जयपुर ब्यूरो रिपोर्ट।
जन नाट्य संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह की स्मृति में प्रगतिशील लेखक संघ और इप्टा के संयुक्त तत्वावधान में यहां कुमारानंद हाॅल में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि का वृहद् स्तर पर आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. सुखदेव सिंह सिरसा ने कहा कि रणबीर सिंह ने थिएटर ही नहीं संस्कृति और इतिहास को नए आयाम दिए। उन्होंने राज्य के इतिहास का आधुनिक विचार के साथ प्रामाणिक लेखांकन किया। आज के हिंसा और सांप्रदायिकता, असहिष्णुता के माहौल में वे प्रकाश पुंज थे। उनके भीतर एक ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही थी। उन्होंने संस्कृति को जन से जोड़ने का काम किया और वे युवाओं के लिए एक मजबूत विरासत छोड़ गए हैं। इसे हमें मजबूती से थामे रखना होगा।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रतिष्ठित कथाकार साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि रणबीर सिंह ने संस्कृति के स्तर पर आम आदमी की संस्कृति को अपनाया। रंगमंच अभिनय और नाटक के लिए उन्होंने जो नया पाठ्यक्रम तैयार किया वह युवा पीढ़ी के लिए मूल्यवान सिद्ध होगा। उसका प्रकाशन किया जाना चाहिए। वे सिद्धांतों से ज्यादा व्यवहार और आचरण करने में विश्वास रखते थे। प्रो. मोहन श्रोत्रिय ने कहा कि उन्होंने साहित्य संस्कृति इतिहास में इतना ठोस और अनूठा सृजन किया है जिसके लिए वह संस्कृति पुरुष कहलाने के हकदार हैं। विचारधारा और साहित्य, विचारधारा और रंगमंच को लेकर वे बड़ी-बड़ी तकलीफें झेल लेते थे। उन्होंने वर्तमान संदर्भों में संस्कृति नीति का पुनर्लेखन किया जिसे लागू किया जाना चाहिए। विश्वविद्यालयों को उनके कार्यों पर गंभीर शोध करना चाहिए। प्रसिद्ध नाट्यकर्मी रवि चतुर्वेदी ने रणबीर सिंह के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि वे रंगमंच के इनसाइक्लोपीडिया थे। उन्हें पारसी थियेटर का अद्भुत ज्ञान था। उनके पास पुस्तकों का बेमिसाल खजाना था। अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच की उन्हें अद्यतन जानकारी थी। उन्हें कभी सम्मानों की चाह नहीं रही। उन्होंने जवाहर कला केंद्र जयपुर का संविधान तैयार किया। रणबीर सिंह के नाटक ‘हाय मेरा दिल‘ के भारत भर में 1500 शो हुए जो एक रिकॉर्ड है। वे एक विद्रोही लेखक थे।प्रतिष्ठित कवि कृष्ण कल्पित ने कहा कि रणबीर सिंह का चले जाना एक वटवृक्ष का गिर जाने जैसा है। वे उच्च कोटि के रंगकर्मी और रंगमंच के चिंतक थे। उन्होंने मीना कुमारी और अशोक कुमार जैसे महान कलाकारों के साथ काम किया। उन्हें इतिहासकार के रूप में भी याद किया जाएगा। वह इप्टा, प्रलेस और परिवर्तनकारी शक्तियों के साथ आत्मीयता और संवेदना के साथ पेश आते थे। वे अंतिम समय तक उद्देश्य से जुड़े रहे।इस अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष मंडल के सदस्य फारूक आफरीदी ने कहा कि प्रगतिशील संगठनों की जिम्मेदारी बनती है कि वह रणबीर सिंह के कार्यों को चिरस्थाई बनाने का प्रयास करें। उनकी सांस्कृतिक दृष्टि और चिंतन को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। वे चाहते थे नए नाटक लिखे जाएं और समाज को चेताया जाए। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. राजाराम भादू ने कहा कि उनकी जन नाट्य मंच को पुनर्गठित कर उसे नया स्वरूप देने की योजना थी। उन्होंने कहा कि आज जब प्रतिरोध की चुनौतियां बढ़ती जा रही है तब उनकी कमी महसूस हो रही है।कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश महासचिव प्रेमचंद गांधी ने किया। इस अवसर पर सुनीता चतुर्वेदी, अमिताभ पांडे, राघवेंद्र रावत, रचना श्रीवास्तव आदि ने भी विचार व्यक्त किए। श्रद्धांजलि सभा में नाट्य निर्देशक साबिर खान, वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी, ओम सैनी, हरीश करमचंदाणी, इप्टा, जयपुर के अध्यक्ष संजय विद्रोही, किसान नेता तारा सिंह, श्रमिक नेता डीके छंगाणी, निशा सिद्धू, नाट्य निर्देशक वासुदेव भट्ट, नरेंद्र आचार्य सहित बड़ी संख्या में संस्कृतिकर्मी, पत्रकार, साहित्यकार, रंगकर्मी आदि मौजूद थे।