नई दुनिया छोड़ने की तैयारी

ऋषिकेश राजोरिया 

नईदुनिया में काम करते हुए प्रमुख घटनाक्रम यह हुआ कि जनसत्ता का बंबई संस्करण शुरू होने वाला था। उन दिनों दैनिक अखबारों में काम करने वाले प्रशिक्षित पत्रकारों की कमी थीइसलिए देश में कोई हिंदी अखबार शुरू होता तो इंदौर के पत्रकारों के लिए अच्छे अवसर बन जाते थे। नईदुनिया में काम करने वालों की मांग सबसे ज्यादा रहती थी। बंबई संस्करण शुरू होने से पहले प्रभाष जोशी इंदौर आए थे और उन्होंने काफी पत्रकारों से मेल मुलाकात की थी। नईदुनिया में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि कुछ लोग बंबई जाने वाले हैं। शिव अनुराग पटैरयाविभूति शर्मारविराज प्रणामी और हेमंत पाल बंबई चले गए। तब बंबई का नाम मुंबई सिर्फ मराठी में प्रचलित था।

इंदौर में एक नया बड़ा अखबार चौथा संसार शुरू हुआउसमें नईदुनिया से पत्रकार तो नहीं गएलेकिन अन्य विभागों के कुछ कर्मचारी उसमें चले गए थे। प्रभाकर माचवे चौथा संसार के प्रधान संपादक थे। देवप्रिय अवस्थी कार्यकारी संपादक थे। नईदुनिया के चार प्रमुख पत्रकारों के बंबई चले जाने के बाद परिस्थितियां बदलने लगीं। नईदुनिया का भोपाल संस्करण शुरू हो चुका था। नईदुनिया इंदौर से काफी लोग भोपाल जाकर काम करने लगे थे। मैं मेहनत से काम कर रहा था। प्रभु जोशी थेतब मेरे लेख वगैरह छप जाते थेअच्छा लगता था। उनके जाने के बाद नईदुनिया में ऐसा कोई नहीं थाजो मेरा शुभचिंतक हो और मार्गदर्शक भी हो।

प्रभु दा ने नईदुनिया छोड़ने के बाद वाटर कलर पेंटिंग बनाना शुरू किया। बगैर ब्रश के चित्रकारी की एक नई शैली उन्होंने विकसित की थी। उन्होंने मेरे सामने कई चित्र बनाए। बंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी बुक कराई। जब वे पेंटिंग की प्रदर्शनी की तैयारी करने बंबई गए थेतब मैं भी उनके साथ गया था। जनसत्ता के स्थानीय संपादक राहुल देव उनके मित्र थे। तब तक शिव अनुराग पटैरयाविभूति शर्मा और हेमंत पाल बंबई छोड़ चुके थे। सिर्फ रविराज प्रणामी बचे थे। नईदुनिया में मेरी नजदीकी भूपेन्द्र चतुर्वेदी से थी। रविवार को हम दोनों साथ में उसके घर दूरदर्शन पर ‘वर्ल्ड दिस वीक’ कार्यक्रम देखते थेजो दूरदर्शन पर प्रणव राय पेश करते थे। भूपेन्द्र चतुर्वेदी संपादकीय लिखने लगा था।

जुलाई 1990 में वापस प्रूफ टेबल पर भेजा जाना मुझे अपमानजनक लगा। लेकिन शादी हो जाने के कारण मैं काम करता रहा। अगर शादी नहीं हुई होती तो मैं परिस्थितियों से अपने तरीके से निपटता। प्रभु दा के साथ बंबई की यात्रा करने के बाद मुझे यह आभास हो चुका था कि बंबई जनसत्ता में पत्रकारों की जरूरत है। देश में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था। विश्वनाथ प्रतापसिंह ने नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। मैंने चंद्रशेखर को जो पत्र लिखा थाउसका उत्तर मुझे मिला। उन्होंने राजनीतिक घटनाओं में मेरी रुचि की प्रशंसा की और दिल्ली आने के लिए लिखा। लेकिन मैं इधर नईदुनिया छोड़कर जनसत्ताबंबई में जाने की तैयारी में जुटा थाइसलिए दिल्ली नहीं जा सका।