जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
मुक्त मंच की 97वीं मासिक संगोष्ठी
‘भाईचारा और धार्मिक आस्था‘ विषय पर परम विदुषी परमहंस डॉ पुष्पा गर्ग के सानिध्य में साहित्य मनीषी डॉ नरेंद्र शर्मा ‘कुसुम‘ की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसका संयोजन शब्द संसार के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने किया। न्यायमूर्ति आरके अकोदिया मुख्य अतिथि थे। मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति आर.के. अकोदिया ने कहा कि आज इतिहास, मिथ, धर्म और किवदंतियों में घुलमिल रहे हैं। हम बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ रहे हैं और जो अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए अपने देव, इष्ट, आराध्य की पूजा और पूजा स्थल का संरक्षण अपनी आस्था के अनुसार करना चाह रहे हैं, प्रतिदिन इस प्रकार के विवाद अदालतों में प्रस्तुत किए जा रहे हैं। हमारी आंखों के सामने एक हिंदू राष्ट्र के निर्माण का कार्य चल रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि समाज भाईचारे को प्रोन्नत करने के लिए प्रेम, दया, करुणा को अपने आचरण का अंग बनाए। 
अपने अध्यक्षीय भाषण में डाॅ. नरेंद्र शर्मा कुसुम ने कहा कि धर्म में मानव स्वभाव का सर्वोपरि महत्व होता है। दया करुणा, प्रेम, समानता, समरसता उसके प्रमुख लक्षण हैं। मनुष्य को जो दूसरा दायित्व मिला है उसका निष्ठा पूर्वक पालन धर्म का अनिवार्य गुण है। आचार संहिता का परस्पर विश्वास के साथ नैतिकता की परिधि में परिपालन से ही भाईचारा का संवर्द्धन होता है। आज हिंदुत्व के लंबरदार अपने धर्म को दूसरों के धर्म से श्रेष्ठ सिद्ध करने में जुट गए हैं, जिससे समाज में एक वर्ग नफरत, वैमनस्य और घृणा का शिकार हो रहा है जो त्याज्य और निंदनीय है।
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अरुण कुमार ओझा ने कहा कि भाईचारा एक भ्रम है आज विश्व पटल पर दृष्टि डालें तो अमेरिका में काले गोरे का द्वंद, इंग्लैंड में अंग्रेज और एशियन, इजराइल और फिलीस्तीन-येरूसलम को लेकर और भारत में हिंदू मुसलमानों में तनाव का वातावरण है।अनंत श्रीवास्तव ने कहा कि दरअसल 1947 में हुआ बंटवारा ही गलत था। नींव ही गलत पड़ गई। भारत सोने की चिड़िया था। राजेंद्र कुंभज ने कहा कि 1925 में ही एक हिंदू राष्ट्र की कल्पना की गई तो 9-10 दशक में आज 2014 के बाद साकार होने की ओर अग्रसर है। आवश्यकता तो सद्भावी राष्ट्र की है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी रामस्वरूप जाखड़ ने कहा कि सारा संकट राजनीति में धर्म के घालमेल का है। दोनों जब अपनी मर्यादा में रहेंगे तभी भाईचारा संभव है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी डाॅ. सत्यनारायण सिंह ने कहा कि इन दिनों हिंदुत्व के ठेकेदारों ने सर्वधर्म समभाव के विचार को छोड़कर राष्ट्रीय नेरेटिव जो अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलने का है, उसका अभियान चला रखा है जिससे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता खतरे में है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी आरसी जैन ने कहा कि धार्मिक कट्टरता चाहे हिंदुओं में हो या मुसलमानों में देश की एकता अखंडता के लिए खतरा है। आवश्यकता है मानव-मानव में सद्भाव का संचार हो। सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी इंद्र बंसल, डी.पी. चिरानिया, वित्तीय सलाहकार आर. के. शर्मा, विष्णु लाल शर्मा, प्रो. गोविंद शंकर शर्मा ने भी अपने विचार रखे।शब्द संसार के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने संयोजकीय वक्तव्य में कहा कि आज देश में ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी, कृष्ण जन्मभूमि मथुरा शाही ईदगाह, कुतुब मीनार दिल्ली तथा ताजमहल को लेकर आवाजें गूंज रही है। हमने सोचा था बाबरी ध्वंस के बाद राम मंदिर निर्माण से देश में अमन, चैन, शांति, भाईचारा कायम होगा। हिंदू मुसलमानों में तनाव कम होगा पर लग रहा है कि धार्मिक भावनाएं कानूनी प्रावधानों से अधिक महत्वपूर्ण हैं।