जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
जेडीए की साल 2010 में आई पिंकसिटी प्रेस एन्क्लेव, नायला पत्रकार आवास योजना के कब्जा पत्र के लम्बे इंतजार से नाराज 571 आवंटी परिवारों ने हुंकार भरी है कि अब बुधवार को वे स्वयं योजना स्थल पर पहुंचकर अपनी अपनी जमीनों पर काबिज होंगे और सामूहिक भूमि पूजन कर मकान निर्माण शुरू करेंगे।
मंगलवार को यहां पिंकसिटी प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में 571 आवंटियों के प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में पत्रकारों की आवास की समस्या को देखते हुए नायला में पिंकसिटी प्रेस एन्क्लेव योजना शुरू की थी। योजना की सम्पूर्ण प्रक्रिया पूर्ण होने पर लॉटरी निकालकर 571 आवंटियों को सफल घोषित किया गया था। इसके बाद सभी आवंटियों के प्लॉट की प्रोपर्टी आईडी जारी कर उनसे एडवांस में जमा 10-10 हजार रुपए के डीडी कैश करा लिए गए। इसके बाद चुनाव की आचार संहिता लग जाने के कारण योजना के कब्जा पत्र जारी करने और शेष राशि के डिमांड नोट जारी करने के काम शेष रह गए। आचार संहिता के बाद राज्य में सरकार बदल गई। मुख्यमंत्री बदल जाने के चलते साल 2014 में जेडीए ने जब इस योजना के कब्जा पत्र देने के संबंध में सरकार से मार्गदर्शन चाहा तो कोई जवाब नहीं दिया गया। पिछली सरकार में पत्रकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद तत्कालीन प्रशासन व अधिकारियों ने योजना पर अनेक रोड़े अटका दिए और योजना को निरस्त किए जाने की मौखिक अफवाह फैलाकर सभी को भ्रमित कर दिया। अब चूंकि प्रदेश में वापस गहलोत की सरकार है तो सभी आवंटियों ने उनसे भी आस की कि वे जेडीए को मार्गदर्शन देकर 571 परिवारों के इंतजार का समाप्त कर देंगे, लेकिन उन्हें भी भ्रमित किए जाने से यह योजना इस सरकार में भी पिछले 4 साल से लटकी हुई है।योजना के सभी दस्तावेज आज भी जेडीए की वेबसाइट पर उपलब्ध है और बार बार ज्ञापन व पत्र देने पर भी कोई जवाब नहीं मिलने से सभी 571 आवंटी परिवार रुष्ट हैं। ऐसे में सभी ने एक स्वर में बुधवार को नायला पहुंचकर अपनी अपनी जमीन पर काबिज होने और भूमि पूजन का भवन निर्माण का शुभारंभ करने का निर्णय किया है।पत्रकार आवास योजना नायला की दुर्दशा की तथ्यवार सम्पूर्ण कहानी।
वे तथ्य जिससे सब वाकिफ हैं।
माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पत्रकारों के प्रति सदाशयता और मंशा पर पत्रकारों के कुछ वरिष्ठ साथियों के प्रयासों से पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव (पत्रकार आवास योजना) सबसे पहले वर्ष 2010 में उदयपुरिया में सुझाई गई। योजना के आवेदन छपे और सभी से आवेदन लिए गए। इसके बाद जयपुर मुख्यालय से उदयपुरिया की दूरी को लेकर इस स्थान को परिवर्तित कर नायला कर दिया गया। वर्ष 2010 से वर्ष 2013 तक जेडीए की ओर से नायला में योजना स्थल पर आवश्यक सभी विकास कार्य पूर्ण कर लिए गए। वहीं डीपीआर और पत्रकार आवास कमेटी द्वारा योजना के नियम व शर्तों के अनुसार सभी आवेदकों की छंटनी कर 571 पात्र आवेदकों की सूची जेडीए को भेज दी गई। इसके बाद जेडीए की ओर से अप्रैल 2013 में पात्र आवेदकों की लॉटरी निकाल दी गई। लॉटरी निकालने के साथ ही जेडीए द्वारा पात्र आवेदकों के प्रथम एडवांस के रूप में जमा 10-10 हजार रुपए के डीडी कैश करा लिए गए और अपात्र आवेदकों के डीडी वापस