जोधपुर ब्यूरो रिपोर्ट।  

संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी केस। 2 लाख से ज्यादा लोगों से 1000 करोड़ की ठगी। इस हाईप्रोफाइल केस से केंद्रीय मंत्री और सांसद गजेंद्रसिंह शेखावत का नाम भी शक के दायरे में आ गया है। एसओजी ने उन्हें आरोपी बताया है। मामले की इंवेस्टिगेशन के दौरान मंत्री शेखावत का एक चौंकाने वाला वीडियो वायरल हुआ है। इसमें शेखावत संजीवनी सोसाइटी के ठग विक्रमसिंह से सालों पुरानी दोस्ती का हवाला देते हुए उसे मिस्टर परफेक्शनिस्ट बता रहे हैं।

दरअसल, विक्रम सिंह संजीवनी सोसाइटी के इन्वेस्टर्स के पैसों से संजीवनी किड्स प्री स्कूल चलाता था। इस स्कूल के एक एनुअल प्रोग्राम में सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत भी गेस्ट थे। कार्यक्रम में शेखावत ने स्टेज पर कहा कि वो विक्रम सिंह को स्कूल के समय से जानते हैं। जब वो दोनों भी स्टूडेंट थे। शेखावत ने कहा- हमारी सालों पुरानी दोस्ती है। हमारे पारिवारिक संबंध दो से तीन पीढ़ियों से हैं। विक्रम सिंह के लिए मैं हमेशा कहता हूं कि यह मिस्टर परफेक्शनिस्ट हैं। आज वो कई वेंचर चला रहे हैं।

विक्रम सिंह ने संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के नाम पर दो राज्यों के 2 लाख से ज्यादा निवेशकों के 1000 करोड़ से ज्यादा रुपए हड़प लिए। विक्रम सिंह ने निवेश कराने के लिए सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम पर सोसाइटी का प्रचार किया। अपने हर कार्यक्रम में शेखावत को बुलाता था।

विक्रम सिंह ने सोसाइटी से लोन लेकर शेखावत की तीन कंपनियों के करोड़ों के शेयर खरीदे। अपने परिवार और कंपनी के कर्मचारियों के नाम पर 1100 करोड़ के फर्जी लोन लिए। निवेशकों को पैसा नहीं मिला तो वर्ष 2019 में मामला दर्ज हुआ। एसओजी मामले की जांच करते हुए चार बार चार्जशीट पेश की। एसओजी को दो चार्जशीट तक सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत की मामले में कोई भूमिका नजर नहीं आई।

शेखावत से कम शेयर खरीदने वाले सीए को भी गिरफ्तार कर लिया, लेकिन जब गजेंद्र सिंह शेखावत ने मुख्यमंत्री के खिलाफ दिल्ली में मानहानि का केस दर्ज करवाया तो एसओजी ने फिर से लोगों की एफआईआर दर्ज करनी शुरू की। पांच साल बाद कोर्ट में 13 अप्रैल को फैक्चुअल रिपोर्ट पेश करते हुए एसओजी ने शेखावत, उनकी माता-पिता, पत्नी व साले सहित 68 लोगों को केस में आरोपी बनाया है। 

बस कंडक्टर के बेटे ने शुरू की ठगी की कोऑपरेटिव सोसाइटी

बाड़मेर के इंद्रोई रामसर में रहने वाले बस कंडक्टर छुग सिंह का बेटा विक्रम सिंह शुरू से ही बिजनेसमैन बनना चाहता था। 2007 में बाड़मेर जिले में तेल-गैस, लिग्नाइट और जमीनों का बिजनेस बूम पर था। लोगों के पास जमीनें बेचने से मिले करोड़ों रुपए थे। लोग अपना पैसा इंवेस्ट करना चाहते थे।

