जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
राजस्थान में कांग्रेस कुछ वर्षों से जब भी विपक्ष में रहती है तो सभी कांग्रेस कार्यकर्ता व कांग्रेस जन सम्पूर्ण क्षमता से अपना समय राजस्थान की जनता से जुड़ाव रख कर कार्य करता है और राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत दिलाने के लिए दिन रात मेहनत कर कामयाब हो जाता है।विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारों में प्रत्येक विधानसभा से 2 से 4 नाम पैनल में होते है टिकट एक को मिलता है। वहीं बाकि कार्यकर्त्ताओं को सत्ता आने पर मुख्यमंत्री से मिलकर वर्तमान विधायक व मंत्री उन सभी पैनल के कार्यकत्ताओं को हाशिए पर लाकर पटक देते है। वर्ष 1998 से यही सिलसिला चलता आ रहा है। इस नई परम्परा से कार्यकर्त्ताओं में निराशा का भाव पैदा हो जाता है। फिर सत्ता में रहते हुए कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं के नहीं बल्कि नेताओं, विधायक, मंत्री के भरोसे चुनाव में जाती है वहाँ कांग्रेस फिर चुनाव हार जाती है तथा कांग्रेस के लगभग 80 प्रतिशत मंत्री व विधायक चुनाव हार जाते है। क्योंकि कांग्रेस द्वारा सिटिंग गैटिंग का फार्मूला लाकर सभी को पुनः टिकट बिना आंकलन के दे दिया जाता है। सत्ता में कांग्रेस ने 30 विधायकों को मंत्री पद व 30 से अधिक विधायकों को बोर्ड व निगम में एडजेस्ट किया गया। कुछ के परिजनों को जगह दी गई है आगे भी उन्हीं को अवसर दिये जाएँगें । वहीं जब 200 विधानसभाओं के कांग्रेस पैनल में 600-700 लोगों में से 200 विधायक टिकट दिए गए तथा सत्ता में आने के बाद उन बाकी 400 से 500 पैनेलिस्ट कार्यकर्त्ताओं का समायोजन सरकार नहीं करती है । अपितु सत्ता के 5 वर्षों में उन्हें खत्म कर दिया जाता है और विधायक चुनाव हार जाता है और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो जाती है। सत्ता से बाहर होने के बाद हारे हुए विधायक व उनके परिजन संगठन पर कब्जा कर लेते है तथा सचिवालय का ऑफिस छूटने पर कांग्रेस के ऑफिस को कब्जा लेते है। कार्यकर्ता फिर भरसक प्रयास करता है लेकिन अगले चुनाव में एक बार हारे विधायक (जोकि जनता में विश्वास खो चुका हैं) को टिकट दे दिया जाता है, ताश के पत्तों की तरह फिर उन्हीं को फेंटा जाता है। वर्ष 1998 से सत्ता में विधायक व कांग्रेस प्रत्याशी के बिना कोई कार्य नहीं किया जाता है, वहीं कार्यकर्त्ता के कार्य नहीं किए जाते है और वहीं चक्र घुमता है और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो जाती है। अगर कांग्रेस को पुनः सत्ता बरकरार रखनी है तो इस चक्र को रोकना पड़ेगा और अभी से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू करनी पड़ेगी और कार्यकर्त्ताओं को तरजिह देनी होगी। मंत्री, विधायकों के टिकट काटने होगें ।