यह दिखने में एक सुंदर सा कैप्सूल होता है। चमकीला , हरा हरा मानो कोई माणक मोती हो। इसे डॉक्टर भी खूब लिखते हैं, केमिस्ट भी बेचते हैं और लोगों की तो बात ही क्या है ! यह विटामिन ई का कैप्सूल होता है। रातों रात गोरा होना है, बिना कसरत के पैरों का दर्द मिटाना है, ह्रदय रोग रोकना है। बस खाते रहिए। पर क्या ऐसा करना चाहिए ?

     विटामिन ई एक महत्वपूर्ण विटामिन है इसमें कोई दो राय नहीं है। इसका प्रभाव ह्रदय, रक्त, आंख, मस्तिष्क आदि पर पड़ता है और वहां इसकी आवश्यकता भी पड़ती है। यदि इसकी गंभीर कमी हो जाए तो व्यक्ति के कैंसर होने की संभावना बढ़ने की आशंका की जाती है पर इसके खाने मात्र से कैंसर नहीं रुकता है। पर लोग न जाने कितनी ही तरह की विटामिन निगलते रहते हैं। वैश्विक महामारी के बाद तो लोग अन्न की तरह विटामिन सप्लीमेंट खाने लगे हैं जो कि नुकसानदेह हो सकता है। विटामिन ई वसा यानि फैट में घुलने वाला विटामिन होता है जो शरीर से बाहर नहीं निकलता है। अधिक मात्रा और लंबे समय तक सेवन करने से इसका रक्त स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण रक्त ज्यादा पतला हो जाता है और जीवन के लिए घातक रक्त स्राव हो सकता है जिसके कारण मृत्यु तक हो सकती है। कोई भी विटामिन किसी अनुभवी और भरोसेमंद चिकित्सक के साथ पूर्ण परामर्श के बाद ही उपयोग में लेना चाहिए।

     विटामिन ई भोजन में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है इसलिए इसका उपयोग सीमित समय और विशिष्ट स्थिति में ही करना चाहिए। यह विटामिन आपको सनफ्लावर (सूरजमुखी), सोयाबीन, सैफलॉवर (कुसुम), गेहूं और मक्का आदि के तेल में प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसके अलावा अखरोट, मूंगफली, हेजल नट, आम, टमाटर, पालक, ब्रोकोली तथा कीवी में भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इस विटामिन के सप्लीमेंट की आवश्कता चंद मामलो को छोड़ कर नहीं पड़ती है पर यह सबसे सामान्यतौर पर बिकने वाले विमानिंस में से एक है।

     आज कल विटामिंस और अन्य पदार्थों की बड़ी और आकर्षक बॉटल चारों तरफ घुमाई जा रही हैं। याद रखिए, आपका शरीर आपको उपहार स्वरूप मिला है। यह आपकी मिल्कियत नहीं है। इसकी देखभाल जरा जानकारी के साथ कीजिए।