जालोर से गणपत सिंह मांडोली।

"जहा चाह-वहां राह” इस बात को चरितार्थ करने वाले प्रधानाध्यापक बुद्धा राम विश्नोई ने इस लॉक डाउन में भी अपने बल बूते स्कूल की काया को बदल डाला। समाज में आज भी उन शिक्षकों की कमी नही जो अपना पूरा तन मन व धन बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए दे रहे हैं। राजकीय माध्यमिक विद्यालय वरेठा के प्रधानाध्यापक ने लॉक डाउन में बच्चों के साथ ऑनलाइन शिक्षण कार्य के साथ- साथ विद्यालय की भी खूबसूरती को भी चार चांद लगाने का काम किया।

विद्यालय में अपने वेतन से रंग रोगन व सजावट के कार्यों को सम्पन्न किया। विद्यालय के आकर्षक  स्वरूप को देखकर सभी में प्रसन्नता की सीमा ही नहीं रही। साथ ही उपखंड मुख्यालय पर स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित भी हुए। यहां के प्रधानाध्यापक ने महज दो वर्ष में स्कूल की काया ही पलट दी और स्कूल को एक नई दिशा दी है। यही वजह है कि निजी स्कूल छोड़कर इस सरकारी स्कूल में पढ़ने आ रहे है।दरअसल रानीवाड़ा क्षेत्र के राजकीय माध्यमिक विद्यालय वरेठा एक ऐसा स्कूल है जिसकी सूरत 2019 से पहले कुछ और थी और अब कुछ अलग ही है।

जब 2019 अक्टूबर के बाद जब प्रधानाध्यापक बिश्नोई की नियुक्ति हुई, तो सामने कई सारी समस्या थी लेकिन स्कूल को घर की तरह सहेजते हुए दिन प्रतिदिन कार्य करते रहे और सकारात्मक परिणाम आने लगे।  उम्मीद जगी और स्कूल की दशा सुधारने के लिए अपने वेतन के 70000 की राशि लगाई। भामाशाहो को प्रेरित कर स्कूल से जोड़ा और अभिभावकों- स्कूल में अन्य शिक्षक को भी आगे आने के लिए प्रेरित करना जी जान से जुटे रहे। आज सकारात्मक परिणाम भी सामने है। बता दे, जब कलाल स्कूल में आये तो खण्डर स्कूल, झर्झर छत और  छत से गिरता पलास्तर। स्कूल की दिशा और दशा क्या थी देख कर ही पीड़ा होती थी। लेकिन अभिभावकों एवं भामाशाह के सहयोग से यह स्कूल की नई तस्वीर है जिसमें आकर्षक भव्य मुख्य द्वार,फर्नीचर युक्त संस्था प्रधान कार्यालय, 4 कमरों का पुनर्निर्माण, सभी कमरों में लाइट फिटिंग एवं 16 सीसीटीवी टीवी सहित, स्टेशनरी बैंक,विद्युत घंटी बच्चों के सांस्कृतिक पोशाके, पर्याप्त फर्नीचर ,विभिन्न प्रजाति के पौधे व विभिन्न प्रकार के भौतिक संसाधनों से सुसज्जित है। विशेष समस्त स्कूल परिसर बच्चों को प्रेरित करने के लिए कमरों पर विभिन्न प्रकार की चित्रकारी कर आकर्षण का रूप दिया है जैसे वरेठा एक्सप्रेस ,पर्यावरण सरंक्षण संबंधित चित्रकारी के साथ समस्त विद्यालय परिसर रंग रोगन कर नया रूप दिया। जिसकी करीबन लागत 5 लाख के करीब है। यह सब कार्य वरेठा गांव के जनसेवक एवं विद्यालय परिवार द्वारा करवाए गए हैं।

यह कहना है स्कूल के शिक्षकों का।

स्कूलों को बेहतर बनाने की दिशा में हमारा प्रयास और शोध जारी है। अलग-अलग जिले की छोड़ो तहसील स्तर और हर गांव के स्कूल की अलग-अलग समस्या है संस्था प्रधान और शिक्षकों को चाहिए कि वह सिर्फ और सिर्फ अपने स्कूल का फोकस करें। हर स्कूल की अलग-अलग समस्या होती है। और यकीनन हमें इनके समाधान के रास्ते भी पता होते हैं। पर हम समाधान करने के बजाय दूसरों पर निर्भर रहते हैं। आप देखिए इन दिनों बहुत सारी स्कूलों में बदलाव की बयार है।शिक्षकों ने एक माहौल बनाया है। लोगों को स्कूल से जोड़ा है। हम भामाशाहों की मदद से स्कूल के स्वरूप बदल लिए हैं। सभी शिक्षकों ने स्कूल को अपना दूसरा घर समझा और बच्चों को परिवार माना। जब यह बदल सकते हैं तो सब क्यों नहीं। हमें सरकारी मदद की सोच ऊपर उठकर इस शिक्षा के पेशे की गरिमा का मूल्यांकन करना होगा। एक यह भाव प्रबल होना चाहिए कि हम राष्ट्र निर्माता बनने के मुख्य आधार है। जब यह भाव आएगा तो बदलाव होते हो स्वयं हो जाएगा।

यह कहना है प्रधानाध्यापक बुद्धाराम बिश्नोई का।

किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए टीम वर्क बहुत जरूरी होता है। टीम अच्छी हो तो काम भी बेहतर होता है। मुझे बहुत ही अच्छे सहयोगी मिले हैं और मुझे उन पर गर्व है। हम विद्यालय और बच्चों की बेहतरी के लिए मिलकर योजना बनाते हैं। सबकी राय ली जाती है और इसके बाद ही योजना का क्रियान्वयन होता है।