लौटा दिए गए। साथ ही सभी पात्र आवेदकों के आवंटन पत्र बनाकर वितरण की तैयारी कर ली गई। यहां तक तो सबकुछ ठीक था, लेकिन इसके बाद अति उत्साह और अदूरदर्शिता के चलते कुछ ऐसा हुआ, जिससे योजना में अड़चनों की शुरुआत हुई। योजना के अमलीजामा पहनने से उत्साहित नेताओं ने यह तय किया कि सभी को मुख्यमंत्री के हाथों ही आवंटन पत्र दिलाया जाए। मुख्यमंत्री से समय मांगा गया, जिसके मिलने में काफी देरी हुई और इसी बीच द्वेषतावश कुछ लोगों ने 20 आवेदकों की अपात्रता का दावा करते हुए हाई कोर्ट में दस्तक दे दी और योजना पर स्टे ले आए। मामले में हाईकोर्ट का निर्णय आने से पहले प्रदेश में विधानसभा चुनावों की आचार संहिता लागू हो गई। इस आचार संहिता के दौरान निर्णय आया, जिसमें योजना को हरी झंडी देते हुए कोर्ट ने पात्रता के मानदंडों की संख्ती से पालना करते हुए पात्र आवेदकों को भूखंड देने का निर्णय सुनाया। यहां तक की कहानी से सभी रूबरू हैं। सबकुछ पहले की तरह हो चुका था और विधानसभा चुनाव की आचार संहिता हटने के साथ ही सभी 571 पात्र आवेदकों को भूखंड के आवंटन पत्र दिए जाने थे, लेकिन इस चुनाव में प्रदेश की सरकार बदल गई। पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के जनक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्थान पर भाजपा की वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो गई। बस यहीं से शुरू हुई इस कहानी का उलट मोड़।
वे तथ्य जिनसे सभी अनभिज्ञ हैं।
चूंकि नई मुख्यमंत्री से पूछे बिना पुराने मुख्यमंत्री की बनाई योजना में लाभार्थियों को लाभ कैसे दिया जा सकता था। सो जेडीए द्वारा सरकार से पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव के संबंध में राय ली गई, जिस पर पत्रकार विरोधी सरकार की मुखिया द्वारा योजना को लटकाने के ही निर्देश दिए गए। इन निर्देशों की पालना में जेडीए और डीआईपीआर तथा हमारे तत्कालीन नेताओं ने मिलकर योजना का ही भट्टा बिठा दिया।
डीआईपीआर ने शुरू की पात्रता रिव्यू की नोटंकी।
हाईकोर्ट के निर्देशों की पालना की आड़ में डीआईपीआर और उसी की कमेटी द्वारा पूर्व में छांटे गए आवेदनों की पुन: छंटाई शुरू हुई और कहा गया कि योजना की आवेदन पुस्तिका में छपी पात्रता की शर्तों के अनुसार मात्र 3-4 दर्जन आवेदक ही पात्र हैं। चूंकि योजना से जुड़ा पात्र आवेदक निष्क्रिय थे, सो डीआईपीआर व सरकार में सक्रिय कुछ पत्रकार नेता बिना तथ्यों को देखे व समझे ही इनके इस झांसे में आ गए। यही बताया गया कि छंटनी में कुछ आवेदक ही सफल हो पा रहे हैं। किसी को पीएफ की रसीदें नहीं होने तो किसी को अधिस्वीकृत नहीं होने का कारण बताते हुए अपात्र होने का भ्रम फैलाया गया।
योजना की शर्तों में लॉटरी से पहले दी गई शिथिलता की बात छिपाई।
पत्रकार आवास योजना की शर्तों को पूरा नहीं कर रहे आवेदकों की समस्या को देखते हुए 25 फरवरी 2013 में राज्य सरकार ने प्रदेश भर में विभागीय सर्कुलर जारी करते हुए महज 5 वर्ष के अनुभव को प्राथमिकता देते हुए पीएफ की रसीदों की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया और इसी के आधार पर अप्रेल 2013 में 571 आवेदकों को पात्र मानते हुए लॉटरी निकाली गई थी। तत्कालीन कमेटी ने शिथिलता के इस सर्कुलर के आधार पर ही छंटनी कर 571 आवेदकों को सफल करार दिया था। सर्कुलर को वसुंधरा राजे सरकार में न तो डीआईपीआर, न जेडीए और न ही कुछ ज्ञानवान नेताओं ने सामने आने दिया। न तो कोर्ट के समक्ष और न ही आवंटी पत्रकारों के सामने। वरना छंटनी की नोटंकी तभी समाप्त होकर हाई कोर्ट के निर्देशानुसार सभी 571 पात्र अपने आवंटन पत्र प्राप्त कर चुके होते। कोर्ट के निर्देशानुसार योजना की बुकलेट में छपी शर्तों पर काम हुआ। चूंकि सरकार के रियायती दर पर पत्रकारों को भूखंड देने के पुराने सर्कुलर से तैयार बुकलेट की शर्तें भी तो नए सर्कुलर के आधार पर शिथिल होकर बदल चुकी थी। लेकिन इस पर किसी ने गौर नहीं किया और पीएफ की रसीदों की आंट लगाकर हमें योजना से दूर किया गया।
अधिस्वीकृत होने की शर्त का रोड़ा।
साथियों, योजना की बुकलेट में छपी पात्रता की शर्तों (आपके साथ साझा कर रहा हूं) में और न ही शिथिलता के लिए जारी हुए सर्कुलर में कहीं अधिस्वीकृत पत्रकार हाेने की अनिवार्यता रखी गई है। इसके बावजूद डीआईपीआर ने इस भ्रम को सभी के दिमाग में फिट कर दिया, जिसमें वे पूरी तरह सफल हुए।
इकॉलोजिकल में होने का भ्रम।
इसके बाद वर्ष 2017 में जैसे ही इकॉलोजिकल जोन को लेकर सुप्रीम कोर्ट से यह निर्णय आया कि वर्ष 2011 के मास्टर प्लान में अंकित हरित पट्टी में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता और जेडीए के मास्टर प्लान 2025 को खारिज किया गया तो योजना के विरोधियों को नया पैंतरा हाथ लग गया। पत्रकार नेताओं के प्रयासों में आस लगाकर साेये हुए 571 पात्र अभ्यर्थियों को अब यह कहा जाने लगा कि योजना तो इकॉलोजिकल जोन में होने के कारण जेडीए की ओर से निरस्त कर दी गई है। इसकी हकीकत यह है कि एक ही खसरे में शामिल दस्तकार नगर और सीआरपीफ की योजनाएं जेडीए व सरकार की नजर में इकॉलोजिकल जोन में नहीं है और इन दाेनों के बीच बसी पत्रकार आवास योजना इकॉलोजिकल जोन में है। बहुत ही हास्यास्पद बात है। इसका नक्शा, जिसमें हरित पट्टी की पुरानी व खिसकाई गई लाइन अंकित है। एक तो ये कि पत्रकार आवास योजना नायला का सृजन वर्ष 2010 में ही हो चुका था, उस समय जेडीए का मास्टर प्लान 2011 ही बहाल था। जिसके अनुसार यह योजना व दस्तकार और सीआरपीएफ की योजनाएं इकॉलोजिकल जोन में नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय तो साल 2011 के बाद लागू हुआ नया मास्टर प्लान 2025 को खारिज करने को लेकर था, जिसमें बहुत सारा इकॉलोजिकल जोन रिहायशी में बदला जा रहा था। न कि 2010 में सृजित हो चुकी योजना को लेकर था। वसुंधरा राजे के काल में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की पालना की आड़ में हरित पट्टी को जानबूझकर नक्शे में खिसकाकर यह खेल रचा गया। वहीं उसी खसरे में हमारे से पहले दस्तकार नगर में राजस्थान आवासन मंडल का मकानों का व्यापार आज भी निरंकुश जारी है। और वहीं सीआरपीफ की योजना भी खूब फलफूल रही है। क्या हरित पट्टी अन्य योजनाओं को लांघकर पत्रकार आवास योजना में आ घुसी है, ऐसा बिलकुल नहीं है।
गहलोत सरकार भी भ्रमित।
वर्ष 2018 में पत्रकार हितैषी अशोक गहलोत की प्रदेश में पुन: सरकार बनी तो नायला योजना के आवेदकों में एक बार फिर आशा की किरण फूटी। लेकिन योजना के विरोधियों और अज्ञानी नेताओं ने गहलोत व इस नई सरकार को भी भ्रमित कर दिया। पिछली सरकार का छोड़ा इकॉलोजिकल का शगूफा इस सरकार के दिमाग में भी फिट कर दिया ।
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