अमेजॉन के लाखों कस्टमर का डाटा लीक हुआ। ठगों ने लीक डाटा के जरिए कनाडा और यूनाइटेड किंगडम (UK) के अमेजॉन ऐप यूजर ने नंबर जुटाए। एक खास सॉफ्टवेयर वीके डायल से उन नंबरों पर कॉल करते। यह सॉफ्टवेयर कॉल को ट्रांसलेट कर देता है। यूजर से ठग कस्टमर केयर का प्रतिनिधि बनकर बात करते और कहते कि आपका अकाउंट हैक हो गया है। इसके बाद चलता जाल में फंसाने का खेल।
जोधपुर में बैठकर ये सब करने वाले शातिर ठगों ने बाकायदा एक कॉल सेंटर बना रखा था। 8 लोगों को सैलरी पर रखा था। सभी को ठगी के जरिए 15 से 25 हजार डॉलर कमाने का टारगेट दे रखा था। एक डॉलर पर एक रुपए कमीशन भी फिक्स था।
इंटरनेशनल जालसाजी के इस गिरोह का जब खुलासा हुआ तो पुलिस भी इनके कारनामे सुन कर चौंक गई।
3 साल से चल रहा था फर्जी कॉल सेंटर
जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के शास्त्रीनगर थाना इलाके में सरदारपुरा स्थिर साइबर पार्क की चौथी मंजिल पर 3 साल से एक कॉल सेंटर चल रहा था। किसी को पता नहीं था कि यहां होता क्या है? कॉल सेंटर पर काम करने वाले 8 कर्मचारियों की हमेशा नाइट ड्यूटी लगती थी। ताकि जब वे कॉल करें तो अमेरिका-कनाडा और यूरोपीय देशों में दिन हो।
शास्त्री नगर थाना अधिकारी जोगेंद्र सिंह ने बताया कि पुलिस को ठगी का इनपुट मिला तो 30 जून को साइबर पार्क स्थित कॉल सेंटर पर दबिश दी। सभी 8 कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। कार्रवाई की भनक मुख्य आरोपी को लगी और वह फरार हो गया।
मुख्य आरोपी गुजरात के अहमदाबाद के मणिनगर इलाके का रहने वाला पार्थ भट्ट (30) पुत्र जयेश भाई है। दबिश के दौरान पुलिस ने 22 हेडफोन, एक लैपटॉप चार्जर, 3 राउटर, केबल टीवी, नेट कनेक्टर, 30 माउस और 25 की-बोर्ड भी जब्त किए। आईटी एक्ट में मामला दर्ज किया गया और 1 जुलाई को सभी आरोपियों को सरदारपुरा थाना इंचार्ज के नेतृत्व में कोर्ट में पेश किया गया। मुख्य आरोपी की तलाश है।
यूनाइटेड किंगडम, कनाडा के नागरिक निशाने पर
कॉल सेंटर पर काम करने वाले 8 कर्मचारी मास्टरमाइंड पार्थ भट्ट के इशारे पर काम करते थे। सभी के पास अलग कंप्यूटर था। इन्हें 15 से 25 हजार मंथली सैलरी और एक डॉलर की ठगी पर एक रुपए कमीशन देता था। इनके पास नागरिकों के डाटा की लिस्ट होती थी। एक सॉफ्टवेयर वीके डायल के जरिए ये लोग ट्रांसलेटेड कॉल करके विदेशियों को निशाना बनाते थे।
ठगी के लिए ये लोग विदेशी नागरिकों की अमेजॉन आईडी को हैक करते थे। इसके बाद अमेजॉन कस्टमर की जानकारी लेकर उन्हें कॉल करते थे। कस्टमर प्रतिनिधि बनकर कहते थे कि आपकी अमेजॉन आईडी हैक हो गई है।
इसके बाद ये लोग एक गिफ्ट-कार्ड को स्क्रैच करने का झांसा देते। इसके लिए वे कस्टमर को एनी डेस्क ऐप इंस्टॉल करने की सलाह देते। कस्टमर इस ऐप को इंस्टॉल करता तो उसके खाते से पैसे ट्रांसफर कर लेते थे। यह पैसा सीधे सरगना पार्थ भट्ट के खाते में जाता था। पार्थ कर्मचारियों को सैलरी और कमीशन देता था। ठग गैंग का सरगना पार्थ रात 11:30 से 2:00 बजे के बीच कॉल सेंटर आता था और कर्मचारियों की परफॉर्मेंस को लेकर मीटिंग करता व निर्देश देता था।
