31-दिसम्बर

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जा रहा हूँ अब 

हमेशा के लिये मैं 

किस तरह दोगे 

मुझे बोलो विदाई 


याद रक्खोगे मुझे 

ख़ुशियों की ख़ातिर

या ग़मों के गीत 

ही गाते रहोगे

जो भी पाया वो 

तुम्हारा लब्ध ही था

मान लोगे या कि 

इतराते रहोगे

जो हुआ वह सब 

तुम्हारे कर्म ही थे

जो मिला वह थी 

तुम्हारी ही कमाई


जब मैं आया था 

तुम्हें आशा थी कितनी

क्या हर इक आशा 

हुई पूरी तुम्हारी

जीत पाये अपनी 

कमियों को तनिक भी

या कि ख़ुद से जंग 

की बाज़ी है हारी

हो सके बेहतर 

विगत वर्षों से क्या कुछ

या कि क़ायम है 

तुम्हारी ख़ुदनुमाई


कुछ अलग था मैं 

गये वर्षों से या फिर

था वही ढर्रा जो 

है कितना पुराना

उम्र के खाते में 

कोरी इक बढ़त है

या बढ़ा उपलब्धि 

का कोई ख़ज़ाना

क्या हुआ कुछ भी 

अलग अहसास तुमको 

या अलग कुछ भी 

नहीं देता दिखाई


जा रहा हूँ अब

हमेशा के लिये मैं

किस तरह दोगे

मुझे बोलो विदाई

©️✍️ लोकेश कुमार सिंह 'साहिल'