चितौड़गढ़-गोपाल चतुर्वेदी।
पूरे देश के साथ चित्तौड़गढ़ में भी 2 अक्टूबर को मनाई जाने वाली राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती को लेकर प्रशासन सजग नहीं दिखाई दे रहा है। चित्तौड़गढ़ में देश के लाडले लाल बहादुर शास्त्री की एक भी प्रतिमा स्थापित नहीं होने से भी उनकी जयंती पर उन्हें याद नहीं किया जा रहा।चित्तौड़गढ़ में रविवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जन्म जयंती मनाई जाएगी।
जिसके लिए प्रशासन की ओर से अभी तक किसी प्रकार की तैयारियां शुरू नहीं की गई है। अगर चित्तौड़गढ़ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बात की जाए तो जिला मुख्यालय पर नगर परिषद की ओर से कई स्थानों पर महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की हुई है। जिसमें जिला कलेक्ट्री चौराहे पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दांडी यात्रा की झांकी और महात्मा गांधी उद्यान भी यहां पर स्थापित किया हुआ है। जिसमें जहां गांधी उद्यान की बात की जाए तो तस्वीरें साफ बयां करती है कि वर्ष में एक बार इस उद्यान की सुध ली जाती है वह भी अभी तक नहीं ली गई है। इस उद्यान में जहां कचरे के ढेर दिखाई दे रहे हैं। प्रतिमा पर भी मिट्टी की परतें चढ़ी हुई है। इस प्रतिमा से आंखें भी गायब है। कलेक्ट्री चौराहे पर ही नगर परिषद की ओर से स्थापित की गई गांधी की दांडी यात्रा से महात्मा गांधी की तीन प्रिय चीजों में से एक चश्मा भी गायब है और बिना चश्मे के ही वह दांडी यात्रा निकालते दिखाई दे रहे हैं। वही देश के पूर्व प्रधानमंत्री जिन्होंने जय जवान जय किसान का नारा भी दिया ऐसे लाल बहादुर शास्त्री चित्तौड़गढ़ नगर परिषद क्षेत्र में एक भी मूर्ति की स्थापना नहीं होना कहीं ना कहीं एक बड़ी गलती को दर्शाता है जो कि देश के प्रधानमंत्री होने के साथ किसानों के लिए भी उन्होंने संघर्ष किया। ऐसे व्यक्ति के जन्म जयंती के अवसर पर  प्रशासन की ओर से उन्हें याद नहीं किया जाना कहीं ना कहीं देश के लाल के साथ अन्याय करना जैसा प्रतीत होता है।बरहाल चित्तौड़गढ़ नगर परिषद और प्रशासन की ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती की औपचारिकता पूरी करने के लिए भी अभी तक किसी प्रकार की तैयारियां नहीं की गई है और देश के दो लाल जिनकी जन्म जयंती है एक दिन बनाई जाती है उनकी प्रतिमाओ के आसपास की हालत बद से बदतर है जहां  दिखावे के लिए उनकी प्रतिमाओं को स्थापित तो कर दिया गया। लेकिन सार संभाल नहीं होने के कारण इन प्रतिमाओं के आसपास गंदगी का आलम देखा जा रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब इन युग पुरुषों के सार संभाल नहीं की जा सकती तो ऐसी प्रतिमाओं को स्थापित करने से क्या फायदा। जिनके नाम को राजनीतिक दल समय-समय पर भुनाने का काम करते हैं। लेकिन उनके रखरखाव के नाम पर नतीजे शून्य ही देखा जा रहा है।