इसी का फायदा उठाकर रातों रात अमीर बनने के लिए विक्रम ने साल 2008 में संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी को राजस्थान सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड कराया। इसके बाद सोसाइटी वर्ष 2010 में मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में बदल गई। इसका लाइसेंस केंद्र से मिला था। लोगों को जोड़ने के लिए लुभावने वादे किए गए। कुछ ही समय में पैसा 3 से 4 गुना करने का झांसा दिया गया। एजेंटों को ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए कमीशन, फॉरेन टूर, गोल्ड व सिल्वर कॉइन जैसे गिफ्ट का लालच दिया गया।

गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम से सोसाइटी की मार्केटिंग की

विक्रम सिंह ने सोसाइटी से पैसा आते ही आलीशान जिंदगी जीने लगा। उसने बाड़मेर और जोधपुर में अपने ऑफिस खोले। इसी दौरान उसकी दोस्ती गजेंद्र सिंह शेखावत से हुई। गजेंद्र सिंह शेखावत उस समय सांसद नहीं थे, लेकिन पॉलिटिक्स से जुड़े होने के कारण लोगों में लोकप्रिय थे।

विक्रम सिंह ने इसका फायदा उठाया और गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम से ही अपनी सोसाइटी की मार्केटिंग की। विक्रम सिंह सोसाइटी के प्रोग्राम में गजेंद्र सिंह शेखावत को बुलाता था। लोगों को झांसा दिया जाता था कि शेखावत भी उनके साथ हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत का सोसाइटी की कंपनियों में शेयर होल्ड और फोटो दिखाकर लोगों को निवेश के लिए मनाया गया। लोगों को भरोसा दिलाया गया कि गजेंद्र सिंह शेखावत के परिवार, दोस्तों ने भी कंपनियों के शेयर खरीद रखे हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत भी सोसाइटी के कई प्रोग्राम में शामिल हुए थे। विक्रम सिंह ने जोधपुर में एक अखबार का प्रकाशन शुरू किया। इसके कई कार्यक्रम में गजेंद्र सिंह शेखावत आते थे और एक कार्यक्रम में रक्तदान भी किया।

दो राज्यों में 2 लाख लोगों ने 953 करोड़ इंवेस्ट किए

सोसाइटी की शुरुआत बाड़मेर की सरदारपुरा ब्रांच से हुई थी। महज कुछ ही सालों में सोसाइटी ने राजस्थान में 211 और गुजरात में 26 ब्रांच शुरू कर 2,14,472 निवेशकों के 953 करोड़ रुपए इंवेस्ट कर दिए। इनमें 33 वर्चुअल ब्रांच भी थी। यह ब्रांच सिर्फ कागजों में थी। हकीकत यह ब्रांच कभी खोली ही नहीं थी। इन्हीं ब्रांचों से फर्जी लोन भी बांटे गए थे। इन फर्जी ब्रांच से 27 से 32 प्रतिशत ब्याज की दर से पर्सनल लोन, ईयरली लोन और मॉटराज लोन दिए गए।

1100 करोड़ के बोगस लोन

एसओजी ने एससीसीएल के अकाउंट चेक किए तो उनमें 1100 करोड़ रुपए के लोन मिले। इनमें 30 करोड़ के लोन बैक डेट में स्वीकृत किए। विक्रम सिंह राठौड़ और किशन सिंह चूली ने 31 मार्च से 2 अप्रेल 2013 तक 19 लोन स्वीकृत किए थे। इनकी एंट्री बोर्ड कार्यवाही रजिस्ट्रर में भी है। एसओजी ने लोन लेने वाले लोगों की जांच की। इनमें 60 हजार से ज्यादा ऐसे लोन फर्जी थे। लोन प्रति व्यक्ति 2 लाख रुपए के हिसाब से दिए गए। लोन लेने वाले लोगों के बैंक अकाउंट भी उनके फर्जी साइन करवाकर बनाए गए। लोन लेने वाले लोगों को पता ही नहीं चला, उनके फर्जी साइन करके पहले बैंक में अकाउंट खोले गए फिर उनके नाम सें सोसाइटी में लोन के लिए आवेदन किया गया। लोन पास होते ही लोन की राशि फर्जी अकाउंट में ट्रांसफर कर दी जाती। यह पूरा गबन विक्रम सिंह ने अपने रियल स्टेट के बिजनेस में इंवेस्टमेंट के लिए किया था।

