जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।  

पूर्व नेता प्रतिपक्ष और राजस्थान कृषि उद्योग विकास बोर्ड के अध्यक्ष रामेश्वर डूडी ने एक बार फिर जाट सीएम बनाने और जातिगत जनगणना करवाने की मांग उठाई है। डूडी ने कहा- जाट महाकुंभ में मैंने जाट सीएम की मांग उठाई थी, उस मांग पर मैं आज भी कायम हूं। यह मांग मैं ही नहीं कर रहा, यह मांग समाज की है। जाट सबसे बड़ा समाज है। कई वर्षों से यह मांग करता आ रहा है। वह अपना हक-अधिकार लेकर रहेगा।

जयपुर में मीडिया से बातचीत में डूडी ने कहा- जाट समाज लंबे समय से मांग कर रहा है। यह मांग समाज का हक और अधिकार है। समाज अपना हक और अधिकार लेकर रहेगा। यह हक देना चाहिए। मांग किसके आगे कर रहे हैं। समाज अपना हक-अधिकार लेना जानता है। वह इसे लेकर रहेगा। पार्टी के अंदर भी हमने इस मांग को रखा है। बड़े नेताओं के साथ जब भी बैठते हैं, उन्हें इससे अवगत करवाया है।

जातिगत जनगणना से दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा
डूडी ने कहा- आप जातिगत जनगणना करवाइए। जाट सीएम के साथ हमारी मांग जातिगत जनगणना की भी है। जातिगत जनगणना के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। जातिगत जनगणना से पता लग जाएगा कौन कितने हैं। अब जिसकी जितनी संख्या वह अपना हक मांग रहा है। जाट सबसे बड़ा समाज है। उसकी सीएम की मांग को दूसरे समाज भी मानते हैं कि यह उसका हक है।

जाट महाकुंभ में उठी थी मांग,अब फिर दोहराई

डूडी ने जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में 5 मार्च को हुए जाट महाकुंभ में भी जाट सीएम की मांग उठाकर सियासी बहस छेड़ दी थी। अब डूडी ने फिर जाट सीएम की मांग को हवा देने का प्रयास किया है। जाट महाकुंभ के दौरान डूडी ने ही सीएम बनाने की मांग को प्रमुखता से उठाया था। डूडी ने पिछले सप्ताह ही बीकानरे जिले के नोखा के पास किसान सम्मेलन करवाकर ताकत दिखाने का प्रयास किया था। डूडी के सम्मेलन में सीएम अशोक गहलोत और उनके खेमे के मंत्री-विधायकों का जमावड़ा हुआ था। डूडी पहले सचिन पायलट के साथ थे, लेकिन अब दोनों के बीच दूरियां बढ़ चुकी हैं। वे गहलोत के नजदीक जा चुके हैं।

चुनावी साल में जाट सीएम की मांग के पीछे कांग्रेस की अंदरूनी सियासत

जाट सीएम की मांग के पीछे राजनीतिक जानकार कांग्रेस की मौजूदा खींचतान को भी कारण मान रहे हैं। सचिन पायलट और उनके समर्थक पायलट को सीएम बनाने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस में जाट सीएम की मांग पायलट विरोधियों खासकर गहलोत खेमे के लिए सूटेबल है। जानकारों का मानना है कि जाट सीएम की मांग उठाने की क्रॉनोलॉजी को देखने पर सारी परतें खुद ब खुद सामने आ जाती हैं। गहलोत खेमे के लिए पायलट को रोकने और उन्हें सियासी रूप से बैलेंस करने के लिए जाट सीएम की मांग को एक काउंटर रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

कांग्रेस के कई रणनीतिकारों को भी लगता है कि इससे पायलट फैक्टर को एकबारगी के लिए बैलेंस किया जा सकता है। मौजूदा सियासी हालात के हिसाब से यह मांग पायलट विरोधियों के लिए सियासी रूप से फायदेमंद है। आगे चलकर यही मांग और तेज होती है तो सियासी समीकरण बदल भी सकते हैं। रामेश्वर डूडी ने ही इस मांग को सबसे पहले उठाया था। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी डूडी ने किसान सीएम की मांग की तरफ इशारा किया था। उस वक्त यह मांग जोर नहीं पकड़ पाई थी।

जाट सीएम की मांग से कई समीकरण बनेंगे, बिगडेंगे, दूसरे समाज भी उठा रहे हैं मांग

जाट सीएम का मुद्दा हर चुनावों से पहले उठता है। इस मांग के पीछे बड़े नेताओं के सियासी समीकरण और लीडरशिप के इश्यू भी छिपे रहते हैं। एक बड़े वोट बैंक की इस भावनात्मक मांग को सियासी रूप से भुनाने में कई नेता आगे रहे हैं। अंदरूनी सियासी समीकरण साधने के लिए कई बार यह मांग उठती रही है। जाट सीएम के मांग के पीछे फिलहाल पायलट फैक्टर को बड़ा कारण माना जा रहा है। जाट सीएम की मांग के कारण दूसरे समाज भी सामने आ सकते हैं, पहले भी यह हो चुका है।

जाट महाकुंभ में जाट सीएम की मांग के बाद ब्राह‌्मण, राजपूत और ओबीसी की दूसरी जातियों ने भी सीएम बनाने की मांग प्रमुखता से उठाई है। जाट सीएम की मांग के साथ जातिगत जनगणना की मांग को भी हवा दी जा रही है। विधानसभा चुनावों से पहले जाट सीएम की मांग जोर पकड़ती है तो कई नेताओं के सियासी समीकरण प्रभावित होंगे। दूसरे समाज भी अपना सीएम बनाने की मांग को उठाएंगे। जातिगत आधार पर सीएम बनाने की मांग इस बार भी चुनावों से पहले प्रमुखता से उठना तय है, हर समाज का संगठन चुनावों से पहले मुखर होकर अपनी मांगे रख रहा है।