मनुष्य की जीभ और मस्तिष्क दोनों ही मीठे स्वाद के प्रति जन्मजात आकर्षण रखते हैं। इसका एक कारण तो यह होता है कि मस्तिष्क का मुख्य ऊर्जा स्त्रोत ग्लूकोज होता है। दूसरे, मीठे पदार्थ मस्तिष्क से उन्ही रसायनों का स्त्राव करते हैं जो भांग या हशीश सेवन से स्त्रावित होते हैं फर्क बस मात्रा का होता है। चूंकि दुनिया में मधुमेह और मोटापा दो बड़ी व्याधियां हर तरफ फैल गई हैं तो मीठे स्वाद के लिए चीनी की जगह कुछ कृत्रिम पदार्थ बाजार में आ गए हैं जो दावों के अनुसार सुरक्षित हैं और शून्य कैलोरी भी हैं। शून्य कैलोरी की बात तो सही हैं परंतु सुरक्षा के बारे में विस्तृत अध्ययन अभी जारी है।

जो कृत्रिम, शून्य कैलोरी और पोषणहीन पदार्थ हैं उनमें अस्पारटेम, सकरीन, स्टीविया और सुक्रालोस शामिल हैं। शरीर पर इनके प्रभावों को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि जब हम भोजन ग्रहण करते हैं तो उसके पश्चात हमारे शरीर में कौन से मुख्य क्रिया होती है। सबसे पहले तो रक्त में ग्लूकोज के स्तर तेजी से बढ़ते हैं। ग्लूकोज के इस रक्त स्तर बढ़ने को ग्लाइसेमिक रिस्पॉन्स या शर्करा प्रतिक्रिया कहा जाता है। कृत्रिम मीठे पदार्थों में या तो ग्लूकोज होता ही नहीं या फिर नगण्य मात्रा में होता है इसलिए माना जाता है कि वे शून्य ग्लाइसेमिक प्रतिक्रिया करेंगे और प्रभावहीन रह कर मीठे स्वाद का अनुभव करवाएंगे। निर्माताओं ने इन्हे मनुष्य उपयोग के लिए पूर्ण सुरक्षित कह कर बाजार में अकसर उतारा है जिन्हे लोगों ने हाथों हाथ स्वीकार भी किया है।

परंतु क्या ये पदार्थ वास्तव में सुरक्षित हैं? डॉक्टर एलिनोव नामक शोधकर्ता ने इस पदार्थों का व्यापक एवम् गहन अध्ययन किया है। उनके अध्ययन के परिणाम बड़े उपयोगी हो सकते हैं क्योंकि भोजन श्रृंखला में शून्य कैलोरी मिष्ट पदार्थ एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुके हैं। इनका उपयोग मधुमेह के रोगी, बच्चों और महिलाओं में काफी प्रचलित है। गर्भवती महिलाएं भी शरीर के वजन को नियंत्रित करने के लिए इनका उपयोग करती देखी जाती हैं।  डॉ. एलिनॉव ने इन सब पदार्थों के दीर्घकालीन प्रभावों एवम् कुप्रभावों का व्यापक अध्ययन किया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सकरीन और सुक्रालोज एक प्रभावकारी ग्लाइसेमिक रिस्पॉन्स यानि शर्करा जैसा प्रभाव पैदा करने में सक्षम हैं पर स्टीविया एवम् अस्पारटेम से सेवन से कोई भी ग्लूकोज संबंधित क्रिया नहीं होती है। लेकिन इन चारों ही पदार्थों ने बड़ी आंतों में स्थित बैक्टीरिया के संसार जिसे माइक्रोबायोम कहा जाता है, को प्रभावित किया है। इसलिए यह मानना उचित होगा कि ये चारों पदार्थ निष्क्रिय तो नहीं हैं जैसा दावा निर्माताओं द्वारा किया जा रहा है।

अध्ययन से पता चला है कि मनुष्यों में कृत्रिम मीठे पदार्थों का उनके माइक्रोबायम पर व्यक्तिगत स्तर पर प्रभाव पड़ता है। कुछ लोगों में यह पदार्थ आंतों के इन जीवाणुओं को क्षति पहुंचाता है जिससे उसके पाचनतंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर आता है। अभी दो नए मिठास वाले पदार्थ आए है जिनमें से एक है मॉन्क फ्रूट यानि साधुफल और दूसरा है अल्लूलोज। इन दोनों के दीर्घकालीन प्रभावों का अध्ययन होने चाहिए। लोग नए के चक्कर में तुरंत बिना सोचे समझे विज्ञापनों से प्रभावित हो कर वस्तुओं का उपयोग करने लगते हैं। वे भूल जाते हैं कि विज्ञापन उनके ज्ञानवर्धन के नहीं है बल्कि कंपनी का मुनाफा बढ़ाने के लिए होता है।

याद रखिए, कोई भी शुगर फ्री उत्पाद आपकी मीठे स्वाद की लालसा की पूर्ति नहीं कर सकता है बल्कि वह तो उस लालसा को बढ़ाता है ताकि उत्पाद लगातार बिक सके।  एकमात्र विकल्प आपकी इच्छाशक्ति और सक्रिय जीवनशैली ही हो सकता है।