भगवान कृष्ण के बड़े भ्राता बलराम का जन्म दिवस (चंदनषष्ठी पर्व) 16 अगस्त को ऊब छठ के रूप में मनाया जाएगा। सुहागिनें घर-परिवार की सुख समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए सूर्यास्त बाद चंदनयुक्त जल सेवन कर व्रत का संकल्प लेंगी। संकल्प के बाद निरंतर चन्द्रोदय तक खड़े रहकर उपासना एवं पौराणिक कथाओं का श्रवण करेंगी।
भगवान कृष्ण के बड़े भ्राता बलराम का जन्म दिवस (चंदनषष्ठी पर्व) सोमवार 4 सितंबर को ऊब छठ के रूप में मनाया जाएगा. सुहागिनें घर-परिवार की सुख समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए सूर्यास्त बाद चंदनयुक्त जल सेवन कर व्रत का संकल्प लेंगी. संकल्प के बाद निरंतर चन्द्रोदय तक खड़े रहकर उपासना एवं पौराणिक कथाओं का श्रवण करेंगी. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सोमवार 4 सितंबर को ऊब छठ रवि योग में मनाई जाएगी। ऊब छठ का व्रत और पूजा विवाहित स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए तथा कुंआरी लड़कियां अच्छे पति कामना में करती है। भाद्र पद महीने की कृष्ण पक्ष की छठ ( षष्टी तिथि ) ऊब छठ होती है। ऊब छठ के दिन मंदिर में भगवान की पूजा की जाती है। चाँद निकलने पर चाँद को अर्ध्य दिया जाता है। उसके बाद ही व्रत खोला जाता है। सूर्यास्त के बाद से लेकर चाँद के उदय होने तक खड़े रहते है। इसीलिए इसको ऊब छठ कहते हैं।
इस पर्व का राजस्थान में बीकानेर में विशेष महत्त्व है। इस दिन श्रद्धालु नगर सेठ लक्ष्मीनाथ की आराधना करते हैं तथा दृढ़ विश्वाश रखते हैं कि उनकी कृपा से समृद्धि बनी रहेगी। नगर सेठ के मंदिर में इस दिन भारी बीहड़ रहती है है तथा बीकानेर के आस पास के क्षेत्र के लोग भी दर्शन लाभ लेने आते हैं।
व्रत विधान के अनुसार महिलाएं और युवतियाँ पूरे दिन उपवास रखती है। शाम को दुबारा नहाती है और नए कपड़े पहनती है। इसके बाद मंदिर जाती है और वहाँ भजन करती है। चन्दन घिसकर टीका लगाती है। इस दिन कुछ लोग लक्ष्मी जी और और गणेश जी की पूजा करते है और कुछ अपने इष्ट की। भगवान को कुमकुम और चन्दन से तिलक करके अक्षत अर्पित किया जाता है तथा सिक्का, फूल, फल, सुपारी चढ़ाते हैं व दीपक, अगरबत्ती जलाते है। फिर हाथ में चन्दन लेते है पर कुछ लोग चन्दन मुँह में रखते हैं। इसके बाद ऊब छट व्रत की कहानी सुनते है और गणेशजी की कहानी सुनते है। इसके बाद पानी भी नहीं पीते जब तक चाँद न दिख जाये। इसके अलावा बैठते नहीं है, खड़े रहते है तथा चाँद दिखने पर चाँद को अर्ध्य दिया जाता है। चाँद को जल के छींटे देकर कुमकुम, चन्दन, मोली, अक्षत चढ़ाया जाता है और भोग अर्पित किया जाता है। विधान के अनुसार जल कलश से जल चढ़ाकर एक ही जगह खड़े होकर परिक्रमा की जाती है। इसके बाद अर्ध्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। लोग व्रत खोलते समय अपने रिवाज के अनुसार नमक वाला या बिना नमक का खाना खाते हैं।
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