे हैं वे लोगों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक एवम्  आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होंगे। नफरत भरी हिंसक मनोवृति एक दीमक होती है जो मन और शरीर दोनों का विनाश करती है। दीमक का पता अक्सर निर्मित वस्तु के नष्ट होने पर ही चलता है। मानसिक हिंसा एक अफीम होती है , मस्तिष्क में एंडोर्फिन नामक तत्व पैदा करती है जो शरीर पर अफीम जैसा प्रभाव डालता है। चुनाव मार्फिन या एंडोर्फिन दोनो का ही नुकसानदेय होता है।

देखा गया है कि आप के भोजन का संबंध कई रोगों से होता है। हृदय रोग, कई प्रकार के कैंसर, मोतियाबिंद, मैकुलर डिजनरेशन, पित्त थैली की पथरी, गुर्दे की पथरी, दांतों की बीमारियां, जोड़ों के रोग और डायबिटीज आदि का खानपान से सीधा संबंध पाया गया है। आप जानकारी के दम पर इन बीमारियों की रोकथाम कर सकते हो। सामान्य स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए आप के द्वारा निम्नलिखित छह कदम उठाने पर्याप्त होंगे -

    1. सैचुरेटेड एवम् ट्रांस फैट की जगह अनसैचुरेटेड फैट्स को उपयोग में लें। खासकर ट्रांस फैट का उपयोग बंद कर दें। ट्रांस फैट्स वनस्पति तेल के अर्ध हाइड्रोजेनीकरण के फलस्वरूप बनती हैं। बहुत थोड़ी मात्रा में ट्रांस फैट मीट और मक्खन घी में पाई जाती है पर मुख्यतया यह फैक्ट्रीज की देन है। तैयार नाश्ते के सामान, मार्गरिन, पैकेज किए बेक हुए खाद्य पदार्थ तथा त्वरित तले हुए भोजन आदि ट्रांस फैट से भरे हुए होते हैं। विश्व भर में स्वास्थ्य पर लिखने वाले लोग सरकारों पर दबाव डाल रहे हैं कि ट्रांस फैट्स को पूर्णतया बंद कर लार्ड, पॉम तेल, सोय, सूरजमुखी, राइस ब्रान और कैनोला आदि के तेल का प्रयोग किया जाय हालांकि पॉम तेल के वृहद उपयोग पर भी कुछ आवाजें उठ रही हैं। संक्षिप्त में देखें तो कच्छी घानी का तेल ही उपयोग में लें और इसे भी कम मात्रा में क्योंकि हम लोग शारीरिक श्रम कम करने लगे हैं।

    2. फल और सब्जियों खासकर हरी पत्तेवाली सब्जियों का सेवन ज्यादा करें। इसके लिए जरूरी है कि महंगे रेस्टोरेंट में टिप देने की जगह फल सब्जी उत्पादकों को प्रोत्साहित करें।

    3. चीनी का उपयोग कम से कम करें क्योंकि चीनी में एक भी पोष्टिक तत्व नहीं होता है। यह सिर्फ कैलोरी से भरा कण होता है।

    4. अत्यधिक कैलोरीज़ के सेवन पर नियंत्रण रखें फिर चाहे ये किसी स्वास्थ्यवर्धक भोजन से भी क्यों न हों।

    5. अनाज मोटा खाएं। अत्यधिक पिसाई से इसके विटामिन, मिनरल और फाइबर सब नष्ट हो जाते हैं। कोशिश हो कि अनाज अपने पूर्ण आकार में ही सेवन किया जाए।

    6. नमक का उपयोग सामान्य की सीमा में ही रखें। हमारे शरीर को रोजाना  1.7 ग्राम सोडियम की जरूरत होती है जो हम 5 ग्राम नमक प्रतिदिन से प्राप्त कर लेते हैं इसलिए इसी सीमा को निर्धारित रखना चाहिए।