प्रहार

 

सोचता हूं ये युवतियाँ

जो जीवन उड़ेल रही हैं

युवाओं के हृदय में

क्या ये सब भी

एक दिन बूढ़ी हो जाएँगी ?

पीछे मुड़ के झरोखों से देखेंगी

समय के पदचिन्हों को

अपनी सुराही गर्दन पर

पलकों के नीचे गहराते श्याम वर्ण को

शरीर पर समय के पदचाप

जो कभी नृत्य सरीखे थे

अब कितने कंटीले हो चले हैं!

देखता हूँ मैं पारदर्शी शीशे में

इस इंद्रजाल को

या कहूं समय के प्रहारों को।

समय के प्रहार कमर झुका देते हैं

महाबली की

विजय पराजय पराभव

सबसे उसे भी गुजरना होता है

जो अजेय होने की घोषणा करता है

घुटने सहलाते दिखे हैं

ईश्वर के दूत हों या स्वप्न सुंदरी

समय चक्र हर चट्टान को भंगुर कर डालता है

रूप, धन, अजर, अमर

कितनी ही व्यंजना रचो

एक दिन सब बूढी हो जाएंगी

इन युवतियों की तरह

जो आज युवा हृदय को तरंगित कर रही हैं।