जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर से राजनीति से सेवानिवृत्ति होने से मनाकर एक नई बहस छेड़ दी है। अब यह कयास लगाया जाने लगा है कि आने वाले समय में  सीएम गहलोत  लोक लुभावना बजट पेश कर कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने का नया  रणनीति खेल शुरू हो गया हैं। ऐसे में अब फिलहाल यह कह पाना असंभव लग रहा है कि आने वाले समय में सत्ता और संगठन में किस प्रकार का बदलाव आएगा। प्रदेश में जनवरी के माह में होने वाली विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों से ऐसा लगता है कि सीएम गहलोत अपनी राजनीतिक हैसियत को बढ़ाने के लिए कुछ ऐसे कदम उठा रहे हैं जिससे कि यह लगने लगे कि उनके बिना पार्टी की नैया पार लगाना संभव नहीं हो पाएगा। उन्होंने विभिन्न स्तर पर अपने आपको  मजबूत दिखाने के लिए कई प्रकार के प्रयास शुरू किए हैं यह प्रयास कितने सफल होंगे यह तो आने वाला समय ही स्पष्ट कर पाएगा। अब चर्चा यह जोरों पर होने लगी है कि क्या राजनीतिक परिपेक्ष में कुछ होने वाला है या नहीं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के प्रभारी सुरजीत सिंह रंधावा ने यह दावा किया था कि 400 ब्लॉक अध्यक्ष और 26 जिलाध्यक्ष की सूची 2 दिन में ही जारी कर दी जाएगी। लेकिन  यह संभव नहीं हो पाया है और अब यह भी कयास लगाया जाने लगा है कि राजनीति में जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वह होता नहीं है।  प्रभारी रंधावा ने यह भी दावा किया था कि वे सीएम गहलोत और पायलट के बीच चल रहे राजनीतिक विवाद को भी खत्म करा देंगे। सभी को इंतजार है कि यह अवसर कब आएगा और राजनीतिक मतभेद कैसे दूर होंगे अभी तो पहेली बनी हुई है।राजनीतिक विशेषज्ञों का इतना ही कहना है कि 25 सितंबर को जो कुछ घटनाक्रम कांग्रेस की राजनीति में सामने आया और उसके बाद बगावत करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होना इस बात का संकेत देता है कि पार्टी नेतृत्व मजबूती के साथ कोई निर्णय करने की स्थिति में नहीं है। यही नहीं राजस्थान पर्यटक विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर ने अपने दोनों की स्पीड बढ़ा दी है। स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल और जलदाय मंत्री डॉ. महेश जोशी भी पहले से अधिक सक्रिय हुए हैं। फिलहाल 26 जनवरी तक भारत जोड़ो यात्रा चल रही है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इसमें व्यस्त है और राजनीतिक परिपेक्ष में कोई फैसला इस बीच होना संभव नजर नहीं आ रहा है। जयपुर में 10 जनवरी से 12 जनवरी तक देशभर की विधानसभाओं के अध्यक्षों और सचिवों का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित होना प्रस्तावित है। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ तथा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के आने का कार्यक्रम लगभग तय हो चुका है। 3 दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में क्या कुछ नया राज्य की खेल सामने आता है उसका भी इंतजार करना पड़ेगा। हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा 16 जनवरी को विधायकों के इस्तीफे के बारे में सुनवाई और फैसला भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसी के साथ 23 जनवरी को राज्यपाल अभिभाषण के साथ विधानसभा का बजट सत्र की शुरुआत भी होनी है। बजट सत्र से पहले निश्चित तौर पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक भी होगी और उसमें कांग्रेस अधिवेशन में दिए गए सुझाव के बारे में भी चर्चा कर कोई निर्णय किया जाएगा। अब यहां यह देखना जरूरी है कि प्रभारी रंधावा की भूमिका किस प्रकार की है और वह केंद्रीय नेतृत्व से क्या आप उस निर्णय कराने में सक्षम हो पाते हैं उसी से आगे की राजनीति का फैसला होना संभव लगता है। सचिन पायलट ने चुप्पी साधी हुई है और वह इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि राहुल और प्रियंका के साथ हुई गुप्त मंत्रणा का क्या कुछ परिणाम सामने आएगा। राजनीतिक अनिश्चितताओ पर टिका हुआ है और फैसले भी उसी आधार पर होने की चर्चा से राजनीतिक माहौल गर्म आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। प्रदेश की राजनीति में बदलाव के लिए जनवरी माह महत्वपूर्ण माना जा रहा है और इसी को लेकर सीएम गहलोत और पायलट गुट के बीच हलचल है। कांग्रेस का फरवरी के अंतिम सप्ताह में छत्तीसगढ़ में होने वाला राष्ट्रीय अधिवेशन भी तय हो चुका है। कांग्रेस के अधिवेशन में उदयपुर में हुए फैसलों की समीक्षा भी किया जाना प्रस्तावित है और उसके अनुपालन में कई राजनीतिक दिग्गजों के भविष्य का फैसला भी होना है। इसी बात को लेकर विभिन्न प्रकार के कयास लगाया जाना राजनीतिक माहौल में गर्माहट पैदा करता है। अब चाहे जो कुछ भी हो पर प्रदेश की राजनीति में प्रभारी रंधावा का दावा अभी भी संगठन में व्यापक बदलाव के संकेत दे रहा है और उस बदलाव के बाद ही यह तय होगा कि आने वाली राजनीति किस दिशा की ओर आगे बढ़ेगी। फिलहाल प्रदेश में मौजूद आसाम के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह,गुजरात प्रभारी डॉ रघु शर्मा, पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के साथ ही मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा,अग्रिम संगठनों के अध्यक्षों,राष्ट्रीय सचिव जुबेर खान, कुलदीप इंदौरा और धीरज गुर्जर की आने वाले समय में क्या भूमिका होगी इसका फैसला भी होना बाकी है। इनके फैसले में सीएम गहलोत और सचिन पायलट से पूछकर या फिर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे और संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल की राय के आधार पर राहुल गांधी और प्रियंका निर्णय करेंगे तो निश्चित तौर पर राजस्थान की राजनीति में व्यापक बदलाव आने की उम्मीद की नजर आती है। फिलहाल सबको इंतजार है कि क्या कुछ होने वाला है !