फर्जी साइन से अकाउंट बनाए फिर लोन लिए

बाड़मेर के बालोतरा में रहने वाले धनसिंह (45) फैन्सी जनरल स्टोर चलाते हैं। धनसिंह ने एसओजी को बताया कि बाड़मेर के सरदारपुरा स्थित संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी में उसने कभी कोई लोन नहीं लिया। विक्रम सिंह ने उसके नाम से फर्जी साइन करके पहले सेविंग अकाउंट संख्या SS-544 खोला। इसके बाद अकाउंट संख्या YL-539 खोलकर 1 करोड़ 95 लाख रुपए का लोन ले लिया। लोन का पूरा एमाउंट फर्जी सेविंग एकाउंट में ट्रांसफर करके विक्रम सिंह ने उठा लिया था। एसओजी ने जांच की तो उसे इस फर्जीवाड़े के बारे में पता लगा।

32 प्रतिशत ब्याज दर से सोसाइटी को प्रोफिट में बताते थे

संजीवनी क्रेडिट कॉ-ऑपरेटिव सोसाइटी में नए लोगों को हाई रिटर्न का झांसा देकर अलग-अलग स्कीम से जोड़ा जाता था। सोसाइटी को प्रोफिट में दिखाने के लिए सोसाइटी के दिए गए लोन पर 32 प्रतिशत ब्याज वसूलने की एंट्री की जाती थी। इसके लिए सॉफ्टवेयर से एंट्री बदल दी जाती थी। इसी तरीके से 33 वर्चुअल ब्रांच से 60 हजार फर्जी लोन दिए गए। यह लोन लेने के लिए 30 लाख फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए। इनसे 1100 करोड़ रुपए के लोन लिए गए।

शेखावत ने 78 लाख में खरीदे शेयर 3.31 करोड़ में विक्रम को बेचे

नवप्रभा बिल्डटेक प्राइवेट लिमिटेड में 3 नवंबर 2005 से 10 मार्च 2014 तक डायरेक्टर पद पर रहे। इस दौरान पत्नी नौनंद कंवर, पिता शंकरसिंह शेखावत, मां माेहन कंवर, साले अशोक राठौड़ के साथ 2007-8 तक 66300 शेयर 78 लाख 30 हजार रुपए में खरीदे, इन्हें 3.31 करोड़ में विक्रम सिंह और उसके परिवार वालों को बेचा।

शेखावत की कंपनी के शेयर खरीदने के लिए विक्रम ने लोन लिया

गजेंद्र सिंह शेखावत ने खुद और परिवार के नाम से नवप्रभा कंपनी के शेयर खरीदकर कंपनी के डायरेक्टर बन गए। संजीवनी केडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के निदेशक विक्रम सिंह ने शेखावत की कंपनी के शेयर खरीदने के लिए सोसाइटी से ही लोन लिया। यह सोसायटी के निवेशकों को पैसा था। इस पैसे से विक्रम सिंह ने खुद और परिवार के लोगों के नाम पर 10 गुणा दाम पर शेखावत की कंपनी के शेयर खरीदे थे। नवप्रभा कंपनी के शेयर का वास्तविक मूल्यांकन 31 मार्च 2012 को 50 रुपए प्रति शेयर था। लेकिन शेयर 10 गुणा दाम में 500 रुपए में खरीदे गए। एसओजी के अनुसार यह कंपनियों शेल कंपनियों थी। जिनका कोई प्रॉफिट नहीं था। यह कंपनियां सिर्फ कागजों में थी।

