जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
मुक्त मंच, जयपुर की 74वीं मासिक गोष्ठी परमहंस योगिनी डॉ. पुष्पलता गर्ग की अध्यक्षता में ‘‘इण्डिया बनाम भारत‘‘ विषय पर हुई। शब्द संसार के अध्यक्ष, वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शर्मा ने संयोजन किया और आईएएस (रि.) अरुण ओझा मुख्य अतिथि थे। मुख्य अतिथि, आईएएस (रि.) अरुण ओझा ने कहा कि हमारा समाज सदैव समावेशी रहा है। हमारी समावेशी संस्कृति की प्रबलता रही है। यहां हूण, शक, मंगोल, मुगल, द्रविड़, आर्य आए और उनकी अनगिनत कलाकृतियां हैं। क्या हम उन्हें नष्ट कर देंगे ? बंधुत्व भाव तभी रहेगा जब इंडिया और भारत दोनों नाम रहें।
वी.सी. के माध्य से जुड़े प्रतिष्ठित विद्वान, डॉ. नरेन्द्र शर्मा ‘कुसुम‘ ने कहा कि नाम को लेकर कवायद करना व्यर्थ है। उन्होंने ऐतिहासिक और साहित्यिक संदर्भों के साथ कहा कि फिर भी यदि भारत का नाम गुंजायमान हो तो अच्छा है। अध्यक्षीय उद्बोधन में परमहंस योगिनी डॉ. पुष्पलता गर्ग ने कहा कि भारत शब्द से ऊर्जा मिलती है। हमारी क्षमताओं का विस्तार होता है। हम इंडिया को नहीं स्वीकार कर सकते। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ दामोदर प्रसाद चिरानिया ने भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, गंगा नदी के उद्गम, आदि की चर्चा करते हुए कहा देश के करोड़ों लोग विश्वभर में बसे हुए हैं और इंडिया से ही उनकी पहचान है। इसलिए इंडिया शब्द से परहेज करना नुकसानदायक ही होगा। भारत शब्द का प्रयोग उपयुक्त है।
डॉ. जनकराज स्वामी ने कहा कि चाहे संवैधानिक संशोधन करना पड़े भारत नाम ही देश की पहचान बननी चाहिए। पूर्व बैंकर इन्द्र भंसाली ने कहा कि भारत के नाम पर यह राजनीतिक शिगूफा है। आईएएस (रि.) राम स्वरूप जाखड़ ने कहा कि देश या स्थान का नाम बदलना एक सनक है जिस पर करोड़ों रुपये बर्बाद कर दिए जाते हैं। नाम बदलने की सीमा भी तय होनी चाहिए कि कब तक कितने नाम बदलेंगे। युवा कवयित्री सावित्री रायजादा ने कहा कि भारत का नाम हमारी संस्कृति के अनुरूप है। लोकेश शर्मा ने कहा कि विश्वगुरू के रूप में भारत की प्रसिद्धि रही है तो इंडिया को बनाये रखने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती।
आईएएस (रि.) अब्दुल रजाक पठान ने कहा कि इण्डिया को भारत बनाने की मंशा रखने वालों का एजेण्डा कुछऔर रहा है। इस बहाने हिन्दू राष्ट्र की कल्पना को साकार करना चाहते हैं। हमारी संस्कृति समावेशी है जिसमेंसभी धर्मों और विचारधाराओं के लोग सदियों से साथ रहते आए हैं। वरिष्ठ पत्रकार और प्रखर विचारक सुधांशु मिश्र ने कहा कि संविधान में परिभाषा स्पष्ट है कि इण्डिया यानि भारत है जिसमें कोई विवाद नहीं है। सदियों से यही परम्परा रही है तो अब इसमें संशय क्यों पैदा किया जा रहा है। परम विदुषी श्रीमती शालिनी शर्मा ने कहा कि पं. नेहरू ने ‘‘डिस्कवरी ऑफ इण्डिया‘‘ लिखकर हमारी मान्यता को सम्पुष्ट कर दिया है।
प्रारम्भ में संयोजक श्रीकृष्ण शर्मा ने विषय परावर्तन करते हुए कहा कि संविधान में इण्डिया जो भारत है, उल्लेखित है। सभी लोग इसे जानते-पहचानते हैं। राष्ट्रगान में भारत भाग्य विधाता का उद्घोष है। सैंकड़ों पदों, संस्थाओं और योजनाओं के सथ इंडिया शब्द जुड़ा हुआ है। उन्हें बदलने से बेहतर है देश के हालात बदले जाएं। बैठक में प्रतिष्ठित व्यंग्यकार-कवि फारूक आफरीदी, यशवंत कोठारी, ललितकुमार शर्मा, अमर बहादुर रायजादा, आर.सी. जैन, रमेश खण्डेलवाल, आर.के. शर्मा, डॉ सुषमा शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। आईएएस (रि.)विष्णुलाल शर्मा ने आभार व्यक्त किया।
0 टिप्पणियाँ