झुंझुनू ब्यूरो रिपोर्ट।  

ये कहानी एक मजदूर की जिद और जज्बे की है। जिसने विपरीत परिस्थितियों के सामने हार नहीं मानते हुए खुद के परिवार को सक्षम बनाने का काम किया। खुद के मजबूत इरादों से परिस्थितियों को हराने की कहानी जिले के चिड़ावा के अलीपुर के सुलतान सिंह भांबू की है। पढ़े लिखे नहीं होने के कारण सुलतान सिंह को परिवार चलाने के लिए ऊंट गाड़ी चलाकर परिवार का गुजारा करना पड़ा। गांव में ज्यादा काम नहीं होने के कारण से परिवार की स्थिति काफी खराब थी।

सुलतान सिंह बताते हैं कि उनके बेटे डॉ. जितेन्द्र भांबू का जन्म 1 मई को मजदूर दिवस के दिन ही हुआ। तब एक ग्रामीण ने ताना कसा कि मजदूर के घर मजदूर बेटा पैदा हुआ। तब सुलतानसिंह ने उसी दिन तय कर लिया था कि उनका बेटा मजदूरी नहीं करेगा। वे उनको पढ़ाएंगे। आय कम होने पर उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजा। किराया व पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए सुलतान सिंह ने रोज 50 किलोमीटर तक ऊंटगाड़ी से सामान ढोया।

रात को भी 11 बजे तक काम किया। पिता की लगन से बेटे का ऑल इंडिया मेडिकल परीक्षा में चयन हो गया। लेकिन परिवार के हालात को देखते हुए बेटे ने दो दिन तक पिता को नहीं बताया। एक पड़ोसी से बेटे के डॉक्टरी की परीक्षा पास करने का पता लगा। तब पिता ने उनको तमिलनाडु के सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढ़ने भेज दिया।

पर वहां फीस और अन्य खर्च जुटाने के लिए ऊंटगाड़ी पर सामान ढोने के साथ पत्नी इमरती देवी के साथ दूसरे ग्रामीणों के खेतों में बंटाई का कार्य किया। पिता की कड़ी मेहनत की बदौलत उनके बेटे डॉ. जितेन्द्र ने 2004 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर ली। एमडी की डिग्री हासिल की। आज वे जिले के बीडीके अस्पताल में वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं।