बदलते जीवन व्यवहार के साथ मानव जीवन में कई आमूलचूल परिवर्तन आ रहे हैं। दुनिया के कई भागों में भूखमरी की कमी के कारण और चिकित्सा विज्ञान के विकास से लोग लंबी उम्र तक जिंदा रह पा रहे हैं। इस पक्ष के दूसरी तरफ सामाजिक जीवन के बिखराव के फलस्वरूप जीवन में विविधता की कमी आ गई, जीवनशैली में निष्क्रियता अधिक हो गई है। ऐसे में मस्तिष्क की निष्क्रियता बढ़ गई है। लोग सिर्फ धन और धर्म के पीछे भागने लगे हैं और प्रकृति से दूर हो गए हैं जिसकी वजह से मस्तिष्क के कई रोग होने लगे हैं जिसमें याददाश्त की कमी और मांसपेशियों का कंपन आदि अक्सर देखे जाते हैं।

इन बीमारियों को अल्जाइमर्स और डिमेंशिया ( मनोभ्रंश ) कहा जाता है। एक बार प्रकट होने के बाद इन व्याधियों का कोई इलाज नहीं है इसलिए इनकी रोकथाम ही एकमात्र विकल्प है। यदि रोकथाम नहीं हो सकी तो जीवन के कितने ही साल रोगी और परिवार के लिए बड़े कष्टदायक होते हैं। मनोभ्रंश, अल्जाइमर्स, पार्किनसन की रोकथाम के प्रयास बिना लक्षणों के ही 35 वर्ष की उम्र से ही प्रारंभ हो जाने चाहिएं।

देखा गया है कि ये सब व्याधियां मस्तिष्क में इंफ्लेमेशन यानि प्रज्वलनशील वातावरण से जन्म लेती हैं। इंटर लुकिएन 1 बीटा नामक प्रोटीन मस्तिष्क में प्रज्वलन को जन्म देते हैं। इस क्रिया से कई तरह की कोशिकाएं अपने कार्य को करने में असहाय हो कर निष्क्रिय हो जाती है जिसके फलस्वरूप रोग सारे उपचारों के बावजूद बढ़ता जाता है। दर्द की दवाएं इस प्रोटीन के स्तर को कम कर मस्तिष्क के प्रज्वलन को कम करती हैं जिसके कारण हमें दर्द से राहत मिलती है परंतु इन सब दवाओं के दीर्घकालीन उपयोग से कितने ही अनवांछित प्रभाव होते हैं।

इंटर लुकिएन 1 बीटा प्रोटीन के रक्त स्तर को हाल ही में पुदीना सत्त यानि मेंथॉल को सूंघने से कम होता पाया गया है। किसी बर्तन में मेंथॉल उबलते पानी में डाल कर रोजाना एक बार भाप लेने से ऑल्फेक्ट्री नर्व ( घ्राणेंद्रीय नस) के द्वारा पुदीने की खुशबू जब मस्तिष्क के प्रीफ्रोंटल लोब में पहुंचती है तो मस्तिष्क के लिंबिक तंत्र की कोशिकाएं आनंदित हो कर अपने आसपास के 1 बीटा प्रोटीन को कम कर देती हैं। ऐसा यदि अक्सर किया जाता रहे तो याददस्त कमजोर नहीं पड़ती, जीवन में उत्साह बना रहता है और मनोभ्रंश संबंधित रोगों से बचाव हो सकता है।

ठीक इस तरह श्रवण तंत्र द्वारा तरंगों वाला संगीत सुनने से मस्तिष्क में प्रज्वलन में तेज गिरावट आती है। ध्यान रहे डी जे, विवाह समारोह का संगीत, म्यूजिकल नाइट्स, पब्स एवम् क्लब में बजने वाला शोरगुल संगीत नहीं होता है। पियानो, बांसुरी, शास्त्रीय संगीत, बैंजो, गिटार आदि से तन्मय भाव से उपजी ध्वनि ही संगीत होता है बाकी अन्य सब हल्लागुल्ला है।

ठीक इसी तरह शांत वातावरण में आंख बंद कर किसी गीत को आत्मसात करने से भी आई एल 1 बीटा प्रोटीन नियंत्रित में रहते है। संक्षेप में सोचा जाए तो जीवन ऐसा विकसित कीजिए जहां फूलों की खुशबू हो, मधुर गीत संगीत हो। प्रकृति को विकसित करो और उसी के साथ जियो। शुकून और जीवन तत्व वहीं मिलेगा बाकी हर अन्य जगह आप व्यक्ति नहीं वस्तु बनते जायेंगे।