इस समय में पूरे विश्व पर दो प्रकार के रोग महामारियों की तरह फैल रहे हैं और इन दोनों तरह के विकारों के तीव्र विस्तार के लिए लोगों की जीवनशैली काफी हद तक जिम्मेदार है। आज का आदमी धन कमाने के लिए एक स्थान पर एक ही कुर्सी पर बैठ कर घंटो काम कर लेगा परंतु शारीरिक श्रम की जब बात आयेगी तो गांव हो या शहर असंख्य लोग किसी न किसी बहाने इस तरह के कार्य को टालने का प्रयास करते हैं। शारीरिक श्रम से बचना एक प्रकृति विरुद्ध व्यवहार है। जिस तरह के कोई वाहन यदि एक ही जगह महीनों खड़ा रहता है तो खराब हो जाता है उसी तरह एक ही जगह एक ही कार्य में बैठे रहने और हर समय सिर्फ धन कमाने की तिकड़में लगाने से शरीर की कोशिकाएं निष्क्रिय हो जाती है जिसके फलस्वरूप उनमें रुग्णता पैदा हो जाती है।
जो दो तरह के विकार इस जीवनशैली से विकसित हो रहे हैं वे हैं कैंसर और डायबिटीज। इन
दोनों विकारों के शरीर में पैदा और विकसित होने में हमारे खानपान और रहन सहन का बड़ा
प्रभाव पड़ता है। हम लोग इस आपाधापी के काल में सिर्फ वस्तुओं को इकट्ठा करने में पूरा
जीवन बिता देते हैं। लोगों ने आनंदपूर्ण जीवन की जगह विलासिता के दिखावे का भोंडा जीवन
जीना शुरू कर दिया है जिसके कारण हर समय मानसिक तनाव, गुस्सा, घमंड, गाली गलौच, अवसाद
और असुरक्षा की भावनाएं घेरे रहती हैं फिर चाहे कोई कितना ही धनी हो जाए और कितना ही
शक्तिशाली। मन का आनंद धन से मिल नहीं सकता और सुविधा और भोग से शकून मिले यह जरूरी
नहीं।
पश्चिम के लोग वैज्ञानिक विचार और खोज के मामले में पूरब के लोगों से कहीं आगे हैं
क्योंकि वहां तर्क के आधार पर जीवन जीने वालों की संख्या ज्यादा है जबकि पूरब के लोग
भाग्य और भगवान के नाम पर तर्क और कठिन श्रम से बचने के लिए प्रयासरत रहते हैं। आजकल
पश्चिम के शोधकर्ता जीवनशैली और खानपान के शरीर पर होने वाले प्रभावों पर बड़ा कार्य
कर रहे हैं। अभी एक लाख लोगों पर सात वर्ष तीन महीने चले एक शोध के परिणाम प्रकाशित
हुए हैं जिनमें मानव शरीर पर नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स के प्रभावों का अध्ययन किया
गया है। इस समूह में 70 प्रतिशत महिलाएं, 30 प्रतिशत पुरुष और 969 स्थापित डायबिटीज
के रोगी थे। शोध का मुख्य उद्देश्य यह जानना था कि क्या नाइट्रेट और नाइट्राइट युक्त
भोजन शरीर में मधुमेह ( डायबिटीज ) पैदा कर सकता है ?
नाइट्रेट नाइट्रोजन एवम् ऑक्सीजन के अणुओं से बनते हैं और एक तरह के स्थिर यौगिक हैं।
ये अपने आप में शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और संतुलित मात्रा में उपभोग हो तो
अक्सर फायदेमंद होते हैं। अब यदि लोग व्हाट्सएप और यूट्यूब ज्ञान से नाइट्रेट से भरपूर
भोज्य पदार्थों का अत्यधिक और लगातार सेवन करने लगें तो ये उपयोगी यौगिक नुकसान पहुंचाने
लगते हैं क्योंकि नाइट्रेट हमारे थूक में उपस्थित बैक्टीरिया और आंतों के एंजाइम्स
के द्वारा परिवर्तित हो जाते हैं। इस परिवर्तन के फलस्वरूप दो तरह के अन्य यौगिक पैदा
हो सकते है - नाइट्राइट एवम् नाइटोसमीन। हमारे रक्त में नाइट्राइट के मात्रा यदि लगातार
उच्च स्तर पर बनी रहे तो डायबिटीज यदि पहले से मौजूद है तो बढ़ जाएगी वरना प्री डायबिटीज
पूर्ण डायबिटीज में परिवर्तित होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। निटोसमीन में कैंसर
पैदा करने की क्षमता होती है इसलिए इनका हमारे रक्त में लगातार बने रहना घातक है।
इस अध्ययन में पाया गया कि नाइट्रेट से हमारे शरीर पर से सीधे तौर पर कोई नुकसान नहीं
है बल्कि एक मात्रा तक ये रक्तचाप को नियंत्रित करने और हृदय एवम् रक्त संचार तंत्र
की सेहत बनाए रखने में सहायक ही होते हैं। नाइट्राइट भी निम्न मात्रा में कोई हानि
नहीं पहुंचाते परंतु इनका उच्च रक्त स्तर नुकसानदेह हो सकता है। नाइट्रोसामिन को तो
रोकना ही चाहिए। नाइट्रेट के वनस्पति स्त्रोत पालक, चुकंदर, गाजर, लेट्यूस और और बोक
चोय आदि हरी सब्जियां और लाल कंद होते हैं। मांसाहार में प्रोसेस्ड और प्रिजर्व्ड मीट
इसका मुख्य स्त्रोत होता है क्योंकि इनको सुरक्षित रखने के लिए सोडियम नाइट्राइट उपयोग
में लिया जाता है।
शहरों में अक्सर देखा जाता है कि सुबह सुबह लोग पार्क के आस पास बड़े गिलास में नियमित
रूप से चुकंदर, गाजर, पालक आदि का रस पीते हैं। सप्ताह में एक दो दिन तो ऐसा करना सही
है परंतु नियमित मात्रा और वह भी तरल रूप में लेना नुकसानदायक हो सकता है। इन सबको
सब्जी या सलाद के रूप में खाने और इनका रस पीने से इनका शरीर पर प्रभाव बदल जाता है
क्योंकि तरल पदार्थ तुरंत रक्त में प्रविष्ट हो नाइट्रेट, नाइट्राइट्स और नाइट्रोसामिन
के रक्त स्तर बढ़ा देते हैं। ध्यान रहे कि सारा ब्रह्मांड एक संतुलन पर ही टिका है।
जब सारी सृष्टि का आधार ही एक सूक्ष्म संतुलन है तो आप असंतुलित आहार के कैसे उम्मीद
कर सकते हैं कि आप लाभान्वित होंगे ? जीवन में यदि हम इस सवाल को भूलें नहीं तो संभव
है हम एक स्वास्थ्य से परिपूर्ण जीवन यात्रा पूरी कर सकेंगे।
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