विक्रम ने इस तरह 10 गुना दामों में खरीदे शेयर

विक्रम सिंह ने अपने, अपनी पत्नी विनोद कंवर, जसवंत सिंह पुत्र कमल सिंह, वासुदेव, किशन सिंह, सास उषा कंवर के साथ 50 रुपए के 66300 शेयर 500 रुपए प्रति शेयर की दर से 3.31 करोड़ में खरीदे।

शेखावत को गारंटर बनाकर 20 करोड़ का लोन लिया

नवप्रभा द्वारा वर्ष 2015 में बिल्डिंग के निर्माण के लिए आरएफसी से 20 करोड़ रुपयों का लोन लिया गया। इस लोन के गारंटर विक्रम सिंह, विनोद कंवर, उषा कंवर और गजेंद्र सिंह शेखावत भी थे जबकि उस समय शेखावत ना तो कम्पनी के निदेशक थे और ना ही शेयर धारक। इस लोन के लिए शपथ पत्र में गारंटी के तौर पर उम्मेद हेरिटेज में स्थित 581 वर्ग गज का भूखण्ड संख्या 54 का हवाला दिया गया। इसे प्लॉट पर गजेंद्र सिंह शेखावत और विक्रम सिंह दोनों का संयुक्त मालिकाना हक था।

दूसरी कंपनी ल्यूसिड के शेयर भी विक्रम को बेचे

गजेंद्र सिंह शेखावत ल्यूसिड फार्मा में 8 नवंबर 2011 से 10 मार्च 2014 तक डायरेक्टर पद पर रहे। शेखावत ने वर्ष 2011-12 में ल्यूसिड फार्मा के कुल 7,40,000 शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से खरीदे। इनकी कीमत 96 लाख 20 हजार रुपए थी। शेखावत ने चार साल तक यह शेयर अपने पास रखने के बाद 18 फरवरी 2016 को ल्यूसिड फार्मा के 4 लाख 70 हजार शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से 61 लाख 10 हजार रुपए के शेयर विक्रम को और 2 लाख 70 हजार शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से 35 लाख 10 हजार रुपए के शेयर विक्रम की पत्नी विनोद कंवर को ट्रांसफर कर दिए। इसके अलावा शेखावत ने अपने परिजनों और रिश्तेदारों के नाम से 13,55,720 शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से खरीदे थे। इनकी कीमत 1 करोड़ 62 लाख 4 हजार 360 रुपए थी। इनमें से 3,06,940 शेयर वर्ष 2015-16 में विनोद कंवर को 13 रुपए प्रति शेयर की रेट से बेच दिए। जिनकी कीमत 39 लाख 90 हजार 220 रुपए थी।

ल्यूसिड फार्मा के 50 प्रतिशत शेखावत के पास

वर्तमान में गजेंद्र सिंह शेखावत की पत्नी नौनंद कंवर के नाम 2,99,340, मां मोहन कंवर के नाम 300000, साले अशोक राठौड़ के नाम 1,48390, गजेंद्र सिंह शेखावत HUF के नाम 1,00,000, पिता शंकर सिंह शेखावत के नाम 2,00,000 तथा पारिवारिक मित्र केवल चंद डाकलिया के नाम 1,050 शेयर हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत और उनके परिवार के पास ल्यूसिड फार्मा के कुल शेयर का 50.04 प्रतिशत है। इधर विनोद कंवर के नाम 5,76,940 शेयर और विक्रम सिंह के नाम 4,70,000 शेयर है जो कि ल्यूसिड फार्मा के कुल शेयर का 49.96 प्रतिशत है।

