जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट। 
न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आज राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर द्वारा 4 अभियुक्तों को बरी करने के खिलाफ पीड़ितों और राजस्थान राज्य द्वारा दायर अपीलों में याचिकाओं को स्वीकार किया और उच्च न्यायालय के स्टे के पहलू पर पक्षों को सुना।
उच्च न्यायालय के आदेश पर पूर्ण रोक लगाने से इंकार करते हुए पीठ ने अभियुक्तों पर कुछ कड़ी शर्तें लगाईं 
1. जमानत बांड की शर्तों का कड़ाई से अनुपालन, यदि वे किसी अन्य मामले में अंडरट्रायल/दोषी नहीं हैं।
2.  जांच अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच का निर्देश को किया स्टे।
3. राजस्थान सरकार यह सुनिश्चित करे कि आरोपी सैफ और सैफुर्रहमान को नोटिस दिया जाए ।
4. सभी अभियुक्तों को राज्य के समक्ष अपना पासपोर्ट जमा करना आवश्यक है।
न्यायालय ने यह भी देखा कि राजस्थान उच्च न्यायालय के उक्त आदेश का उपयोग अभियुक्त व्यक्ति द्वारा अन्य मामलों में जमानत प्राप्त करने के लिए नहीं किया जा सकता है और उक्त से संबंधित अन्य मामलों को स्वतंत्र रूप से किया जाएगा।
अंत में पक्षों को सुनने के बाद, बेंच ने मामले को 9 अगस्त 2023 को पहले मामले के रूप में सुनवाई के लिए निर्देशित नहीं किया है। आगे निर्देश दिया है कि यदि उस दिन मामले की सुनवाई नहीं होती है तो राजस्थान सरकार आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 390 की बिंदु पर बहस करने के लिए स्वतंत्र होगा। 
खंडपीठ ने इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का भी निर्देश दिया और अब इसे 3 न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ द्वारा सुना जाएगा, क्योंकि यह मृत्यु संदर्भ के खिलाफ अपील है।
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के पूरे रिकॉर्ड को भी मांगा है और राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि यह कोर्ट को 8 सप्ताह के भीतर प्राप्त हो।
भारत के महान्यायवादी, आर वेंकटरमणि और वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी ने राजस्थान सरकार की ओर से प्रतिनिधित्व किया।
पीड़िता राजेश्वरी देवी और अभिनव तिवारी का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह, शिवमंगल शर्मा, हेमंत नाहटा और आदित्य जैन ने किया।
अभियुक्त सरवर आजमी का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा और सिद्धार्थ अग्रवाल ने किया।
आरोपी मो. सलमान का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने किया था। आरोपी सैफ और सैफुर्रहमान की पेशी होनी बाकी है।