ये था ठगी का तरीका
विदेशी नागरिकों के अमेजॉन कस्टमर डाटा को एक वेब पेज पर डाला गया था। वीके डायल सॉफ्टवेयर से इन कस्टमर के पास ऑटोमैटिक कॉल जाता था। जिसमें रिकॉर्डेड स्क्रिप्ट चलती थी। इसमें कहा जाता था कि आपका अकाउंट हैक हो चुका है। इसे कोई और यूज कर रहा है। लॉ एंड इन्फोर्समेंट ने आपका अकाउंट हैक किया है। अधिक जानकारी के लिए 1 दबाएं।
कॉल सुनकर अगर कोई कस्टमर 1 दबाता तो वह कॉल जोधपुर स्थित कॉल सेंटर पर आता था। इसके बाद ये विदेशी नागरिक से ट्रांसलेशन ऐप के जरिए बात करते और बातों-बातों में उसके बैंक अकाउंट नंबर, नाम, खाते में रुपए की जानकारी ले लिया करते थे। यह जानकारी कर्मचारी अपने बॉस पार्थ से शेयर करता था।
इस तरह कर्मचारियों का काम शिकार तलाशना और उसने फंसाकर जानकारी जुटाना था। आगे की प्रक्रिया पार्थ करता था।
अमेजॉन कस्टमर से कहा जाता कि हमने आपकी रिक्वेस्ट बैंक को मेल कर दी है। आपका अकाउंट 24 घंटे के लिए फ्रीज किया जाता है। आप अपने अकाउंट से पैसा किसी सेफ जगह रख सकते हैं।
कनाडा में हर नागरिक के पास एक सोशल सिक्योरिटी नंबर होता है। यह बैंक से लिंक होता है। यह कुछ-कुछ भारत के आधार कार्ड जैसा होता है। इसी सोशल सिक्योरिटी नंबर के जरिए अकाउंट हैक होने का डर दिखाकर आरोपी कस्टमर को हैकिंग से बचने के लिए गिफ्ट-कार्ड खरीदने की बात कहते थे।
कस्टमर जब गिफ्ट कार्ड खरीदता तो उसकी वैलेडिटी चेक करने के नाम पर कार्ड के नम्बर ले लेते। इन नम्बरों के आधार पर कार्ड को स्क्रैच कर पेपल अकाउंट में पैसे ले लिया करते थे। यहां से इन पैसों को कनाडा में बैठा ठग निकाल लेता था। बाद में हवाला और अन्य तरीकों से इस पैसों को इंडिया भेजा जाता था।
स्पार्क मैसेंजर के जरिए करता था कर्मचारियों से बात
मास्टरमाइंड पार्थ अपने 8 कर्मचारियों से फोन पर कॉल लगाकर बात करने के बजाय स्पार्क मैसेंजर का सहारा लेता था। शाम 7 बजे से काॅल सेंटर एक्टिव होता था। रात 11 बजे तक यहां पर काॅलिंग होती थी।
शास्त्रीनगर में साइबर पार्क स्थित कॉल सेंटर और ऑफिस को पूरी तरह प्रोफेशनल बनाया गया था। काॅल सेंटर की तरह ही यहां सारे संसाधन थे। पूरे ऑफिस में कैमरे लगाए गए थे। कैमरों से पार्थ माॅनिटरिंग करता था। 30 जून की रात ने दबिश दी तो कैमरों में लाइव रिकाॅर्डिंग देखकर वह फरार हो गया।
इंटरव्यू के आधार पर होता सिलेक्शन
फर्जी काल सेंटर में ठगी के आरोप में पकड़े गए युवकों से पूछताछ में सामने आया कि इन्हें अच्छी सैलरी का लालच दिया गया। टेक्निकल एक्सपर्ट को प्राथमिकता दी जाती थी। फार्म भरने के बाद इंटरव्यू भी लिया जाता था। फिलहाल मुख्य आरोपी पार्थ भट्ट फरार है। मामले की जांच सरदारपुरा थाना अधिकारी सोमकरण को सौंपी गई है।
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