राजस्थान सहित उत्तरी भारत के राज्य एक बार फिर एनआईआरएफ (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रैंकिंग फ्रेमवर्क) में फिसड्डी साबित हुए हैं। यूनिवर्सिटी से लेकर कॉलेज तक, मैनेजमेंट से लेकर इंजीनियरिंग तक, हर सेक्शन में दक्षिणी राज्य बेहतर हैं।
यूनिवर्सिटी और कॉलेजों की कैटेगरी में टॉप-100 में आने वाले संस्थानों में लगभग 60 प्रतिशत संस्थान दक्षिण भारत के 5 से 7 राज्यों से हैं। देश के 29 राज्यों में से 19 राज्य ऐसे हैं, जिनका एक भी कॉलेज देश के टॉप-100 कॉलेजों में नहीं है।
सोमवार को जारी हुए एनआईआरएफ रैंकिंग में तमिलनाडू, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल और तेलंगाना का दबदबा रहा। उत्तरी भारत से सिर्फ राजधानी दिल्ली ही ऐसा राज्य है जहां के इंस्टीट्यूट टॉप-100 में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं।
रैंकिंग में कहां हैं राजस्थान और देशभर के राज्यों के कॉलेज और यूनिवर्सिटीज
हर बार की तरह इस बार भी एनआईआरएफ रैंकिंग में राजस्थान का एक भी कॉलेज टॉप-100 में जगह नहीं बना पाया है। वहीं, यूनिवर्सिटीज की बात करें तो हमेशा की तरह बिट्स और बनस्थली को छोड़ किसी भी स्टेट या सेंट्रल यूनिवर्सिटी का नाम इस लिस्ट में नहीं है। 6 एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी होने के बावजूद एक भी यूनिवर्सिटी टॉप-40 में जगह नहीं बना पाई। इसी तरह डेंटल और इनोवेशन के मामले में भी एक भी इंस्टीट्यूट टॉप संस्थानों में जगह नहीं बना पाया है।
कोई बेहतर कॉलेज नहीं बना पाया राजस्थान
3694 कॉलेजों वाले राजस्थान में 2017 से लेकर 2023 तक की रैंकिंग के बीच सिर्फ 2021 में एसएस जैन सुबोध कॉलेज ही टॉप-100 में जगह बना पाया था। उसके अलावा 6 साल में एक भी कॉलेज टॉप-100 में नहीं है। पिछले दो साल से यही स्थिति है।
6 साल से एक भी स्टेट-सेंट्रल यूनिवर्सिटी को जगह नहीं
देश में सबसे ज्यादा 92 यूनिवर्सिटी वाले राजस्थान से सिर्फ दो यूनिवर्सिटी बिट्स और बनस्थली ही इस रैकिंग में हैं। राजस्थान की 28 स्टेट और 1 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में से 6 साल से कोई भी टॉप-100 में नहीं आया है। इनमें से 6 एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हैं। अंतिम बार 2017 की रैंकिंग में वैटरनरी यूनिवर्सिटी 68 और राजस्थान यूनिवर्सिटी 79 रैंक पर आई थी।
आईआईटी-आईआईएम-एम्स टॉप-10 में भी नहीं
राजस्थान में इंजीनियरिंग के लिए आईआईटी जोधपुर, मैनेजमेंट के लिए आईआईएम उदयपुर, मेडिकल के लिए एम्स जोधपुर और लॉ के लिए नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर हैं। मगर इनमें से एक भी इंस्टीट्यूट अपनी कैटेगरी में टॉप-10 में नहीं है। इंजीनियरिंग में आईआईटी जोधपुर 30वें, आईआईएम उदयपुर 16वें, मेडिकल में एम्स जोधपुर 13वें रैंक पर है। वहीं, एनएलयू ने इस बार अप्लाई ही नहीं किया था।
क्या हैं राजस्थान के संस्थानों के पिछड़ने के पीछे की बड़ी वजह
- टीचिंग बेहतर नहीं, फैकल्टी भी पर्याप्त नहीं : राजस्थान में पर्याप्त फैकल्टी नहीं होना और योग्य टीचर्स की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है। राजस्थान में पीपुल-टीचर रेशियो 27 है। यानी 27 छात्रों पर एक स्टूडेंट है। एनआईआरएफ लगभग 20 छात्रों पर एक टीचर को बेहतर मानता है। वहीं राजस्थान के कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में भारी संख्या में शिक्षकों के पद खाली हैं, जिन्हें भरा ही नहीं जाता है।
- बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं : राजस्थान में सरकार की ओर से कॉलेज यूनिवर्सिटी खोल तो दी जाती हैं। मगर ना तो उनके इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सही पैसा दिया जाता है ना ही शिक्षकों की भर्तियां होती हैं। ढेरों नए कॉलेज और यूनिवर्सिटीज छोटे-छोटे भवनों में चलते हैं। प्राइवेट यूनिवर्सिटीज के पास इंफ्रास्ट्रक्चर होता है मगर क्वालिटी नहीं होती। सरकारी संस्थानों में प्रोपर इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होता।
- नैक से ग्रेडिंग नहीं : राजस्थान में 99 प्रतिशत कॉलेजों के पास नैक की ग्रेडिंग नहीं हैं। नैक से ग्रेडिंग के लिए आवश्यक जरूरतें नहीं होने के चलते संस्थान नैक से ग्रेडिंग नहीं करवाते हैं। इसके चलते ना तो संस्थान अपने यहां जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाते हैं ना ही सही मात्रा में फैक्ल्टी की भर्ती करते हैं। इसी का असर एनआईआरएफ की रैंकिंग पर पड़ता है।
- प्लेसमेंट फोकस्ड स्टडी नहीं : सरकारी संस्थानों में छात्रों के प्लेसमेंट पर फोकस ही नहीं होता है। यूनिवर्सिटी का सिलेबस और पढ़ाई इस तरह की होती ही नहीं है कि छात्रों को डिग्री पूरी करने के बाद प्लेसमेंट मिल सके। जहां प्लेसमेंट करवाए जाते हैं वहां बेहतर शिक्षण व्यवस्था नहीं होने के चलते अच्छी कम्पनियां आती ही नहीं हैं। इससे छात्रों के अच्छे प्लेसमेंट ही नहीं हो पाते हैं।
- रिसर्च पर फोकस नहीं : राजस्थान में यूनिवर्सिटी सहित तमाम संस्थानों का रिसर्च पर बहुत ज्यादा फोकस नहीं होता है। यूनिवर्सिटीज में ना ही गंभीरता से पीएचडी की जाती हैं। ना ही देशभर से मिलने वाले रिसर्च प्रोजेक्टस को समय पर पूरा किया जाता है। स्टेट यूनिवर्सिटीज में जो रिसर्च पर जरा भी ध्यान नहीं दिया जाता है। पॉलिटिकल इंटरफेयरेंस के चलते यूनिवर्सिटीज में मनमर्जियां होती हैं और पूरा फोकस रिसर्च और एजुकेशन से डायवर्ट होकर पॉलिटिक्स और एडमिनिस्ट्रेशन पर शिफ्ट हो जाता है।
- विविधता बढ़ाने पर फोकस नहीं : राजस्थान के इंस्टीट्यूट सिर्फ अपने क्षेत्र में ही छात्रों के प्रवेश और पढ़ाई पर फोकस करते हैं। इस तरह से करिकुलम डिजाइन नहीं होता कि बाहरी राज्यों के छात्र भी आसानी से आकर पढ़ सकें। इसके अलावा छात्राओं का एनरोलमेंट बढ़ाने के लिए भी कुछ खास प्रयास नहीं किए जाते हैं। आईआईएम उदयपुर संस्थान में छात्राओं की भागीदार बढ़ाने के लिए 5 नम्बर अतिरिक्त देता है इस तरह के प्रयास राजस्थान में और कहीं नहीं होते।
दक्षिण भारत के राज्य उत्तर भारत से कई गुना आगे
देशभर में अलग-अलग कैटेगरी में रैंकिंग पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि हायर एजुकेशन का स्तर दक्षिणी भारत के राज्यों में काफी बेहतर है। यहां के कुछ राज्य मिलाकर ही हर कैटेगरी के टॉप-100 इंस्टीट्यूट में से लगभग 60 प्रतिशत इंस्टीट्यूट इन्हीं राज्यों से आते हैं। इनमें तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और उड़ीसा शामिल हैं।
- देशभर के कॉलेजों में उत्तरी और मध्य भारत के राज्यों के बुरे हाल हैं। राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, झारखंड राज्यों से एक भी कॉलेज टॉप-100 में नहीं है। दक्षिणी राज्यों के अलावा 32 कॉलेज दिल्ली से इस लिस्ट में हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल से 8 कॉलेज हैं।
जयपुर के 671 कॉलेजों में से एक भी टॉप-100 के लायक नहीं
राजस्थान के जयपुर जिले में अकेले 671 कॉलेज हैं। देशभर में कॉलेजों के मामले में जयपुर बेंगलुरु अरबन के बाद दूसरे स्थान पर है। इसके बावजूद जयपुर से एक भी कॉलेज टॉप-100 में जगह नहीं बना पाया है। इसके अलावा सीकर में भी 308 कॉलेज हैं। मगर कोई भी कॉलेज टॉप-100 में जगह नहीं बना पाया है। राजस्थान में 3694 कॉलेज और 92 यूनिवर्सिटी हैं। वहीं प्रति लाख आबादी पर राजस्थान में 40 कॉलेज हैं। वहीं लगभग 25 लाख छात्रों का राजस्थान में एनरोलमेंट है।
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