इथोपिया फार्म हाउस में आठ करोड़ रुपए इंवेस्ट किए

ल्यूसिड फार्मा ने वर्ष 2012 में इथोपिया में स्थित मैसर्स गैलब एग्रो इंडस्ट्री पीएलसी को खरीदा था। नव प्रभा की सहायक कंपनी गैलब एग्रो इंडस्ट्री प्रा लि अफ्रीकी देश इथोपिया में रजिस्टर्ड है। इस कंपनी के नाम इथोपिया में 2500 हेक्टेयर भूमि है। इसमें 500 हेक्टेयर में कृषि फार्म हाउस बनाकर विक्रम सिंह राठौड़ केले की खेती करता है। इस फार्म हाउस पर करीब सात से आठ करोड़ रुपए का निवेश किया गया।

महज पांच लाख के शेयर खरीदने वाले एसओजी ने गिरफ्तार किया

सरदारपुरा में रहने वाले केवलचंद डाकलिया(68) पुत्र नेमीचंद डाकलिया सीए हैं। वो भी सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत के करीबी हैं। केवलचंद डाकलिया ने अपनी पत्नी इंदु डाकलिया के साथ संयुक्त नाम से वर्ष 2007-6 में नवप्रभा बिल्डटेक प्राइवेट लिमिटेड के कुल 5550 शेयर 100 रुपए की दर से 5 लाख 55 हजार रुपए के शेयर खरीदे थे। दोनों ने 30 दिसंबर 2012 को 2500 शेयर संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के कर्मचारी दलपत सिंह को 12 लाख 50 हजार रुपए में बेच दिए।

इसके अलावा दोनों ने 3050 शेयर मुख्य आरोपी विक्रम सिंह के ससुर डूंगर सिंह को 15 लाख 25 हजार रुपए में बेच दिए। एसओजी ने मामले की जांच के दौरान नवप्रभा के महज पांच शेयर खरीदने वाले सीए नेमीचंद डाकलिया को गिरफ्तार किया था, लेकिन नेमीचंद से पांच गुणा ज्यादा शेयर होल्डर सासंद गजेंद्र सिंह शेखावत को तीसरी चार्जशीट के बाद आरोपी माना।

अब तक की जांच ऐसे हुई

संजीवनी क्रेडिट को-ओपरेटिव सोसाइटी गबन के बाद पहली बार 23 अगस्त 2019 को पहली एफआईआर दर्ज हुई थी। एसओजी ने 11 दिसबंर 2019 को पहली चार्जशीट पेश की। इसमें एसओजी ने पांच लोगों को आरोपी मानकर गिरफ्तार किया था।

1. विक्रम सिंह(39) पुत्र छुग सिंह, बाड़मेर के तहसील रामसर में गांव इंद्रोई

2. एससीसीएल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी - किशन सिंह चूली पुत्र जैतमाल सिंह, बाड़मेर के लिलरिया धोरा में शिव मंदिर मार्ग, वार्ड नंबर 1

3. एससीसीएल के अध्यक्ष व सदस्य लोन कमेटी - नरेश सोनी पुत्र हेमराज सोनी, बाड़मेर में बैरियों का बास, राय कॉलोनी

4. शैतानसिंह पुत्र उत्तमसिंह, जोधपुर के देचू में गांव सगरा

5. देवी सिंह पुत्र केसर सिंह, जैसलमेर के लाठी, गांव भादरिया

पहली चार्जशीट पेश करने के कुछ दिन बाद ही एसओजी ने एक सप्लीमेंट चार्जशीट भी पेश की थी। इसके बाद एसओजी ने 7 फरवरी 2023 को दूसरी चार्जशीट पेश की थी। इसमें 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। 31 मार्च 2023 को एसओजी ने तीसरी चार्जशीट पेश की थी। इसके बाद एसओजी ने 13 अप्रैल को कोर्ट में तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश की। इसमें एसओजी ने सासंद गजेंद्र सिंह शेखावत, उनकी मां मोहन कंवर, पिता शंकर सिंह शेखावत, पत्नी नौनंद कंवर और साले अशोक राठौड़ समैत 68 लोगों को आरोपी बनाया है।