प्रकृति अनंत शक्तियों का पुंज है। काफी बार यह पढ़ने और सुनने में आता रहता है कि हमारे पूर्वजों के पास आश्चर्यजनक इंजीनियरिंग तकनीकी होती थी जिसके सहारे वे विशालकाय पत्थरों को चट्टानों पर ऐसे रख दिया करते थे जो हाथियों का समूह भी गिरा नहीं सकता और आज के समय में विशालकाय क्रेनों से भी संभव नहीं लगता है। इस तरह की बात वैज्ञानिक सोच की कमी की तरफ इंगित करती हैं क्योंकि किसी ने भी ये विशाल पत्थर उठा कर नहीं रक्खे हैं बल्कि इसके पीछे एक सामान्य सा फिजिक्स है।
हम जानते हैं कि रेगिस्तान में दिन बहुत गर्म होते है। इसका कारण वहां के आसमान में बादलों का अभाव है जिससे सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणें सीधी धरती पर गिर कर उसे तपा देती हैं। इन्ही बादलों के अभाव से रात में धरती की सारी गर्मी आसमान में बिखर कर लुप्त हो जाती है जिसके कारण रातें काफी ठंडी होती हैं और सागर के निकट तो यह शून्य से भी काफी नीचे चला जाता है। धूल और मिट्टी से भरी तेज हवा जब किसी चट्टान से टकराती है तो तीव्र घर्षण पैदा करती है जिसके फलस्वरूप चट्टान की परत पर छोटे छोटे धागे जैसे कटाव हो जाते हैं। रात में इन कटावों में ओस की बूंदे इकठ्ठी हो जाती हैं और फिर ठंडे मौसम में बर्फ बन कर विस्तार लेती हैं जिसकी वजह से चट्टानों में छोटी छोटी टूटन आ जाती हैं। आगे चल कर तेज वेग से चलती हवा एक गहरा कटाव पैदा कर देती मानो किसे ने तेज धारदार औजार से काटा हो। हवा के थपेड़ों और मिट्टी के जमाव से ऊपर उठी गोल चट्टान का पैंदा ग्रेनाइट से भी ज्यादा सख्त हो जाता है जिसके कारण इसे इंसानों के या फिर हाथियों के सामूहिक प्रयास से खिसकाया नहीं जा सकता है।
यह एक बहुत ही दीर्घकालीन प्रक्रिया है जो हजारों या लाखों साल तक जारी रहती है इसलिए इसको देखा नहीं जा सकता। हम सबके पूर्वज अति सम्माननीय लोग थे क्योंकि उन्ही की वजह से आज हमारा अस्तित्व है पर यह तय है कि उनके पास कोई देवीय इंजीनियरिंग नहीं थी। उनके पास उस समय की तकनीकी थी और हमारे पास हमारे समय की पर यह तो निश्चित बात है कि ये विशाल पत्थर उन्होंने नहीं रखे हैं।
0 टिप्पणियाँ