जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 

प्रदेश के मुकंदरा रिजर्व में मध्यप्रदेश के कूनो से चीते लाने की बात चल रही है लेकिन राजस्थान की विरासत और पहचान रहे बाघ ही नहीं संभाले जा रहे हैं। रणथंभौर के बाघों पर इनब्रीडिंग के भयानक खतरे मंडरा रहे हैं। यहां के बाघों का दूसरे पार्कों से संपर्क कटा हुआ है।

ऐसे में यहां के बाघ ‘आइसोलेट’ हो चुके हैं। इसके चलते देश के किसी भी अन्य टाइगर रिजर्व की तुलना में यहां इनब्रीडिंग दोगुनी है। नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस) ने रणथंभौर के 18 बाघों के ब्लड, स्टूल, बाल आदि के डीएनए से चार साल में रिसर्च कर बताया है कि इनब्रीडिंग से बाघों में शावकों के जन्म देने, पालने-पोषने की क्षमता घट रही है। मेल में स्पर्म प्रोडक्शन भी असामान्य है। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटी है।

बीमारियां झेलने की क्षमता घटी, जानलेवा कब्ज जैसी असामान्य घटनाएं

फीमेल एमटी-4, मेल टी-24, फीमेल-124, टी-5, फीमेल टी-105 को कब्ज के चलते 2-3 बार बेहोश कर ऑपरेशन करने पड़े। मुकंदरा में तो रणथंभौर से गई मादा बाघ की मौत भी इसी से हुई।

डॉक्टरों के मुताबिक इससे स्टूल पास नहीं होता, पेट में पत्थर सरीखी सख्त बॉल्स (फिकोलिप) बन जाती हैं। पिछले दिनों बाघ टी-57 को बेहोश कर जांच की तो उसमें कैंसर का ट्यूमर मिला।

रणथंभौर से 22 साल में 13 बाघ दूसरे जंगलों में गए

1998 से 2020 की गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक 13 बाघ रणथंभौर से दूसरे जंगलों में गए। पहला रिकॉर्ड 1999 में मादा बाघिन के भरतपुर पहुंचने का है। 2003-04 में टी-16 (ब्रोकन टेल) दर्रा, 2009 में मेल बाघ ‘मोहन’ करौली, 2009-10 में टी-7 भरतपुर, 2010 में बाघिन टी-35 कोटा-सुल्तानपुर, 2013 में मेल टी-62 रामगढ़ विषधारी, 2015 में टी-72 केलादेवी सेंचुरी, 2016 में फीमेल टी-92 केलादेवी, 2017 में मेल टी-91 रामगढ़ विषधारी, 2018-19 में मेल टी-80 केलादेवी, 2019 में मेल टी-98 मुकंदरा, 2019 में मेल टी-116 केलादेवी, 2020 में मेल टी-115 रामगढ़ विषधारी पहुंचे।

कॉरिडोर भी खोलने होंगे

एनसीबीएस बेंगलुरू की प्रो. उमाकृष्णन ने बताया- हमारी 2017 से 2021 की स्टडी में सामने आया कि रणथंभौर से बाघ कूनो जा रहे हैं। फिर लौटते नहीं हैं।

अमेरिका में व्हेल पर हुए रिसर्च का उदाहरण भी दिया है, जिसमें इनब्रीडिंग से लाइफ घटी थी। हमने इनब्रीडिंग रोकने के दो उपाय बताए- दूसरे रिजर्व से बाघ लाएं, अन्य वनों तक बाघों के आवागमन के लिए कॉरिडोर पर काम हो।

1997 में जन्मी ‘मछली’ का ही प्रदेश में ज्यादातर कुनबा इसी का है। मछली ने 4 बार में 9 शावक जन्मे। इन्हीं की आगे की पीढ़ियां रणथंभौर, सरिस्का, मुकंदरा में हैं।

तीन साल में 10 के पोस्टमार्टम हुए, इनमें से आधे बाघ बीमार मिले

रिसर्च के अनुसार इनब्रीडिंग से बच्चों को पालने-पोषने की क्षमता व इम्यूनिटी घटी है। भास्कर पड़ताल में सामने आया कि हर साल औसतन 15 शावक जन्मते हैं, 2020 के बाद इनकी सर्वाइवल रेट 70 से घटकर 40 फीसदी रह गई है।

वहीं, हर साल 4-5 टाइगर गायब होने से मौत की वजह पता नहीं लगती। कारण बीमारी माना जाता है। तीन साल में 10 मृत मिले, पोस्टमार्टम में इनमें से 50 प्रतिशत में बीमारियां मिलीं।

प्रदेश के दूसरे रिजर्व में रणथंभौर के बाघ, इसलिए भी इनब्रीडिंग

सरिस्का में बाघों के सफाए के बाद रणथंभौर से बाघ छोड़े गए। करौली, धौलपुर, मुकंदरा, रामगढ़-विषधारी में भी यहीं के टाइगर हैं। ऐसे में जरूरी है कि दूसरे प्रदेश के बाघ यहां आएं।

5 बाघ कूनो गए लेकिन वहां से कोई नहीं आया

  • 2010 में 4 साल का मेल टी-38 कूनो, पालपुर रिजर्व (मप्र) भेजा गया। 10 साल बाद फिर से रणथंभौर में पहुंचने के साक्ष्य मिले।
  • 2013 में 3 साल की फीमेल टी-56 कूनो वन्यजीव डिवीजन होते हुए दतिया (मप्र) पहुंची। अब उसका कोई पता नहीं है।
  • 2015 में 5 साल का मेल टी-71 रणथंभौर से कूनो, पालपुर पहुंचा। लेकिन बाद में लापता हो गया।
  • मार्च 2023 में टी-136 गया, जो अभी वहीं घूम रहा है।
  • मई 2023 में टी-132 कूनो मुरैना पहुंच गया, जो फिर वापस लौट आया।

सरिस्का गई बाघिनों में तो बांझपन, शावक नहीं हो रहे

  • सरिस्का में बाघिन एसटी-5 व एसटी-3 ने मरने तक एक शावक नहीं जन्मा।
  • एसटी-7 व एसटी-8 अपनी औसत आयु आधी होने तक ऐसा नहीं कर सकी हैं।

बाघ लाएंगे, मंजूरी बाकी
स्टडी के मुताबिक कुछ शावक कमजोर होकर मर रहे हैं। हमारी चिंता यह भी है कि जो बचेंगे उनका क्या होगा? इनब्रीडिंग रोकने के लिए एनटीसीए को दूसरी जगह से बाघ लाने का प्रस्ताव भेजा है जो फिलहाल स्वीकृत नहीं हुआ है। - अरिंदम तोमर, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन