हम लोग पिछले चंद सालों से मातृत्व दिवस एक नव परंपरा के तौर पर मनाने लगे हैं। कहते हैं कि यह एक प्रतीकात्मक रस्म विकसित हुई है मां को सम्मान देने की भावना की। इसमें कोई बुराई नहीं लगती है पर क्या मां का दिवस मनाना गणतंत्र दिवस जैसा नहीं हो गया है ? क्या हम ईमानदारी के साथ आत्म संवाद करके स्वीकार करेंगे कि हम पुरुष एवम् स्वयं महिलाएं भी उन तथ्यों से अनभिज्ञ हैं जो एक नारी माता बन कर अपने शरीर को स्थाई तौर पर कई तरह से बलिदान करती है ? अभी पुरातत्व वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है जो हर मनुष्य को जाननी एवम् याद रखनी चाहिए। इस बात को तथ्यात्मक रूप से पहली बार प्रमाणित किया जा सका है हालांकि कई सभ्यताओं में इसका अंदेशा अक्सर लगाया जाता रहा है।

खोज के अनुसार कोई स्त्री यदि एक बार भी मां बनती है तो उसकी हड्डियों में स्थाई तौर पर कमजोरी रह जाती है। गर्भावस्था के फलस्वरूप विभिन्न तत्वों की मांग इस तरह से होती है जिसकी अभी तक शत प्रतिशत जानकारी नहीं है। सिर्फ आयरन और कैल्शियम की गोलियों के सेवन से काम चलने वाला नहीं होता है। स्त्री के हार्मेंस में होने वाले परिवर्तनों, खाने पीने की रुचि का ह्रास, खाद्य पदार्थों की अत्यधिक मांग आदि कई कारण होते हैं जिनकी वजह से आशान्वित मां की हड्डियां सूक्ष्म तौर पर कमजोर पड़ जाती है और यह कमजोरी स्थाई होती है। सदियों पुराने महिला कंकालों में इस बात का स्पष्ट प्रमाण अत्याधुनिक तकनीक द्वारा अब देखे गए हैं।

इस अध्ययन से एक और बात भी सामने आई है कि हमारी हड्डियां कोई स्थाई निर्मिती नहीं हैं बल्कि इन पर जीवन की घटनाओं का असर होता रहता है। कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस जैसे तत्वों के रक्त स्तर में परिवर्तन से हड्डी तंत्र में व्यापक प्रभाव पड़ते हैं। गर्भावस्था के दौरान होने वाले व्यापक परिवर्तनों से अस्थि तंत्र में कुछ स्थाई कमजोरियां आ जाती हैं जिन्हें हर माता जीवनपर्यंत सहन करती है। इस तथ्य को सदैव याद रखना ही मातृत्व दिवस का उद्देश्य होना चाहिए - पुरुषों द्वारा और स्वयं महिलाओं द्वारा भी।