करौली ब्यूरो रिपोर्ट।
करौली के निकट दहमोली ग्राम पले बड़े एवं डाइट सर्किल करौली के निकट प्रवासी पण्डित रामभरोसी शास्त्री 9 दशक की जीवन यात्रा के बाद 5 अक्टूबर को अनंत में विलीन हो गए। जानकारी के अनुसार पंडित कुछ दिनों से रुग्ण चल रहे थे। उन्होंने 
कोलकाता महानगर में 60 वर्ष तक श्रीमदभागवत एवं रामायण के प्रवक्ता के रूप में ख्याति अर्जित कर 1000 हजार से अधिक कथा कर अपनी पहचान बनाने वाले पंडित की सुरीली आवाज में जब श्लीक, चौपाई एवं दोहों की ध्वनि गूंजती थीं, तो संपूर्ण वातावरण भक्तिमय ओर धर्ममय हो जाता और श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते थे।यह है पंडित जी की जीवन लीला।आनंदगढ-दहमोली के मुरारी लाल एवं बसंती देवी के पुत्र रामभरोसी का जन्म 5 अप्रेल 1932 को किसान परिवार में हुआ। ग्रामीण परिवेश में किशोरावस्था तक खेती-बाड़ी एवं पशुपालन के कार्य में व्यस्त रहे। इस दौरान औपचारिक शिक्षा प्राप्ति का अवसर ही नहीं मिला।इसी अवधि में करौली के गुरु महाराज बालिकदासजी के सम्पर्क में आकर सामान्य विद्या प्राप्त की। गुरुदेव के मार्गदर्शन में धर्म ग्रन्थों के पठन-पाठन का अभ्यास किया और आराध्य राधा-मदनमोहन जी के मंदिर में नित्य कथा वाचन करने लगे। यहीं से हौंसले की उड़ान ने कलकत्ता पहुंचा दिया। वहाँ के मारवाड़ी समाज के बीच धार्मिक प्रवचन एवम कथाओं का अन्तहीन दौर शुरू हुआ। पंडितजी बृजवासी कथावाचक के रूप में कलकत्ता में छा गये। पश्चिमी बंगाल से उड़ीसा, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली में संगीतमय कथा-प्रवचनों के लिए उनका आना-जाना चलता रहा। जीवन के उत्तरार्ध में फिर राधा-मदनमोहन जी की शरण में लौट आए। दो वर्ष पूर्व तक श्रीमदभागवत सप्ताह पारायण एवम आराध्य मदनमोहन जी के चरणों में नियमित उपस्थिति देकर वे अपने जीवन को धन्य मानते थे। आखिर प्रभु के अनन्य भक्त पंडित आश्विन शुक्ल दशमी को अपने आराध्य से जा मिले।