उसका नाम था फ्रैंक ड्रेक जिसका जन्म अमेरिका के शिकागो, इलिनॉयस में हुआ था। बचपन में करीब 8 वर्ष की उम्र में ही उसकी रुचि अलौकिक यानि असंसारिक जीवन के बारे में सोचने की तरफ होने लगी थी। कॉलेज में जाते जाते उसने दूरबीन से बृहस्पति ग्रह और उसके चंद्रमाओं को देख लिया था। गृहों, तारों और गैलेक्सी की जहां भी चर्चा होती थी ड्रेक मौजूद होता था। यह समय 1940 - 50 के दौर का था जब रेडियो एस्ट्रोनॉमी विज्ञान विकसित होने के अपने शुरुआती दिनों में था। ड्रेक विश्व का प्रथम व्यक्ति था जिसने शनि ग्रह से निकलनेवाली माइक्रोवेव्स को पहचाना। बृहस्पति ग्रह में भी उसकी विशेष रुचि थी और उसने खोज की कि इस गृह के चारों तरफ विकिरण पट्टे ( रेडिएशन बेल्ट्स ) घूमते रहते हैं।

आगे चल कर फ्रैंक ड्रेक ने एस ई टी आई ( अलौकिक बुद्धिमता की तलाश ) - सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस - नामक संस्था की स्थापना की और उसकी देखभाल जीवनपर्यंत एक पिता की तरह की। इस संस्था का उद्देश्य धरती के पार की किसी दुनियां से आने वाले रेडियो संकेतों को पहचानने का था। इसके लिए उसने एक फॉर्मूला भी बनाया जिसे ड्रेक इक्वेशन कहा जाता है। इस सब के पीछे उद्देश्य यह जानना था कि ब्रह्मांड में क्या हम अकेले ही हैं ? यदि कोई और हैं तो वे हमें क्या संदेश भेज रहे हैं ?

     चूंकि ड्रेक की संस्थान से किसी को कोई आर्थिक लाभ नहीं होने वाले हैं तो कोई भी उसके लिए बड़ा धन खर्चने को तैयार नहीं है जिसके कारण आज भी यह संस्था आर्थिक संघर्ष से गुजर रही है। अपने व्यक्तिगत जीवन में ड्रेक पुएर्तो रिको स्थित वेधशाला के निदेशक बने पर एलियंस ( बाहरी जगत के प्राणियों ) को लेकर उनकी उत्सुकता तीव्र ही बनी रही।

     1970 के दशक में ड्रेक नासा के पायनियर 10 और 11 खोजी यानों के लिए बनाए गए प्लाक ( फलक ), जिसमें ब्रह्मांड के अन्य जीवों के लिए तस्वीरों वाले संदेश थे, के संयुक्त निर्माता बने। इसके अलावा ब्रह्मांड में भेजे जाने वाले रेडियो संदेशों का निर्माण और प्रसारण भी उनके निर्देशन में हुआ था। वॉयेजर अंतरिक्ष यान में भेजी गई  इंसान और पृथ्वी की कहानियों के निदेशक भी ड्रेक थे। एक सरल मन और प्रचार से दूर रहने वाले फ्रैंक ड्रेक ने 92 वर्ष की उम्र पाकर 2 सितंबर 2022 को इस धरती को अलविदा कहा। ड्रेक जो कार्य करना चाहते थे उसके लिए एक जन्म काफी नहीं होता है। बार बार जन्म लेने की संभावनाएं भी सहायक नहीं होती हैं। उनके बताए मार्ग पर हजारों पीढ़ियों को चलना होगा तब जा कर सफलता की कोई किरण नजर आए तो आए।