कल 6 मई 2023 को  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषित कर दिया कि कोविड अब वैश्विक महामारी नहीं रही है पर यह वायरस समाप्त नहीं हुआ और शायद होगा भी नहीं। दुनिया के सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में साठ लाख लोग कॉविड के कारण अपनी जान गंवा बैठे परंतु डबल्यू एच ओ के अनुसार दो करोड़ लोगों की मृत्यु हुई। अब हम सब लोग इस महामारी को एक घटना मात्र मान बैठे हैं जो समय चक्र में घटित हुई। हम इस महामारी के उद्भव के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं पर समाप्ति की घोषणा कर रहे हैं। हम यह भी भुला बैठे है कि जिन परिस्थितियों के कारण कोविड की उत्पति हुई वे तो अभी भी वैसी की वैसी हैं बल्कि कई गुना ज्यादा खराब हो चुकी हैं। क्या ऐसा संभव नहीं है कि दूसरा कोई वायरस अपने आप को हमले के लिए तैयार कर रहा हो ?

कोविड काल के बात एक और हृदय विदारक घटनाओं का सिलसिला देखने में आया है जिसमें एकदम स्वस्थ एवम् सक्रिय व्यक्ति और वह भी अधिकतर युवा लोगों के चलते फिरते हार्ट अटैक या फिर लकवा हो जाता है। ऐसे मामले आबादी के अनुपात में सबसे ज्यादा भारत में हुए माना जा रहा है पर यहां " भाई, बहुत याद आओगे" से आगे कोई वैज्ञानिक शोध नहीं हुआ। यूरोप और अमेरिका में इस पर शोध की शुरुआत हो गई है और प्रारंभिक जांचों से पता चल रहा है कि कोविड टीके के कारण एक बहुत ही कम पाए जानी वाली स्थिति शरीर में बन सकती है जिसमें प्लेटलेट्स की कमी के बावजूद रक्त का बड़ा थक्का बन सकता है। इस व्याधि को टी टी एस यानि थ्रोंबोसिस विथ थ्रोंबोसाइटोपीनिया सिंड्रोम कहा जाता है। शोध में यह ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजनेका यानि कोविशील्ड टीके में सर्वाधिक पाया गया है परंतु जॉनसन एवम फाइजर के टीकों के बाद भी देखा गया है।

टी टी एस अपने आप में बहुत की कम पाए जाने वाली स्थिति है परंतु एडेनो वायरस आधारित टीकों के प्रभाव से ऐसा होता देखा जा रहा है। सामान्य स्थिति में प्लेटलेट्स कम होने से थक्का नहीं बनना चाहिए पर कमजोर परंतु जीवित वायरस शरीर में कोई विशेष प्रक्रिया प्रारंभ कर रहा है। अब एक नया शोध प्रारंभ कर यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि क्या एम आरएनए पर आधारित टीकों से भी ऐसा हो रहा है कि नहीं।

वैज्ञानिकों के लिए जो एक बड़ी चुनौती सामने आ रही है वह लोगों और सरकारों द्वारा किसी भी तरह के रिकॉर्ड रखने की लापरवाही है। इतने साधन होने के बावजूद किसी को पता ही नहीं है कि किसके कौनसा टीका लगा, कितना अंतराल होना चाहिए था, क्या सावधानियां बरती जानी चाहिए थी और किसी तकलीफ की स्थिति में किसे सूचित किया जाना था। इसके अलावा व्यापक मानसिक भय और अपनों को खोने का संताप भी संभवतः कोई प्रभाव डाल सकता है। दो साल का निष्क्रिय जीवन, अनियंत्रित खानपान और तरह तरह के नुस्खों को प्रयोग भी पूरी दुनिया में हुआ था। इन सबका सामान्य स्वस्थ पर बड़ा प्रभाव पड़ा है जिसमें से आज तक ज्यादातर लोग निकल नहीं पाए हैं।

कहने को तो टी टी एस एक अति असामान्य व्याधि है परंतु टीका अरबों लोगों को लगा जिसके फलस्वरूप हजारों लोगों को जीवन से हाथ धोना पड़ा जोकि एक विकट त्रासदी है।