अलवर ब्यूरो रिपोर्ट। 

अलवर के रामगढ़ में बहुचर्चित रकबर मॉब लिंचिंग केस में कोर्ट ने 5 में से 4 आरोपियों को दोषी करार दिया है। एडीजे कोर्ट नंबर-1 ने चारों दोषियों को 7-7 साल की सजा सुनाई है। इसके साथ ही 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। पांचवें आरोपी को संदेह का लाभ देकर सभी धाराओं से बरी कर दिया गया है। कोर्ट का फैसला आने से पहले गुरुवार सुबह से बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। एहतियातन कई थानों की पुलिस तैनात की गई थी।

पीड़ित पक्ष के एडवोकेट अशोक शर्मा ने बताया कि करीब 5 पांच साल पहले गो तस्करी के शक में रामगढ़ के ललावंडी में हरियाणा के कोल गांव निवासी 40 साल के रकबर उर्फ अकबर के साथ कई लोगों ने मारपीट की थी। अकबर को अंदरूनी चोटें आई थीं। उसे गंभीर घायल हालत में अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन कुछ घंटों बाद रकबर ने दम तोड़ दिया था।

इस मामले में कोर्ट ने आरोपी परमजीत, धर्मेंद्र, नरेश व विजय कुमार को धारा 341 व 304 पार्ट एक के तहत दोषी पाया है। एक अन्य आरोपी नवल किशोर के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने से बरी कर दिया गया। कोर्ट का फैसला आते ही चारों आरोपियों को पुलिस कस्टडी में ले लिया। उधर, कोर्ट के आदेश के बाद कुछ लोगों ने गहलोत सरकार और रामगढ़ विधायक सफिया खान के खिलाफ नारेबाजी की।


पीड़ित पक्ष के वकील का दावा- ये मॉब लिंचिंग

एडवोकेट अशोक कुमार ने कहा कि मॉब लिंचिंग का काेई सेक्शन नहीं है। यह एक्ट अभी अस्तित्व में नहीं आया है। यह लागू नहीं हुआ है। लेकिन है तो मॉब लिंचिंग ही। आरोपियों को जिन धाराओं में दोषी माना गया है, वे धारा 302 के ही पार्ट हैं। जहां हत्या करने वाले को नॉलेज तो होता है, लेकिन इरादा हत्या का नहीं होता। दोषियों ने जो मारपीट रकबर से की वह हत्या में न आकर 304 प्रथम में आती है। लिंचिंग का मतलब है कि अन्याय पूर्ण दंड देना। इसमें खुद कानून हाथ में लेकर मारपीट मानी जाती है, इसमें पीड़ित की बाद में मौत हो जाती है। कोर्ट ने इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

बचाव पक्ष बोला- ये मॉब लिंचिंग नहीं
आरोपी पक्ष के वकील हेमराज गुप्ता का कहना है कि मॉब लिंचिंग मानते तो आरोपियों को 147 में भी दोषी माना जाता। लेकिन कोर्ट ने धारा 147 में सबको बरी कर दिया है। धारा 304 में दोषी माना है। कोर्ट के आदेश में लिखा है कि उस समय के रामगढ़ थाने के मानसिंह एएसआई का गंभीरता से आकलन नहीं किया। घायल को तुरंत अस्पताल ले जाकर इलाज नहीं कराया गया। कुशल व अनुभवी अधिकारी की तरह काम नहीं किया। इसलिए एएसआई ने अपने कतृत्व का निर्वहन नहीं किया। गैर जिम्मेदाराना कृत्य किया गया।

जंगल में घेरकर मारपीट
रामगढ़ के ललावंडी गांव के पास 20- 21 जुलाई 2018 की रात काे जंगल से पैदल गाय ले जा रहे हरियाणा के कोलगांव निवासी रकबर उर्फ अकबर एवं उसके साथी असलम काे लोगों ने घेरकर मारपीट की थी। इस दाैरान असलम लाेगाें से छूटकर भाग गया था, लेकिन रकबर घायल हाे गया था। घायल काे पुलिस के हवाले कर दिया था। रामगढ़ सीएचसी पर ले जाने के दाैरान रकबर की माैत हाे गई थी। पुलिस ने इस मामले में धर्मेंद्र, परमजीत सिंह, नरेश, विजय व नवल काे आरोपी मानते हुए गिरफ्तार किया था। ये सभी आरोपी हाईकोर्ट के आदेश से जमानत पर थे।

बहस पहले ही हो चुकी थी पूरी

मॉब लिंचिंग केस में पहले ही अदालत में दोनों पक्षों की बहस पूरी हाे गई थी। केस में फैसले की तारीख पहले 15 मई तय की गई थी। बाद में 25 मई तय हुई। इस मामले में सरकार की ओर से 67 गवाहों के बयान तथा 129 पेज के दस्तावेज साक्ष्य पेश किए गए। इस बहुचर्चित मॉब लिंचिंग केस में पैरवी के लिए राजस्थान सरकार ने जयपुर हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट नासिर अली नकवी काे 2021 में विशिष्ट लोक अभियोजक नियुक्त किया था। केस की सुनवाई अलवर एडीजे नंबर 1 में पूरी हुई है।

पहले आरोपी गिरफ्तार हुए थे

एडवोकेट नकवी ने बताया कि 20-21 जुलाई 2018 काे रकबर की मारपीट की हत्या कर दी गई थी। इस केस में पुलिस ने परमजीत, धर्मेंद्र व नरेश काे गिरफ्तार किया था। बाद में विजय व नवल काे गिरफ्तार किया गया था। इस तरह मॉब लिंचिंग में कुल 5 आरोपियों के खिलाफ चालान पेश किया था। केस में 67 गवाहों के बयान कराए गए हैं। इनमें कांस्टेबल नरेंद्र सिंह, तत्कालीन रामगढ़ थाना प्रभारी एवं एएसआई मोहन सिंह, रकबर का साथी असलम सहित पांच लाेग चश्मदीद गवाह हैं। 129 पेज के दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए हैं। इनमें आरोपियों के मोबाइल की कॉल डिटेल व लोकेशन भी है। पुलिस ने मारपीट में काम में लिए डंडे भी बरामद किए थे। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में रकबर के शरीर पर 13 चोटों के निशान थे। डॉक्टरों ने उसकी माैत भी चोट के कारण मानी थी। पुलिस हिरासत में मारपीट के काेई साक्ष्य नहीं मिले हैं।

केस को ट्रांसफर की भी लगाई थी याचिका
रकबर मॉब लिंचिंग के मामले में परिजनों ने जिला जज अदालत में केस ट्रांसफर की याचिका भी लगाई थी। हालांकि याचिका खारिज हाे गई थी और केस एडीजे-1 की अदालत में चला। प्रशासन ने यह मामला राज्य सरकार के गृह व विधि विभाग को भेजा था। बाद में राज्य सरकार ने इसमें हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट नासिर अली नकवी काे पैरवी के लिए नियुक्त किया था।